बुलंद हौसले से बुलंदियों की ओर मनस्संज्ञिनी

बड़ौत (बागपत) फकत दस बरस की मनस्संज्ञिनी की जज्बे को सलाम कीजिए। हौसला ऐसा कि वह नन्हें कदमों से आक

By Edited By: Publish:Sun, 10 Apr 2016 10:54 PM (IST) Updated:Sun, 10 Apr 2016 10:54 PM (IST)
बुलंद हौसले से बुलंदियों की ओर मनस्संज्ञिनी

बड़ौत (बागपत)

फकत दस बरस की मनस्संज्ञिनी की जज्बे को सलाम कीजिए। हौसला ऐसा कि वह नन्हें कदमों से आकाश नापने चली है। जेहन में बुलंदी छूने का जज्बा लेकर आगे बढ़ रही इस बेटी ने हाल ही में ¨हदुस्तान की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराया और इतिहास रच दिया है। -12 डिग्री सेल्सियस में शरीर कांपता रहा, हाथ-पैर भी लड़खड़ाये। कभी हिम तेंदुए का डर तो कभी सांस लेने में तकलीफ। ..लेकिन उसने वह ख्वाब हासिल कर लिया, जो पलकों पर सजाया था।

छह साल की उम्र से सफर

मनस्संज्ञिनी बताती हैं, जब वह छह साल की थीं तो उन्होंने सबसे पहली ट्रै¨कग, 12500 फीट ऊंचे ¨पडारी ग्लेशियर से शुरू की। चार दिन में उन्होंने यह ऊंचाई तय कर कीर्तिमान रचा था। इसके बाद 14 हजार फीट ऊंचे हिमानी-चामुंडा ट्रैक पर तिरंगा फहराया। हाल ही में उन्होंने हिमालय की दुर्गम कंचनजंगा चोटी पर तिरंगा फहराकर इतिहास रच दिया। कंजनजंगा विश्व की तीसरी और ¨हदुस्तान की सबसे ऊंची चोटी है, जो करीब 16 हजार 300 फीट ऊंचाई पर है। अब वह विश्व की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर जाना चाहती है।

मुश्किल भरा रहा सफर

मनस्संज्ञिनी की मां मनीषा कहती हैं, जब वह बेटी को लेकर कंजनजंगा जा रहीे थीं तो वह ठंड से कांप रही थी। तापमान -12 डिग्री सेल्सियस था और उसके हाथ-पैर भी लड़खड़ा रहे थे। बीच-बीच में हिम तेंदुए के पंजों के निशान भी मिले, लेकिन मनस्संज्ञिनी ने हिम्मत नहीं हारी। वहां उसने योगा, प्राणायाम और ध्यान साधना का सहारा लेकर सांस को नियंत्रित किया।

पथरीली पहाड़ियां, घना जंगल और ग्लेशियर ने दी बुलंदी

मूल रूप से बागपत जिले के काकौर गांव निवासी पूर्व केंद्रीय मंत्री सोमपाल शास्त्री की पौत्री मनस्संज्ञिनी का बचपन, स्कूल की चारदीवारी और दुर्गम पहाड़ियों के बीच ही गुजरा है। उनके पिता संदीप चौधरी और मां मनीषा चौधरी चाहते हैं कि उनकी बेटी देश-दुनिया में नाम रोशन करे।

अब 'चीनी कम, चीनी बंद' अभियान

सोनीपत के डीपीएस स्कूल की छात्रा मनस्संज्ञिनी कहती है, अब उन्होंने 'चीनी कम, चीनी बंद' अभियान शुरू किया है। वह गांव-गांव जाकर अपनी उम्र के बच्चों समेत बड़े लोगों को समझाती हैं कि यदि हम चीनी का इस्तेमाल कम कर दें तो इंडस्ट्री खुद कम हो जाएगी। इंडस्ट्रीज से निकला दूषित जल वाटर लेवल और जमीन की ऊपरी व निचली सतह को गंदा कर रहा है, जिससे बीमारियां बढ़ रही हैं। वह किसानों को सलाह देती हैं कि गुड़, शक्कर और खांडसारी का उत्पादन बढ़ायें तो चीनी मिलों पर आश्रित नहीं रहना पड़ेगा।

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