Lok Sabha Election 2019 : गंगा के भरोसे पूर्वांचल साधने की तैयारी में प्रियंका

18 मार्च को प्रियंका गांधी प्रयागराज आएंगी। यहां से गंगा में जलमार्ग से वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी जाएंगी। इसके माध्‍यम से पूर्वांचल साधने की तैयारी कांग्रेस की है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Fri, 15 Mar 2019 10:01 PM (IST) Updated:Fri, 15 Mar 2019 10:01 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019 : गंगा के भरोसे पूर्वांचल साधने की तैयारी में प्रियंका
Lok Sabha Election 2019 : गंगा के भरोसे पूर्वांचल साधने की तैयारी में प्रियंका
गुरुदीप त्रिपाठी, प्रयागराज : लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। पार्टियां गठबंधन बनाने से लेकर उम्मीदवार तक पर मंथन कर रही हैं। उद्देश्य सिर्फ यही है कि कैसे बने उनकी सरकार। सत्तारूढ़ दल भाजपा इस बार 'मोदी है तो मुमकिन है...' के नारे के साथ जीत का दावा कर रही है। वहीं, प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस अपने ट्रंप कार्ड प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ बदलाव की आस लगाए बैठी है। जिस प्रदेश से लोकसभा की राह आसान होती है, उसके पूर्वी हिस्से की कमान पार्टी महासचिव बनाकर प्रियंका को सौंपी गई है। सपा बसपा गठबंधन ने भी लड़ाई को दिलचस्प बना बड़ा दाव खेला है। मां गंगा के भरोसे पूर्वांचल कितना सधेगा, यह समय ही बताएगा लेकिन कांग्रेसियों की उम्मीदें फिलहाल परवान चढ़ गई हैं।

पार्टी को प्रियंका से पूर्वांचल में करिश्मे की उम्मीद
दरअसल, प्रियंका गांधी से उनकी पार्टी अमेठी और रायबरेली की तरह ही पूरे पूर्वांचल में करिश्मे की उम्मीद लगाए है। अपेक्षा पर खरा उतरने के लिए प्रियंका भी पुरजोर कोशिश कर रही हैं। उनका पूरा जोर पूर्वी उत्तर प्रदेश पर केंद्रित है। वह अपने परनाना पंडित जवाहर लाल नेहरू की संसदीय सीट फूलपुर को साधने के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में घेरने की तैयारी में है। इसी रणनीति के तहत 18 मार्च को उनका प्रयागराज पहुंचने का कार्यक्रम है। वह स्वराज भवन में रात्रि प्रवास कर न केवल प्रयागराज बल्कि पूरे पूर्वांचल को यह संदेश देना चाहती हैं कि वह उनके बीच की ही हैं और अपनी विरासत को फिर से संभालने को तैयार हैं।

साफ्ट हिंदुत्व के साथ गंगा प्रेम भी दिखाना चाहती हैं प्रियंका

प्रियंका इस चुनावी यात्रा से सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ अपने गंगा प्रेम को भी दिखाना चाहती हैं। प्रयागराज के रास्ते पीएम की कुर्सी को साधने की जुगत में लगीं प्रियंका की इस पहल के मायने चुनावी जानकार निकाल रहे हैं। मां गंगा के साथ बाबा विश्वनाथ का हाथ और साथ कांग्रेस को मिलता है अथवा नहीं, यह तो परिणाम ही बताएगा, पर प्रियंका के इस दांव ने भाजपा समेत सभी विपक्षी दलों में बेचैनी जरूर बढ़ा दी है।

गंगा की सफाई और राजनीतिक तीर
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा 18 मार्च को प्रयागराज में रुककर 19 मार्च को सुबह जलमार्ग से स्टीमर से वाराणसी जाएंगी। उनके साथ चार स्टीमर रहेंगे। स्टीमर पर उनके साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजबब्बर, एआइसीसी पूर्वी उत्तर प्रदेश के तीन सचिव जुबैर अहमद, बाजीराव खाडे और सचिन नाईक रहेंगे। जलमार्ग से प्रयागराज से वाराणसी के बीच की दूरी करीब 110 किलोमीटर है। प्रियंका के जलमार्ग से जाने का एक अर्थ यह निकाला जा रहा है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नमामि गंगे प्रोजेक्ट की जमीन हकीकत देखना चाहती हैं कि वास्तव में गंगाजल कितना स्वच्छ है।

गंगा की अविरलता-निर्मलता हो सकता है चुनावी भाषण का विषय
गंगा की अविरलता-निर्मलता उनके चुनावी भाषण का विषय हो सकता है। सियासी जानकार मानते हैं कि प्रियंका ने जलमार्ग का रास्ता सॉफ्ट हिंदुत्व और गंगा प्रेम को दिखाने के लिए चुना है। इसके अलावा वह प्रयागराज से वाराणसी के बीच पडऩे वाले चार लोकसभा सीटों फूलपुर, भदोही, मीरजापुर और वाराणसी को भी साधेंगी। चारों लोकसभा सीटों में करीब 55 लाख मतदाता हैं।

संभाल सकती हैं परनाना की विरासत

प्रियंका गांधी वाड्रा अपने परनाना पंडित जवाहर लाल नेहरू की विरासत संभालने के लिए फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव भी लड़ सकती हैं। इस सीट पर 1984 के बाद कांग्रेस को सिर्फ हार मिल रही है। यहां से उनके परनाना तीन बार निर्वाचित हुए थे। इसके बाद इसी सीट से पं. नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित दो बार निर्वाचित हुईं। विश्वनाथ प्रताप सिंह भी कांग्रेस से इस सीट से लोकसभा पहुंचे थे। 1984 में रामपूजन पटेल आखिरी बार कांग्रेस से इस सीट पर निर्वाचित हुए। इसके बाद यह सीट कांग्रेस के हाथ नहीं आई। ऐसे में प्रियंका पूर्वांचल की चुनावी वैतरणी पार करने के लिए और परनाना की विरासत को संभालने के लिए फूलपुर से चुनाव भी लड़ सकती हैं। फिलहाल यह निर्णय पार्टी हाईकमान को करना है।

'भइयाजी' से भैया को उम्मीद
'भइयाजी' यानी प्रियंका से भैया राहुल गांधी को काफी उम्मीदें हैं। यही वजह है कि उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की बागडोर सौंपी गई है। दरअसल, बचपन में राजीव गांधी और सोनिया गांधी के साथ अमेठी जाने पर प्रियंका के बाल हमेशा छोटे रहते थे। गांव में ज्यादातर लोग राहुल की तरह उन्हें भी भइया बुलाने लगे, जो बाद में बदल कर भइयाजी हो गया।
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