चुनाव का मुद्दा बनी बंद औद्योगिक इकाइयां

बाराबंकी : बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयां विधानसभा चुनाव का मुद्दा बन चुकी हैं। बंदी से प्रभावित श्रमिकों

By Edited By: Publish:Sat, 21 Jan 2017 12:32 AM (IST) Updated:Sat, 21 Jan 2017 12:32 AM (IST)
चुनाव का मुद्दा बनी बंद औद्योगिक इकाइयां
चुनाव का मुद्दा बनी बंद औद्योगिक इकाइयां

बाराबंकी : बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयां विधानसभा चुनाव का मुद्दा बन चुकी हैं। बंदी से प्रभावित श्रमिकों के परिवार चुनाव में अपनी वोट की ताकत दिखाएंगे।

बाराबंकी चीनी मिल, बुढ़वल चीनी मिल, सूत मिल व सोमैया फैक्ट्री बंद होने से हजारों लोग प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से बेरोजगार हो गए। उनके बच्चों की पढ़ाई बंद हो गई। घर में दो वक्त की रोटी के लाले हैं मगर इनके संचालन की दिशा में जन प्रतिनिधियों ने रुचि नहीं ली। ऐसे में लोग ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

राज्य कताई मिल बाराबंकी : जिला मुख्यालय पर जहांगीरबाद रोड स्थित राज्य कताई मिल (सूत मिल) 27 जून 2015 को बंद हो गई। मिल व श्रमिक कालोनी की बिजली भी काट दी गई। मिल में दो दशक पहले तीन पालियों में स्थाई व अस्थाई करीब छह हजार कर्मचारी एवं श्रमिक काम करते थे। धीरे-धीरे कर्मचारियों की संख्या घटती गई। मिल जब बंद हुई तो करीब 650 श्रमिक थे जिनमें से वीआरएस के बाद मौजूदा समय 341 श्रमिकों व 20 कर्मचारियों की हाजिरी लग रही है मगर वेतन किसी को भी नहीं मिल पा रहा। मिल के संचालन की मांग को लेकर श्रमिक निरंतर आंदोलित हैं। नेताओं व अधिकारियों के यहां मिल संचालन की मांग को लेकर श्रमिक अपने परिवार की महिलाओं व बच्चों के साथ फरियाद कर चुके हैं पर नतीजा सिफर रहा। श्रमिक देवेंद्र मोहन मिश्र ने पानी टंकी पर चढ़कर आत्महत्या का भी प्रयास किया था। एक जन प्रतिनिधि के दरवाजे पर फरियाद लेकर गए श्रमिक दिलीप सोनी को दिल का दौरा पड़ गया था जिसके पास इलाज के लिए भी पैसा नहीं है। श्रमिक सत्यप्रकाश मिश्र का कहना है कि नेताओं का आश्वासन हवाई साबित हुआ है। 16 दिसंबर से चार जनवरी तक लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान में धरना व अनशन किया गया था उसमें भी अधिकारियों ने चार-छह दिन में बकाया भुगतान व मिल संचालन के बारे में आदेश जारी किए जाने का आश्वासन दिया था लेकिन हुआ कुछ नहीं। अरुण कुमार द्विवेदी, अर¨वद त्रिवेदी, संतोष तिवारी, लवलेश उपाध्याय व राम बिलास आदि श्रमिक शुक्रवार को सूत मिल के गेट पर चुनाव में मिल की बंदी को मुद्दा बनाकर उठाने के संबंध में रणनीति बनाते मिले। श्रमिकों ने कहा कि हम लोग इस बार सिर्फ मिल के मुद्दे पर ही एकजुट होकर मतदान करेंगे।

