ज्ञान के भंडार में रद्दी की 'चोरी', हुई नीलामी तो सामने आया मामला

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हर वर्ष वार्षिक परीक्षा की कॉपी रद्दी में नीलाम कर दी जाती है। इसमें खेल किया जाता था। इस गोरखधंधे का मामला खुल गया है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Mon, 11 Mar 2019 11:48 AM (IST) Updated:Mon, 11 Mar 2019 11:48 AM (IST)
ज्ञान के भंडार में रद्दी की 'चोरी', हुई नीलामी तो सामने आया मामला
ज्ञान के भंडार में रद्दी की 'चोरी', हुई नीलामी तो सामने आया मामला

प्रयागराज : इलाहाबाद विश्वविद्यालय को आइएएस-पीसीएस की फैक्ट्री कहा जाता है। यहां से निकले युवा देश के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। वहां पर रद्दी की चोरी का गोरखधंधा वर्षों से चल रहा था। अंधेरे में चल रहा यह कारोबार उजाले में आया तो रद्दी का खेल करने वालों का भंडाफोड़ हुआ है। अब तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जो रद्दी महज चार से साढ़े चार लाख की बताई जाती थी, वह 12 लाख में बिकी तो प्रशासनिक अधिकारी भी एक बार चौंक गए। संदेह होने पर पुरानी बिक्री का रिकॉर्ड खंगाला तो सफाई से की जा रही रद्दी चोरी का मामला आइने की तरह साफ हो गया।

शैक्षणिक सत्र की कॉपी रद्दी में नीलाम कर दी जाती थी

इविवि की ओर से हर वर्ष वार्षिक परीक्षा ली जाती हैं। कुछ समय के बाद हर शैक्षणिक सत्र की कॉपी रद्दी में नीलाम कर दी जाती है। सूत्रों की मानें तो तकरीबन 15 दिन पहले इविवि में रद्दी की नीलामी हुई। इसमें इविवि को 12 लाख नौ हजार रुपये की आय हुई। जबकि, इसके पहले तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक एवं दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. एचएस उपाध्याय के समय में विश्वविद्यालय को रद्दी में महज तीन से चार लाख का रुपये की आय होती थी। इविवि सूत्रों का यह भी कहना है कि पहले रात के अंधेरे में रद्दी की बिक्री होती थी। जब दिन में रद्दी की बिक्री हुई तो हकीकत सामने आ गई।

वित्तीय अनियमितता की जांच को कमेटी गठित हुई

इसके अलावा प्रो. उपाध्याय के कार्यकाल में हुई अन्य वित्तीय अनियमितता की जांच के लिए कुलपति रतन लाल हांगलू ने 20 दिसंबर 2018 को जांच कमेटी गठित की थी। कमेटी ने जो अंतरिम रिपोर्ट दी है, उसे बीते शुक्रवार को हुई कार्य परिषद की बैठक में रखा गया था। जांच में प्रो. उपाध्याय को प्रथम दृष्टया वित्तीय अनियमितता का दोषी पाया गया है। हालांकि कार्य परिषद ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। कार्य परिषद ने इस पूरे मामले की जांच किसी अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति से करवाने की सिफारिश की है।

बता दें कि प्रो. उपाध्याय के पास पूर्व में एक साथ कई अहम पदों का प्रभार था। इसमें रजिस्ट्रार, प्रवेश प्रकोष्ठ निदेशक, परीक्षा नियंत्रक, चीफ प्रॉक्टर का प्रभार शामिल था। इस मामले में इविवि के संपत्ति अधिकारी राजीव मिश्र से बात करने का प्रयास किया गया, लेकिन उनका फोन बंद होने के कारण बात नहीं हो सकी।

प्रोफेसर उपाध्‍याय बोले

प्रो. एचएस उपाध्याय ने कहा कि आरोप निराधार है। रद्दी की नीलामी और वित्तीय मामलों में परीक्षा नियंत्रक की कोई भूमिका होती ही नहीं है। यह सारा काम संपत्ति अधिकारी का होता है। इसके लिए कुलपति से अप्रूवल लेना होता है। इसके बाद नीलामी की प्रक्रिया होती है।

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