तीर्थराज प्रयाग: प्रतिष्ठानपुर से कौशांबी तक था अकबरकालीन इलाहाबाद

प्रयाग को तीर्थराज कहा गया है। यहां बसे नगर का नाम प्रयागराज पड़ा। एक निश्चित कालखंड के लिए तीर्थराज ने इलाहाबाद नाम की ओढ़नी ओढ ली थी लेकिन अब फिर प्रयागराज नाम से जाना जाएगा।

By Nawal MishraEdited By: Publish:Tue, 16 Oct 2018 05:08 PM (IST) Updated:Wed, 17 Oct 2018 12:41 PM (IST)
तीर्थराज प्रयाग: प्रतिष्ठानपुर से कौशांबी तक था अकबरकालीन इलाहाबाद
तीर्थराज प्रयाग: प्रतिष्ठानपुर से कौशांबी तक था अकबरकालीन इलाहाबाद

इलाहाबाद (जेएनएन)। अकबरकालीन इलाहाबाद की सीमाएं पूर्व में प्रतिष्ठानपुर (झूंसी) से पश्चिम में कौशांबी तक व उत्तर में गंगा और दक्षिण में यमुना तक सीमित थीं। अकबरनामा और आईने अकबरी तथा अन्य मुगलकालीन ऐतिहासिक पुस्तकों से यही जानकारी मिलती है। मुगल शासक अकबर ने 1574 ई. के लगभग यहां पर किले की नींव डाली थी। इसके बाद एक नया नगर बसाया, जो अब इलाहाबाद के नाम से जाना जाता है।भारद्वाज आश्रम से झूंसी तक था गंगा का क्षेत्र

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी बताते हैं कि हिंदी नाम इलाहाबाद का अर्थ अरबी शब्द इलाह (अकबर द्वारा चलाए गए नये धर्म दीन-ए-इलाही) के संदर्भ से अल्लाह के लिए एवं फारसी से आबाद अर्थात बसाया हुआ था। इसे ईश्वर द्वारा बसाया गया ईश्वर का शहर भी कहा जाता है। प्राचीन समय में प्रयाग कोई नगर नहीं था बल्कि तपोभूमि थी। यदि प्रयाग की कोई बस्ती उस समय रही होगी तो वह भारद्वाज आश्रम के आसपास कहीं रही होगी। भारद्वाज आश्रम से झूंसी तक पहले गंगा का क्षेत्र था। उस समय संगम कहीं चौक से पूर्व और दक्षिण अहियापुर में रहा होगा। धीरे-धीरे इन नदियों के स्थान में परिवर्तन आया। आज जिस इलाहाबाद को हम देखते हैं उसका अधिकांश भाग अकबर के समय में बसा पर अतरसुइया इसके पहले का पुराना मोहल्ला है। खुल्दाबाद जहांगीर के समय में बसा, दारागंज दाराशिकोह के नाम पर कायम हुआ। कटरा औरगंजेब के समय में जयपुर के महाराजा सवाईसिंह ने बसाया था। 

...तो फिर प्राचीन नगर का क्या हुआ

जब अकबर द्वारा नए नगर इलाहाबाद की स्थापना हुई तो सवाल उठता है कि प्राचीन प्रयाग का क्या हुआ। माना जाता है कि किले के निर्माण के पूर्व ही प्रयाग गंगा की बाढ़ के कारण नष्ट अथवा बहुत छोटा हो गया। इस बात की पुष्टि वर्तमान भूमि के अध्ययन से भी होती है। प्रो. हेरम्ब चतुर्वेंदी बताते हैं कि वर्तमान प्रयाग रेलवे स्टेशन से भारद्वाज आश्रम, गवर्नमेंट हाउस, गवर्नमेंट कालेज तक का ऊंचा स्थल गंगा का प्राचीन तट था। पूरब की नीची भूमि गंगा का पुराना कछार थी। संगम पर बने किले की रक्षा के लिए त्रिवेणी तथा बख्शी बांध बनाए गए थे। वर्तमान खुसरो बाग तथा उसमें स्थित मकबरे जहांगीर के काल के बने बताए जाते हैं। 

अंतिम काल में नगर की दशा अच्छी नहीं थी 

मुगलकालीन शासन के अंतिम काल में नगर की दशा अच्छी नहीं थी और उसका विस्तार (ग्रैंड ट्रंक रोड के दोनों ओर) बाढ़ से रक्षित भूमि तक ही सीमित था। सन 1801 में नगर अंग्रेजों के हाथ आया, तब उन्होंने यमुनातट पर किले के पश्चिम में अपनी छावनियां बनाईं। बाद में वर्तमान ट्रिनिटी चर्च के आसपास भी इनके बंगले तथा छावनियां बनीं। सन 1857 के गदर में ये छावनियां नष्ट कर दी गईं और नगर को बहुत क्षति पहुंचीं। गदर के बाद 1858 में इलाहाबाद को उत्तरी पश्चिमी प्रांतों की राजधानी बनाया गया। 

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