बाराबंकी चीनी मिल : फरवरी 1998 में बाराबंकी चीनी मिल बंद हो गई। मिल के करीब पांच सौ स्थाई व इतने ही सीजनल श्रमिक तो बेरोजगार हुए ही परोक्ष रूप से करीब एक हजार लोगों की जीविका प्रभावित हुई। अपुल पांडे, भोलानाथ पाठक, अशोक ¨सह, जाकेश शुक्ला, राजकुमार शुक्ला, हाकिम ¨सह, अकील अहमद जाफरी, शकील अहमद, मान¨सह तिलक धारी, उमेश ¨सह व राकेश शुक्ला आदि अपने अधिकार की लड़ाई अभी तक लड़ रहे हैं। जन प्रतिनिधियों ने कोई सार्थक सहयोग नहीं किया। एक दर्जन परिवार मिल कालोनी के जर्जर आवासों में रहने को विवश हैं जहां बिजली-पानी का संकट है।

सोमैया केमिकल फैक्ट्री : 12 जनवरी 2009 को देवा रोड स्थित सोमैया फैक्ट्री बंद हो गई। करीब 250 कर्मचारी एवं श्रमिक स्थाई व 300 से ज्यादा अस्थाई श्रमिक बेरोजगार हो गए। परोक्ष रूप से रोजगार पाने वाले एक हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हुए। फैक्ट्री के सामने बनी दुकानें अब वीरान हो गईं। वीरेंद्र ¨सह, गजराज वर्मा, अब्दुल रहमान, कमलेश ¨सह, उमेश ¨सह, लक्ष्मी नारायण, जय प्रकाश ¨सह, राम किशोर आदि 25 परिवार श्रमिक कालोनी के जर्जर आवासों में रहते हैं। पीने का पानी आधा किलोमीटर दूर से भरकर लाते हैं। लाखों रुपए बकाया है मगर भुगतान न होने से दो वक्त की रोटी के लाले हैं। बच्चों की पढ़ाई व परिवार के बीमार सदस्यों की दवाई भी नहीं हो पा रही।

बुढ़वल चीनी मिल रामनगर : बुढ़वल चीनी मिल रामनगर वर्ष 2009 में बंद हो गई। मिल में कर्मचारी रहे कमलेश ¨सह का कहना है कि करीब 300 स्थाई व 700 स्थाई सीजनल श्रमिक चीनी मिल में काम करते थे। चीनी मिल की बंदी से बेरोजगारी का संकट बन गया। गन्ना किसानों की भी कमर टूट गई। मिल के विस्तार के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन भी वापस नहीं की गई जिससे किसानों को दोहरा नुकसान हुआ। गन्ने का रकबा आधा भी नहीं बचा। मौजूदा समय इस क्षेत्र के किसानों का गन्ना पोखरा चीनी मिल हैदरगढ़ खरीदती है जिसके क्रय केंद्रों पर अव्यवस्था का बोलबाला है। किसानों को पर्ची न मिल पाने से वह अपना गन्ना समय से नहीं तौल करवा पा रहे।

बाराबंकी चीनी मिल बंद होने से रोजगार का जरिया खत्म हो गया। पिता इंद्र भान ¨सह मिल में कर्मचारी थे। बंदी के परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। नेताओं के वादे बेकार साबित हुए। सरकार को रोजगार को कोई नया विकल्प निकालना चाहिए।

धीरेंद्र कुमार, बेरोजगार

बाराबंकी चीनी मिल के अस्पताल में मेरे पिता कंपाउंडर थे। मिल के साथ अस्पताल भी बंद हो गया। मिल चलती होती होती तो हम जैसे बेरोजगारों को भी काम मिलता। चुनाव में मिल बंदी को मुद्दा बनाया जाएगा।

नरेंद्र ¨सह, बेरोजगार

16 साल तक बाराबंकी चीनी मिल में अस्थाई रूप से काम करने के बाद जब लगा कि नौकरी पक्की होने वाली है तो मिल बंद हो गई। परिवार के पांच सदस्यों को दो वक्त की रोटी के लिए दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ रही है।

