दम तोड़ रहे जनपद के राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय

खेकड़ा : जनपद के राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालयों की हालत दयनीय है। जनपद में दस राजकीय आयुर्वेदिक चिकित

By Edited By: Publish:Sun, 10 Apr 2016 10:45 PM (IST) Updated:Sun, 10 Apr 2016 10:45 PM (IST)
दम तोड़ रहे जनपद के राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय

खेकड़ा : जनपद के राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालयों की हालत दयनीय है। जनपद में दस राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय है, लेकिन किसी के पास अपनी बि¨ल्डग होना तो दूर स्टाफ के नाम पर भी एक या दो डाक्टर या फार्मासिस्ट है। दवा खत्म होने पर काफी लिखापढ़ी के बाद महीनों बाद कुछ दवाएं उपलब्ध हो पाती हैं।

जनपद में पीएचसी, सीएचसी व उप स्वास्थ्य केंद्र सरकारी भवनों में चलते हैं, मगर आयुर्वेदिक चिकित्सालयों के पास अपने भवन तक नही है। यही वजह है जनपद में आयुर्वेदिक चिकित्सा दम तोड़ती नजर आ रही है। प्रसार-प्रचार के अभाव में वहां तक न तो मरीज ही पहुंच पाते और सरकारी दवाएं भी कभी-कभार वहां तक पहुंच पाती हैं।

इन स्थानों पर हैं राजकीय चिकित्सालय

जनपद में बागपत, पूरनपुर नवादा, खेकड़ा, अमीनगर सराय, असारा, मलकपुर, ख्वाजा नंगला, औसिक्का, बड़ौत, बिनौली में राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय है। इनमें अधिकांश या तो किराए के भवनों में संचालित हैं या मंदिरों में एक या दो कमरे लेकर किसी तरह संचालित किये जा रहे हैं। सफाई व फर्नीचर के लिए नही मिलता बजट कहने को सभी अस्पताल दो से चार बेड तक के हैं, लेकिन बेड के नाम पर टूटे व जर्जर हाल लोहे के दो बेड उपलब्ध हैं। इन पर चादर आदि का तो नामोनिशान ही नहीं है। फर्नीचर के नाम पर मात्र एक दो कुर्सी व एक मेज के अलावा कुछ नही है। दवा रखने के लिए भी मात्र एक अलमारी है। नगर राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय के प्रभारी डा. आरसी मौर्य का कहना है कि भवन तो अपना है ही नही। इनके लिए भी रंगाई पुताई के लिए कोई बजट नही मिलता। खेकड़ा में है चार बेड का अस्पताल कहने को खेकड़ा में चार बेड का राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय है, जो अहिरान मोहल्ले के शिव मंदिर में दो कमरों में चलता है। हैरत की बात तो ये हैं कि इनमें से ही एक कमरे को चिकित्सालय प्रभारी ने अपना कमरा व रसोई बनाया हुआ है। चिकित्सालय प्रभारी डा. आरसी मौर्य का कहना है, अस्पताल में एक फार्मासिस्ट भी है, जहां केवल देशी दवा ही उपयोग में लाई जाती है, मगर शासन से दवाई न आने पर उनको कई-कई माह मरीजों को कुछ दवाएं देकर ही काम चलाना पड़ता है। उनका कहना है, प्रतिदिन 15 से 20 मरीज उनके पास आते हैं, मगर दवाई न होने से वे भी निराश होकर वापस लौट जाते हैं।

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