बेकार सामान से तैयार करते है विज्ञान के प्रोजेक्ट, प्रतापगढ़ के शिक्षक अनिल कुमार की इस तकनीक से बच्चों की विज्ञान की पढ़ाई में बढ़ती है रूचि
शिक्षक अनिल बेकार से सरोकार पहल के माध्यम से विद्यालय के विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रोजेक्ट बनाने का प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं। खास बात यह है कि प्रोजेक्ट बनाने में प्रयोग की जा रही अधिकतर वस्तुएं वे हैं जिनको प्रयोग करके उन्हें कूड़े में फेंक दिया जाता है।
प्रयागराज, जेएनएन। कुछ कर गुजरने की दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो क्या नहीं हो सकता। तमाम वैज्ञानिक प्रयोग करने के लिए मंहगे उपकरण खरीदना मजबूरी समझी जाती है, मगर बेकार सामान से ही वैज्ञानिक प्रयोग की तकनीक को आसान कर देने का कमाल कोई शिक्षक अनिल कुमार निलय से पूछे।
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सराय आनादेव में शिक्षक के रूप में सेवा दे रहे अनिल ने बेकार से सरोकार की पहल की है। बेकार वस्तुओं से विज्ञान के प्रोजेक्ट बनाना वह बच्चों को सिखा रहे हैं। कूड़े में फेंकी गई प्लास्टिक की बोतलों, दफ्ती, गत्ते, पेपर आदि वस्तुओं से वह विज्ञान के छोटे-छोटे प्रोजेक्ट जैसे मानव पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र आदि बनवा रहे हैं। शिक्षक अनिल बेकार से सरोकार पहल के माध्यम से विद्यालय के विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रोजेक्ट बनाने का प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं। खास बात यह है कि प्रोजेक्ट बनाने में प्रयोग की जा रही अधिकतर वस्तुएं वे हैं जिनको प्रयोग करके उन्हें कूड़े में फेंक दिया जाता है। अनिल के अनुसार बेकार से सरोकार पहल के दो मुख्य उद्देश्य हैं। पहला उद्देश्य तो यह है कि विज्ञान के सिद्धांतों एवं नियमों को रोचक ढंग से समझने-समझाने के लिए सरल, शून्य निवेश एवं स्वनिर्मित प्रोजेक्ट बनाना। दूसरा प्रमुख उद्देश्य है विद्यार्थियों को संसाधनों का पुन: प्रयोग करना सिखाना। इसके साथ ही संसाधनों के पुन: प्रयोग का महत्व भी उनके द्वारा बताया जा रहा है।
अनिल कहते हैं कि कि विज्ञान विश्व के रोम-रोम में बसता है। अत: विज्ञान सीखने के लिए किताबों से बाहर निकलकर प्राकृतिक एवं मानव निर्मित संसाधनों में विज्ञान तलाशना एक दिलचस्प प्रक्रिया है।बेकार से सरोकार में कूड़े में फेंकी गई प्लास्टिक की बोतलों, दफ्ती, गत्ते, पेपर आदि वस्तुओं का प्रयोग करके विज्ञान के छोटे-छोटे प्रोजेक्ट बनाना सिखा रहे हैं। इनमें मानव पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र, मस्तिष्क, रक्त परिसंचरण तंत्र, ऊर्जा के स्रोत, परावर्तन एवं अपवर्तन, आवर्त सारणी आदि बनाने का कार्य किया जा रहा है।
विद्यार्थियों के लिए यह रोचक एवं आनंददायक है। जिन वस्तुओं को सब बेकार समझकर फेंक दे रहे हैं, विद्यार्थियों को उनसे विज्ञान के प्रोजेक्ट बनाने एवं उनके माध्यम से विज्ञान को समझने का अवसर मिल रहा है। रचनात्मकता और सृजनशीलता के गुणों का विकास भी इस पहल से विद्यार्थियों में हो रहा है। विज्ञान विषय के प्रति उनकी समझ एवं रूचि भी बढ़ रही है।