भोला ¨सह

पिता राम अनुराग पांडे बाराबंकी चीनी मिल के श्रमिकों के लिए संघर्ष करते थे जिनकी हत्या कर दी गई थी। भाई अपुल पांडे चीनी मिल बंद होने के बाद श्रमिकों के हक के लिए मुकदमा लड़ रहे हैं। आर्थिक तंगी के चलते मुकदमे की पैरवी भी नहीं हो पा रही।

आलोक पांडे, बेरोजगार

चीनी मिल बंद होने के मेरे पिता राजकुमार शुक्ला को परिवार का खर्च चलाने के लिए प्राइवेट नौकरी में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। सरकार व जन प्रतिनिधियों को बंद मिल के कर्मचारियों के परिवारों के हित में ठोस कदम उठाना चाहिए।

शोभित शुक्ला, छात्र

सोमैया केमिकल फैक्ट्री (जेआर आर्गेनिक्स) में सिक्योरिटी गार्ड था। फैक्ट्री बंद होने के बाद परिवार का खर्च चलाना मुश्किल है। पीएफ व ग्रेच्युटी की बकाया धनराशि का भुगतान भी नहीं हो सका है। जन प्रतिनिधियों ने कोई मदद नहीं की।

वीरेंद्र ¨सह

सोमैया फैक्ट्री में इलेक्ट्रीशियन पद पर कार्य किया। जब से फैक्ट्री बंद हो गई दूसरी जगह नौकरी भी नहीं मिली। परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। बीमार पत्नी का इलाज भी नहीं पा रहा। बकाया भुगतान नहीं हो रहा।

गजराज वर्मा

सोमैया फैक्ट्री में मैकेनिकल हेल्पर के पद पर तैनात था। फैक्ट्री बंद होने के बाद दूसरी जगह नौकरी नहीं मिल रही। पैर में तकलीफ है। एक माह की दवाई 2300 रुपये की आती है। रुपये न होने से एक माह की दवाई को तीन माह तक खाकर काम चलाते हैं।

अब्दुल रहमान

सूत मिल में कोन वाइंडर के पद पर तैनाती है मगर मिल बंद हो गई। चार बच्चों का स्कूल जाना बंद हो गया। दो वक्त की रोटी के लाले हैं। नेताओं का दरवाजा खटखटाने पर सिर्फ आश्वासन ही मिला।

संतोष तिवारी

बंद पड़ी सूत मिल में माली सुपरवाइजर के पद पर तैनाती है। रोज ड्यूटी पर आता हूं पर वेतन 10 माह से नहीं मिला है। खेती व परिजनों की मजदूरी से परिवार का खर्च चल रहा है।

राम विलास

सरकारी आंकड़ों में स्वरोजागर की स्थिति

बाराबंकी : जिला उद्योग केंद्र के आंकड़े के अनुसार प्रधानमत्री रोजगार सृजन व समाजवादी रोजगार सृजन योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2012-13 में 281 सूक्ष्म औद्योगिक इकाइयां स्थापित हुईं जिनसे 1431 लोगों को रोजगार मिला। इसी तरह वित्तीय वर्ष 2013-14 में 450 इकाइयों की स्थापना से 1801 बेरोजगारों, वित्तीय वर्ष 2014-15 में 631 इकाइयों की स्थापना से 3442 बेरोजगारों को, वित्तीय वर्ष 2015-16 में 543 इकाइयों की स्थापना से 2053 व वित्तीय वर्ष 2016-17 में अब तक 915 इकाइयों की स्थापना से 2295 बेरोजगारों को स्वरोजगार मिला।

जिला खादी एवं ग्रामोद्योग के आंकड़े के अनुसार मुख्यमंत्री रोजगार सृजन योजना के तहत वर्ष 2013 से अब तक 87 सूक्ष्म औद्योगिक इकाइयों की स्थापना हुई जिसमें 2696 बेरोजगारों को रोजगार मिला।

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