आज मैं 87 बरस का हो गया

शरद द्विवेदी, इलाहाबाद : मैं इलाहाबाद संग्रहालय हूं। आज मैं 87 साल का हो गया। मेरी पैदाइश की कहानी र

By JagranEdited By: Publish:Mon, 27 Feb 2017 07:05 PM (IST) Updated:Mon, 27 Feb 2017 07:05 PM (IST)
आज मैं 87 बरस का हो गया
आज मैं 87 बरस का हो गया

शरद द्विवेदी, इलाहाबाद : मैं इलाहाबाद संग्रहालय हूं। आज मैं 87 साल का हो गया। मेरी पैदाइश की कहानी रोचक है। बात बहुत पुरानी है। हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था। हर जगह अंग्रेजी हुकूमत का राज था। इसका फायदा उठाकर अंग्रेज अफसर यहां की धरोहरों को अपने देश ले जा रहे थे। इन्हीं धरोहरों में शामिल थी पुरातात्विक महत्व बताने वाली मूर्तियां, सिक्के, पेंटिंग। इसका बड़ी वजह थी कि प्राचीन धरोहरों को संजोने के लिए कोई उचित स्थान नहीं था। फिर इसकी आवश्यकता महसूस करते हुए सामूहिक राय पर कंपनीबाग परिसर में सन 1863 में पब्लिक लाइब्रेरी के साथ मेरी नींव (इलाहाबाद संग्रहालय) रखी गई, सन 1878 में मैं अस्तित्व में आ गया। लेकिन अपरिहार्य कारणों से तीन साल बाद मुझे बंद कर दिया गया। इससे जिन धरोहरों को मैंने अपने अंदर समाहित किया था वह पुन: बाहर जाने लगीं।

इससे व्यथित इलाहाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड के अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू ने बृजमोहन व्यास, महामना मदनमोहन मालवीय, आरसी टंडन की सलाह पर धरोहरों को बचाने की ठानी। इनके प्रयास से 28 फरवरी 1931 को महानगर पालिका में एक कमरे में मुझे (संग्रहालय) अस्तित्व में लाया गया। कौशांबी, जमशेद, खजुराहो की मूर्तियां मुझमे रखकर अंग्रेज सरकार को संदेश दिया गया कि भारत की धरोहर यहीं रहेंगी। मेरे आगोश में धीरे-धीरे मूर्तियों की संख्या बढ़ी, परंतु आम जनमानस उससे अनभिज्ञ था।

देश को आजादी मिलने के बाद 14 दिसंबर 1947 में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की शहादत स्थल से चंद दूरी पर कंपनीबाग परिसर में मेरे (संग्रहालय) नए भवन की नींव रखी। बिल्डिंग तैयार हुई तो 1953 में मैं नए भवन में आ गया। इस तरह से संग्रहालय लगभग पूरी तरह से नई बिल्डिंग में आ गया और आम जनता उसका दीदार करने आने लगी। संग्रहालय के निदेशक राजेश पुरोहित कहते हैं कि आज हमारे पास 18 गैलरियों में प्रदर्शित हजारों कलाकृतियां, मूर्तियां, अस्त्र-शस्त्र, राजा-महाराजा व नेताओं के कपड़े, बर्तनों का बेशकीमती खजाना है।

संग्रहालय में क्या है खास

संग्रहालय में महात्मा गांधी का अस्थि कलश जिस वाहन से संगम ले जाया गया वह यहां मौजूद है। प्राचीनकाल के 30 हजार से अधिक स्वर्ण, रजत व कांस्य की मुद्राएं हैं। शुंगयुगीन भरहुत की कलाकृतियां, कौशांबी की बुद्ध प्रतिमा, गांधार कला में निर्मित बोधिसत्व मैत्रेय प्रतिमा, भूमरा के गुप्तयुगीन शिव मंदिर के अवशेष, खोह का एकमुखी शिवलिंग, जमशेद की प्रतिमाएं, रूसी चित्रकार निकोलस रोरिक, जर्मन पेंटर अनागार्गिक, बंगाल के असित हालदार, जेमिनी राय, अवनींद्रनाथ टैगोर, वीएन राय के चित्र, चंद्रशेखर आजाद की पिस्तौल, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू सहित कई नेताओं के कपड़े व बर्तन यहां सुरक्षित हैं।

तकनीक से जुड़ा संग्रहालय

बदलते दौर में इलाहाबाद संग्रहालय को तकनीक से जोड़कर उसकी ख्याति दुनियाभर में फैलायी गई। संग्रहालय की वेबसाइट में कोई भी व्यक्ति यहां रखी सामग्रियों का दीदार करने के साथ उसकी खासियत जान सकता है।

आज निकलेगी विरासत यात्रा

इलाहाबाद संग्रहालय के स्थापना दिवस पर मंगलवार की सुबह नगर निगम से संग्रहालय तक विरासत यात्रा निकाली जाएगी। साथ ही दिन में 11 बजे व्याख्यान का आयोजन होगा।

वर्जन

संग्रहालय का इतिहास जितना गौरवपूर्ण है, भविष्य उतना ही उज्ज्वल है। हमारा प्रयास लोगों को उनकी विरासत से जोड़कर आगे बढ़ाना है, जिसकी मुहिम निरंतर चल रही है।

-राजेश पुरोहित, निदेशक इलाहाबाद संग्रहालय

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