इब्राहिम का दमखम युवाओं को दे रहा प्रेरणा

बलरामपुर : व्यवस्थित दिनचर्या, संतुलित खान पान तथा तनाव रहित जीवन व्यक्ति को दीर्घायु बनाता है। उपरो

By Edited By: Publish:Tue, 27 Jan 2015 11:16 PM (IST) Updated:Tue, 27 Jan 2015 11:16 PM (IST)
इब्राहिम का दमखम युवाओं को दे रहा प्रेरणा

बलरामपुर : व्यवस्थित दिनचर्या, संतुलित खान पान तथा तनाव रहित जीवन व्यक्ति को दीर्घायु बनाता है। उपरोक्त कथन का जीता जागता प्रमाण 110 वर्षीय वृद्ध हैं जो आज भी तीन किलोमीटर पैदल अपने दम पर चलते हैं। बिना किसी मदद लिए अपने दैनिक कार्य भी संपन्न करते हैं। कोतवाली क्षेत्र के महुआ बाजार निवासी इब्राहिम (110 वर्ष) पुत्र हीरा उन लागों के लिए एक नजीर है जो युवावस्था अथवा प्रौढ़ावस्था में गंभीर रूप से शारीरिक बीमारियों के शिकार होकर विभिन्न दवाइयों के सहारे जीवन की तलाश करते हैं। सहचरी का सानिध्य दो दशक पहले छूट जाने के बावजूद स्वस्थ्य रूप से जीवन बिता रहे इब्राहिम की कहानी की दास्तान भी काफी रोचक है।

वर्ष 1904 में अपनी पैदाइश बताने वाले इब्राहिम की शिक्षा उस दौर में मदरसे में हुई लेकिन ज्यादा तालीम नहीं मिल पाई। 18 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। सबसे बड़े पुत्र मुहम्मद इरफान की आयु 70 वर्ष है। अब्दुल मोगनी (65), पुत्री साबितुन्निशा (62), अनवारुल (60) पुत्री नसीबुन्निशा (58) मतीउर्रहमान (55) तथा अतीकुर्रहमान (50) पांच पुत्रों तथा दो पुत्रियों का कुनबा लगभग चालीस एकड़ खेत तथा खेत में अपने परिश्रम से अन्न पैदा करना पूरे परिवार की दिनचर्या है। अंग्रेजी हुकूमत के बारे में कुरेदने पर वह बताते हैं कि आज का गणतंत्र और तब की फिरंगी हुकूमत कई मायनों में अलग है। फिरंगी सरकार के जमाने में भ्रष्टाचार नहीं था जैसा, आज, जम्हूरी हुकूमत में है। यातायात के साधन तथा सड़के बेहतर स्थिति में नहीं थीं। हम लोग मुकदमें की पैरवी के लिए गोंडा तारीख से एक दिन पहले निकल जाते थे और पैदल ही लौटते थे। सामाजिक स्थिति के बारे में वह बताते हैं कि हिंदू - मुसलमान के बीच तब कोई खाई नहीं थी। मुहर्रम में हर हिंदू परिवार जियारत, ताजिएदारी तथा जुलूस में शामिल होता था। बदले में दशहरे का मेला देखने, रावण, राम - लक्ष्मण आदि किरदार बनने में मुसलमान आगे रहते थे। बचपन तथा जवानी के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि माननीय मूल्यों की जितनी कीमत पहले थी वैसे अब बिल्कुल नहीं है। सामाजिक मान्यताएं तथा पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन पहले पूरी निष्ठा से होती थी और अब इनका कोई स्थान नहीं रह गया है। अपने दीर्घायु होने के बारे में पहले वह ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करते हैं फिर बताते हैं कि भोर में शैय्या त्याग करना, शारीरिक श्रम, संतुलित खान-पान तथा चिंतामुक्त जीवन ही उनके दीर्घायु का राज है। उनकी इच्छा है कि सामाजिक मूल्यों को पतन रुके, हिंदू-मुस्लिम पहले की तरह मिलजुल कर रहें और हिंदुस्तान जो पहले विश्वगुरु का महत्व रखता था वैसा ही रहे।

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