परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय में लंबे समय से चल रहा अंकों का खेल

बल्कि यहां लंबे समय से अंकों की हेराफेरी का खेल चल रहा है। इस कार्य में वर्षों से कार्य कर रहे कर्मचारी संलिप्त हैं और अंगुली हर बार अफसरों की ओर उठी है।

By Ashish MishraEdited By: Publish:Tue, 18 Sep 2018 09:10 AM (IST) Updated:Tue, 18 Sep 2018 09:52 AM (IST)
परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय में लंबे समय से चल रहा अंकों का खेल
परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय में लंबे समय से चल रहा अंकों का खेल

इलाहाबाद [धर्मेश अवस्थी]। प्रदेश की परीक्षा संस्थाओं में परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय उप्र सबसे पुराना और खासा अहम है। भर्ती संस्थाओं पर इन दिनों भ्रष्टाचार के लगातार आरोप लग रहे हैं। वह चाहे प्रश्नपत्र लीक होना हो या फिर अंकों की बाजीगरी के मामले हों। इससे यह कार्यालय भी अछूता नहीं है, बल्कि यहां लंबे समय से अंकों की हेराफेरी का खेल चल रहा है। इस कार्य में वर्षों से कार्य कर रहे कर्मचारी संलिप्त हैं और अंगुली हर बार अफसरों की ओर उठी है।

सूबे में प्राथमिक व अन्य विद्यालयों में शिक्षक बनने वालों की परीक्षा कराने की जिम्मेदारी इसी कार्यालय पर है। पहले इस कार्यालय से संबद्ध कालेज व प्रशिक्षुओं की संख्या गिनी-चुनी रही है लेकिन, पिछले पांच वर्षों में निजी कालेजों की बाढ़ आने से प्रशिक्षुओं की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। साथ ही टीईटी जैसी परीक्षाएं भी इसी कार्यालय को मिली हैं। यही नहीं शिक्षक भर्ती में बीटीसी आदि के अंक भी जुड़ रहे हैं,

हर प्रशिक्षु सेमेस्टर परीक्षा में अधिक अंक पाना चाहता है। तमाम प्रशिक्षु कालेज जाते नहीं वे आंतरिक अंकों पाने के लिए शिक्षकों की हर शर्त मानते हैं। वाह्य परीक्षा में उम्दा अंक पाने के लिए वे कार्यालय की परिक्रमा करते रहे हैं। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों का बुरा हाल है। ऐसे में परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय में लंबे समय से जमे कर्मचारी अंकों का खेल करते आ रहे हैं।

अंकों की यही हेराफेरी बड़ी परीक्षाओं में होने से परीक्षा संस्था निशाने पर हैं। इसमें भी कर्मचारियों पर किसी की निगाह नहीं है, वे पूरी तरह से सुरक्षित हैं। हर कोई अफसरों को ही कोस रहा है, जबकि यहां अफसर निरंतर बदलते रहे हैं। लंबे समय से तैनात कर्मचारियों के हटे बिना परीक्षा की शुचिता बनाए रखना मुश्किल होगा। नए सचिव अनिल भूषण चतुर्वेदी कहते हैं कि वे परीक्षा परिणाम को पारदर्शी बनाए रखने को हर कदम उठाएंगे।

यूपी बोर्ड से पुरानी है संस्था

प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए रजिस्ट्रार विभागीय परीक्षाएं उप्र की स्थापना 1872 में हुई थी। यूपी बोर्ड के गठन से पहले यही संस्था सारी परीक्षाएं कराती थी। 1981 में राज्य शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद की स्थापना के बाद प्रशिक्षु अध्यापकों की परीक्षा का कार्य इसी विभाग को सौंपा गया।

11 स्तर के अफसर व कर्मचारी

कार्यालय में सचिव, रजिस्ट्रार, उप रजिस्ट्रार सहित 11 स्तर के अफसर व कर्मचारियों के पद हैं। इनमें अफसर तो इधर से उधर होते रहे हैं पर, अधिकांश कर्मचारी वर्षों से यहीं कार्यरत हैं।

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