वसीम के बहाने मुस्लिमों को साधने निकली सपा

जागरण संवाददाता, बरेली : विधान सभा चुनाव की आहट के बीच सपा ने आखिरकार रुहेलखंड में सियासी 'ब्रह्म

By Edited By: Publish:Sat, 30 Apr 2016 02:05 AM (IST) Updated:Sat, 30 Apr 2016 02:05 AM (IST)
वसीम के बहाने मुस्लिमों को साधने निकली सपा

जागरण संवाददाता, बरेली : विधान सभा चुनाव की आहट के बीच सपा ने आखिरकार रुहेलखंड में सियासी 'ब्रह्मास्त्र' चल दिया। प्रोफेसर वसीम बरेलवी को एमएलसी बनाकर। इसी के साथ साफ हो गया, इस दफा भी मुस्लिम और पिछड़ी जाति के वोट बैंक को साधे रखने में कसर नहीं छोड़ेगी। बसपा और भाजपा को उन्हीं के तरीके से घेरेगी क्योंकि वसीम साहब जितने मुस्लिमों में लोकप्रिय हैं, ¨हदु भी उनसे कम मुहब्बत नहीं करते..।

जिस ढंग से विपक्ष सपा पर हमलावर है, उसपर 'एंटी इनकमबेंसी' हावी है। भाजपा और बसपा के हमलों से पार्टी को जमीन खिसकने का डर है, जिसके चलते सपा थिंक टैंक कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। चूंकि, रुहेलखंड उसके लिए खास अहमियत रखता है। सूबे की सत्ता की सीढ़ी का अहम पायदान भी यह इलाका है। अकेले बरेली में चार सीटें पार्टी के खाते में हैं।

वैसे भी, सपा अर्से से रुहेलखंड में खास चेहरे की तलाश में जुटी थी। वसीम बरेली से अच्छा कोई विकल्प था भी नहीं। इस सब के बीच सपा से वसीम साहब की नजदीकी के कयास भी लगने शुरू हो गए थे। वजह, जब-जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बरेली आए, मंच पर उन्हें न केवल जगह मिली, खास तवज्जो दी गई। उनकी सभी मांगों को भी सिर आंखों पर रखा गया। आइजीसीएल के समापन के दौरान मंच पर ही वसीम बरेलवी ने रुहेलखंड विश्वविद्यालय में कथावाचक पं. राधेश्याम और आला हजरत से नाम से पीठ बनाने की मांग रखी। मुख्यमंत्री ने तत्काल मानते हुए मंच से ही घोषणा कर दी। हालांकि, वह सपना साकार अभी तक हुआ नहीं है। इतना ही नहीं, प्रदेश सरकार ने पुरस्कार से देकर भी उन्हें नवाजा।

यही करीबी ही थी, वसीम साहब के शहर से विधान सभा से चुनाव लड़ने तक की चर्चा सियासी गलियारों में चल पड़ी। उसके बाद ही प्रो. वसीम बरेलवी से राजनीति में आने के सवाल दागे गए तो उन्होंने हमेशा इन्कार किया। यह कहते हुए कि मैं शायर हूं, सियासत से कोई वास्ता नहीं। सपा मुखिया व अखिलेश यादव से मेरे व्यक्तिगत संबंध हैं। अलबत्ता, इससे उलट सपा हमेशा ही प्रो. बरेलवी से अपने संबंधों को जगजाहिर करती रही।

इसलिए प्रो. वसीम पर दांव

प्रो. बरेलवी कुछ भी कहें, सपा का सियासी एजेंडा साफ है। रुहेलखंड में मुस्लिम वोट बैंक उसके लिए खास है। कई सीटों पर यह वर्ग निर्णायक है। ऐसे में रिझाने में कोई कसर नहीं रहेगी। इस बहाने सपा ने प्रतिद्वंदी बसपा को भी घेरा है। जिस मंशा से बसपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नसीमुद्दीन सिद्दीकी को लगाया है, उसकी अपेक्षा प्रो. वसीम सॉफ्ट और सर्वमान्य चेहरा हैं। भाजपा अक्सर सपा पर मुस्लिम परस्त होने का आरोप लगाती है। प्रो. बरेलवी को लाकर उसे भी जवाब देने की कोशिश की है।

शहर की चिंता

बरेली की बात करें तो टिकट वितरण में भी सपा ने मुस्लिमों का ध्यान रखा। शहर विधानसभा सीट से शेर अली जाफरी और कैंट विधानसभा से हाजी इस्लाम बब्बू को प्रत्याशी घोषित किया गया। यह दीगर बात है, जाफरी चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा सके। अब इस सीट पर एक बार फिर किसी अन्य मुस्लिम चेहरे की ही तलाश जारी है। जफर बेग का नाम चल रहा है। दरअसल, शहर की दोनों यानी सदर और कैंट सीट भाजपा के कब्जे में है। सपा चाहती है, कम से कम एक सीट पर खाता जरूर खुले। उसे उम्मीद है, यह काम प्रो. बरेलवी के चेहरे को आगे रखकर आसानी से किया जा सकता है।

एक ही दिन में दूसरा प्रयास

सपा की मुस्लिम सियासत का उदाहरण सिर्फ प्रो. वसीम बरेलवी नहीं बने। शुक्रवार को एक कार्यक्रम में बरेली पहुंचे सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के करीबी अमर सिंह भी सधे शब्दों में पार्टी को मुस्लिमों की हितैषी बताया था।

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