रूहानी संगीत है सूफी संगीत : हंसराज हंस

देवा (बाराबंकी) : सूफी संगीत रुहानी संगीत है। यह अमन, भाईचारे और शांति का संदेश देता है। सूफियाना सं

By Edited By: Publish:Sat, 18 Oct 2014 12:08 AM (IST) Updated:Sat, 18 Oct 2014 12:08 AM (IST)
रूहानी संगीत है सूफी संगीत : हंसराज हंस

देवा (बाराबंकी) : सूफी संगीत रुहानी संगीत है। यह अमन, भाईचारे और शांति का संदेश देता है। सूफियाना संगीत आज भी काफी लोकप्रिय है। यह बात प्रसिद्ध सूफी एवं पा‌र्श्व गायक हंसराज 'हंस' ने 'जागरण' से बातचीत में कही। उन्होंने कहा कि संगीत अपने आप में जादू है। इसमें अश्लीलता कतई नहीं होनी चाहिए।

अपने संगीत के सफर के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि गाने का शौक बचपन से था। परिवार में संगीत की कोई पृष्ठभूमि नहीं थी। गायन का शौक बढ़ा तो उस्ताद पूरनशाह कोटी साहब से संगीत की शिक्षा ली। 1983 में पहला अलबम जोगिया रिलीज हुआ। इसके बाद इंडी पॉप, 'जागिया दे कन्ना विच' से काफी लोकप्रियता मिली। फिल्म कच्चे धागे में स्व. नुसरत फतेह अली खान के साथ गाए गाने 'खाली दिल नइए जान भी मंगदा' ने उन्हें नई पहचान दी। उन्होंने फिल्म शहीद, जोड़ी नं.-1, च्बच्छू, पटियाला हाउस आदि कई फिल्मों में अपनी आवाज का जादू बिखेरा है।

'हंस' उपनाम के बारे में उन्होंने बताया कि यह उपनाम सूफी संत बाबा मुराद शाह साहब ने उनके घुंघराले बालों एवं 'हंस' जैसी आवाज की वजह से रखा था। संगीत से राजनीति की ओर मुड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उप मुख्यमंत्री सुखबीर ¨सह के आग्रह पर शिरोमणी अकाली दल से जालंधर से चुनाव भी लड़ा परंतु सफलता नहीं मिली। उन्होंने कहा कि संगीत एक जादू है। उसमें फूहड़ता नहीं होनी चाहिए। सूफियाना गायिकी से आत्मा को शांति मिलती है। पंजाबी लोकगीत, सूफी गायन एवं पा‌र्श्व गायन में अपनी अलग पहचान बनाने वाले हंसराज 'हंस' के यारा ओ यारा, इक इशारा जैसे कई दर्जन अलबम लोगों में काफी लोकप्रिय है। सूफी संत की दरगाह पर हाजिरी लगाकर काफी खुश दिख रहे हंसराज 'हंस' सूफी गायन को आज भी काफी लोकप्रिय मानते हैं।

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