खेरे में दफन हैं 12वीं शताब्दी के कई राज

जागरण संवाददाता औरैया सहायल क्षेत्र के धुपकरी में खोदाई के दौरान सूर्य प्रतिमा निकलने के

By JagranEdited By: Publish:Fri, 26 Jul 2019 10:55 PM (IST) Updated:Sun, 28 Jul 2019 06:28 AM (IST)
खेरे में दफन हैं 12वीं शताब्दी के कई राज
खेरे में दफन हैं 12वीं शताब्दी के कई राज

जागरण संवाददाता, औरैया: सहायल क्षेत्र के धुपकरी में खोदाई के दौरान सूर्य प्रतिमा निकलने के बाद अब पास के ही गांव जीवा सिरसानी में जीवा खेड़ा में खेरे के समतलीकरण के दौरान बोरे में कौड़ियां भरी हुई निकलीं। कौड़ियां 12 वीं शताब्दी तक एक छोटी मुद्रा के रूप में खूब प्रचलित थीं। खोदाई में बोरे निकलने पर गांव वालों ने खजाना समझा मगर कौड़ियां देख पास के ही मंदिर में रखवा दीं। पुरातत्व के जानकारों का मानना है कि यहां 12वीं शताब्दी तक की सभ्यता रही है।

गांव जीवा खेड़ा निवासी गिरीश अग्निहोत्री व अन्य लोगों के खेत हैं। जिनका वह समतलीकरण करा रहे थे। समतलीकरण के लिए खोदाई के दौरान तीन प्राचीन फटे हुए बोरे निकले। वह पूरी तरह से गले थे और उनमें कौड़ियां भरी थीं। खजाना होने के लालच में ग्रामीणों ने बारे निकाले तो उसमें हजारों की संख्या में कौड़ियां भरी थीं। गांव वालों ने इसकी सूचना पुरातत्व के जानकार अविनाश अग्निहोत्री को दी। ग्रामीणों ने कौड़ियों को पास के ही मंदिर में रखवा दिया है।

अविनाश अग्निहोत्री का कहना है कि कौड़ियां सबसे पहली मुद्रा थीं और 12वीं शताब्दी तक एक छोटी मुद्रा के रूप में खूब प्रचलित रहीं। इस क्षेत्र में मूर्ति प्राचीन मंदिर व कौड़ियों के निकलने से स्पष्ट है कि यहां काफी पुरानी सभ्यता रही है जिसका अस्तित्व खत्म किया गया है। इस क्षेत्र का जल्द ही पुरातत्व विभाग की लखनऊ टीम दौरा करेगी।

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