स्टीविया की खेती से मधुमेह को दे रहे चुनौती

अभियान : प्रयोगधर्मी किसान प्रयोगधर्मी किसान अजय ने परंपरागत खेती को छोड़ कर मीठी तुलसी की

By JagranEdited By: Publish:Sat, 11 Aug 2018 06:35 PM (IST) Updated:Sat, 11 Aug 2018 06:35 PM (IST)
स्टीविया की खेती से मधुमेह को दे रहे चुनौती
स्टीविया की खेती से मधुमेह को दे रहे चुनौती

अभियान : प्रयोगधर्मी किसान प्रयोगधर्मी किसान अजय ने परंपरागत खेती को छोड़ कर मीठी तुलसी की खेती शुरू कर दी है। इस औषधि से मधुमेह का इलाज होता है। कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे रही ऑर्गेनिक औषधि से लाखों कमाए जा रहे हैं। औषधि की खेती पर 'दैनिक जागरण' की रिपोर्ट। बाराबंकी : कृषि से स्नातक मधवाजलालपुर निवासी अनुज मौर्य लोगों को स्टीविया की खेती के तरीके किसानों को बता रहे हैं। अनुज स्वयं स्टीविया (मीठी तुलसी) की खेती कर जिले में अलग पहचान बना कर किसानों के लिए नजीर बन गए हैं।

मधवाजलालपुर के ज्यादातर लोग खेती पर ही निर्भर हैं। पहले यहां लोग सिर्फ लहसुन, लौकी, टमाटर, गोभी आदि सब्जियों का उत्पादन कर थोड़ा बहुत मुनाफा कमा रहे थे। इसी गांव के अनुज मौर्य ने लोगों को सब्जी की खेती के साथ ही शुगर में फायदेमंद औषधि स्टीविया (मीठी तुलसी) की पैदावार कर बेहतर मुनाफा कमाने की सलाह दी। अनुज ने खुद भी दो एकड़ खेत में स्टीविया की पौध लगा रखी है।

अनुज बताते हैं कि स्टीविया की खेती करने के लिए लोग राजी नहीं थे। खुद अपने एक एकड़ खेत में लखीमपुर की पौध लाकर लगाई। जिसे देख कई लोगों ने करीब एक एकड़ भूमि में स्टीविया की रोपाई की है। एक बार रोपाई करने पर यह फसल तीन वर्षों तक निरंतर चलती है।

कटाई के साथ लाभ : स्टीविया की पत्तियों की कटाई 80 से 90 दिन के भीतर की जाती है। मंडी के हिसाब से स्टीविया की पत्ती तीन-चार सौ रुपये प्रति किलो बिकती है। जिससे एक एकड़ में सालाना आय करीब तीन लाख व तीन वर्ष में नौ लाख का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

कुछ दूरी पर होती है रोपाई : स्टीविया की खेती के लिए पौधे की रोपाई 15-20 सेमी पर की जाती है। जिसमें कीट नाशक रसायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसकी एक एकड़ की फसल में तत्व के रूप में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश व गोबर की खाद ही डाली जाती है।

प्रस्तुति : राघवेंद्र मिश्र, सूरतगंज।

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