इस स्कूल में चलती है हंसी की क्लास

यदि सरकारी स्कूलों को लेकर नकारात्मक छवि है तो दिमाग से निकाल दीजिए जनाब।..अब सरकारी प्राथमिक स्कूल वो नहीं रहे जहां पढ़ाई-लिखाई के सिवा बाकी सबकुछ होता था। काफी कुछ बदलने लगा है। यकीन नहीं तो सिसाना घूम आइए..जहां बचपन के स्कूल में हंसी की क्लास में भविष्य संवरता मिलेगा। मस्ती की क्लास में चुटकले और कहानियां सुनकर लोट-पोट होता बचपन काफी कुछ सीख जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 02 Apr 2019 10:22 PM (IST) Updated:Wed, 03 Apr 2019 06:31 AM (IST)
इस स्कूल में चलती है हंसी की क्लास
इस स्कूल में चलती है हंसी की क्लास

जागरण संवाददाता, बागपत : यदि सरकारी स्कूलों को लेकर नकारात्मक छवि है, तो दिमाग से निकाल दीजिए जनाब।..अब सरकारी प्राथमिक स्कूल वो नहीं रहे जहां पढ़ाई-लिखाई के सिवा बाकी सबकुछ होता था। काफी कुछ बदलने लगा है। यकीन नहीं तो सिसाना घूम आइए..जहां बचपन के स्कूल में हंसी की क्लास में भविष्य संवरता मिलेगा।मस्ती की क्लास में चुटकुले और कहानियां सुनकर लोट-पोट होता बचपन काफी कुछ सीख जाता है।

मंगलवार को 'दैनिक जागरण' की टीम दोपहर 12.30 बजे स्कूल पहुंची तो 5वीं क्लास के बच्चे खिलखिलाकर हंसते दिखे। 10 मिनट बाद शिक्षिका ने घड़ी देखी। फिर बोलीं कि बाकी हंसी कल के लिए बचाइए। किताब निकालकर पढि़ए। बच्चे पढ़ने लगते हैं, लेकिन चेहरों पर मुस्कुराहट बाकी है। बच्चे इंग्लिश की किताब पढ़कर और पहाड़ा-गिनती सुनाने लगते हैं। वहीं बराबर के कक्ष में दूसरी की कक्षा चल रही, जिसमें एक बच्चा यह कहानी सुनाता मिला कि सोनल नाम की एक चिडि़या थी। सब उसे बहुत प्यार करते थे। एक बार वह आसमान में ऊंचा चली गई। सोनल जोर से चीखी ऊई मां बचाओ..। बच्चों को शांत करतीं हुई शिक्षिका बताने लगी कि कक्षा एक और दो के बच्चों को हम कोर्स की किताबों के अलावा 18 कहानियों में रोज किसी एक कहानी को सुनकर समझ बढ़ाने के साथ मनोरंजन कराकर बोरियत खत्म करते हैं। कक्षा तीन से पांचवीं के बच्चों को 19 कहानियों में हर रोज नई कहानी सुनाते हैं।

बच्चे स्कूल और क्लास बंक न करें इसके लिए क्लास में हल्के-फुल्के लेकिन अच्छा संदेश देने वाले चुटकुले सुनाकर भी बच्चों को हंसाते हैं। खेल-खेल में पढ़ाते हैं। शिक्षिका नीलम भास्कर बोलीं कि जीवन में हंसी से बढ़कर कोई तोहफा नहीं। हम नहीं चाहते कि बच्चे तनाव में रहें। हंसी और खेल-खेल में शिक्षा देने का कमाल है कि 90 से 95 फीसदी बच्चे उपस्थित रहते हैं। प्रभारी प्रधानाध्यापिका रीना बोलीं कि यकीन करिए कि गुणात्मक शिक्षा के दम पर हम बच्चों का शैक्षिक स्तर पब्लिक स्कूल के बच्चों से आगे ले जाकर दिखाएंगे। सिसाना का इकलौता स्कूल नहीं बल्कि अनेक स्कूलों में ग्रेडेड लर्निंग यानि कमजोर बच्चे चिहिनत कर होनहार बनाने का काम होता है।

ऐसे पढ़ते हैं खेल-खेल में बच्चे

चॉक से फर्श पर सीधी और क्षैतिज रेखाएं खींचकर ग्रिड बनाकर बच्चों को ब्रह्मांड के ग्रहों की जानकारी होती है। सांप-सीढ़ी के खेल से बच्चों को संख्या की पहचान, अंकों का स्थानीय मान, अंकों का स्थानीय मान आपस में बदलने पर नई संख्या का ज्ञान, संख्या का आरोही व अवरोही क्रम तथा भाज्य व अभाज्य संख्या का ज्ञान कराया जाता है। लूडो के खेल खिलाकर बच्चों को हिदी और अंग्रेजी की वर्णमाला ओर अंकों का ज्ञान और दो पासा फेंक जोड़-घटा एवं गुना करना सिखाया जाता है।

इन्होंने कहा..

हमारा प्रयास है कि स्कूलों में बच्चों को हंसते-खेलते शिक्षा और घर जैसा माहौल मिले। खेल-खेल में बच्चों को शिक्षा देने पर सिसाना स्कूल के शिक्षकों को हम सम्मानित कर चुके हैं।

-राजीव रंजन कुमार मिश्र, बीएसए।

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