मातम मनाने आते हैं 'परदेसी'

बलरामपुर :मुहर्रम के मातम में उतरौला तहसील नंबर एक पर है। मुहर्रम में होने वाले मातम क

By JagranEdited By: Publish:Thu, 20 Sep 2018 11:51 PM (IST) Updated:Thu, 20 Sep 2018 11:51 PM (IST)
मातम मनाने आते हैं 'परदेसी'
मातम मनाने आते हैं 'परदेसी'

बलरामपुर :मुहर्रम के मातम में उतरौला तहसील नंबर एक पर है। मुहर्रम में होने वाले मातम का जुनून ऐसा है कि देश से लेकर विदेश तक के लोग 40 दिन के लिए कामकाज छोड़कर यहां आते हैं, जिसमें आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, ईरान, ईराक व दुबई में रहने वाले लोग प्रमुख हैं। वह मूल रूप से उतरौला के निवासी हैं, जो मुहर्रम में अपने देश जरूर आते हैं।

उतरौला क्षेत्र का मुहर्रम कई मामलों में पूरे देश में विशिष्ट स्थान रखता है। विदेश में नौकरी करने वाले सैकड़ों लोग यौमे गम मनाने हर साल आते हैं, जो मुहर्रम से चेहल्लुम तक रहते हैं। मुहर्रम के दौरान शिया समुदाय के लोग काले लिबास में रहकर नंगे पांव चलते हैं। नवीं मुहर्रम की रात शिया समुदाय के युवक व किशोर जलते हुए अंगारों पर नंगे पांव चलकर या हुसैन की सदाएं बुलंद कर मातम मनाते हैं। दसवीं मुहर्रम को यौमे आशूरा जुलूस के दौरान नंगी पीठ पर जंजीरी मातम कर लहूलुहान हो जाते हैं। अमेरिका में एक एयरलाइंस में नौकरी कर रहे अबुल रिजवी बताते हैं कि पिछले सात वर्ष से वह अपने वतन मुहर्रम मनाने आते हैं। दुबई में नौकरी कर रहे अनीस रिजवी का कहना है कि हर साल अपने वतन आकर परिवार के लोगों के साथ रहकर मातम मनाते हैं। यहां की मिट्टी व लोगों से अपनापन है। ऑस्ट्रेलिया में 16 वर्ष से सरकारी नौकरी कर रहे अफसर रिजवी का कहना है कि हजरत इमाम हुसैन की शहादत व इमाम के प्रति स्नेह देखने के बाद किसी अन्य मुल्क में त्योहार मनाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। मादरे वतन में अपना त्योहार मनाना हम प्रवासी लोगों का सबसे बड़ा लक्ष्य होता है। मुंबई से त्योहार मनाने आए अली नेवाज ने बताया कि देश के लगभग सभी हिस्सों में मुहर्रम मनाया जाता है, लेकिन यहां मुहर्रम मनाने के तौर तरीके जुदा हैं। मुल्क के कई हिस्सों से आए लोगों के अतिरिक्त विदेश के कई कोनों से लगभग डेढ़ हजार लोग इस समय अपने परिवार के बीच रहकर मुहर्रम का मातम मना रहे हैं।

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