मौसम परिवर्तन के कारण आलू की फसल में तेजी से फैलता है झुलसा रोग
जागरण संवाददाता आजमगढ़ आलू की अगेती व पिछेती फसल झुलसा रोग के प्रति अत्यंत संवेदनशील ह
जागरण संवाददाता, आजमगढ़ : आलू की अगेती व पिछेती फसल झुलसा रोग के प्रति अत्यंत संवेदनशील होती है। प्रतिकूल मौसम बदली, बूंदा-बांदी व नम वातावरण में अगेती व पिछेती झुलसा रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है, जिससे फसल को भारी क्षति पहुंचती है। ऐसी परिस्थिति में उद्यान व खाद्य प्रसंस्करण विभाग के माध्यम से आलू उत्पादकों को सलाह दी जाती है कि आलू की अच्छी पैदावार के लिए रक्षात्मक तरीका अपनाया जाना चाहिए। इसमें झुलसा रोग दो तरह के होते हैं, अगेती झुलसा और पिछेती झुलसा। अगेती झुलसा दिसंबर महीने की शुरुआत में लगता है। इस समय आलू की फसल में पिछेती झुलसा रोग लग सकता है। अगेती झुलसा में पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जिनमें बाद में चक्रदार रेखाएं दिखाई देती है। रोग के प्रभाव से आलू छोटे व कम बनते हैं। बीमारी में पत्तों के ऊपर काले-काले चकत्तों के रूप दिखाई देते हैं जो बाद में बढ़ जाते हैं। आलू की फसल को अगेती व पिछेती झुलसा रोग से बचाने के लिए किसानों को जिक मैगनीज कार्बामेट 2.0 से 2.5 किग्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टर की दर से पहला छिड़काव बोवाई के 30-45 दिन बाद अवश्य करना चाहिए। रोग नियंत्रण के लिए दूसरा व तीसरा छिड़काव कापर आक्सीक्लोराइड 2.5 से 3.0 किग्रा. 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से 10-12 दिन में अंतर में करें। प्रभारी उद्यान अधिकारी दिनेश सिंह ने बताया कि दूसरे व तीसरे छिड़काव के साथ ही माहू कीट का नियंत्रण आवश्यक है। इसके प्रकोप से आलू बीज उत्पादन प्रभावित हो सकता है।