संगमनगरी में बाहर से मंगाकर तैयार करते हैं 'मौत की घूंट, हरियाणा और मध्य प्रदेश से आती है स्प्रिट की खेप

एक तौर पर खुफिया दारू की पूरी फैक्ट्री संचालित होती है। इस खुफिया दारू को सरकारी ठेकों पर भी सेटिंग कर बेचा जाता है। इसमें स्प्रिट या यूरिया की अधिकता होने के कारण यह शराब जहरीली हो जाती है जिससे इसका सेवन करने वालों की मौत तक हो जाती है।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Sat, 20 Mar 2021 04:00 PM (IST) Updated:Sat, 20 Mar 2021 04:00 PM (IST)
संगमनगरी में बाहर से मंगाकर तैयार करते हैं 'मौत की घूंट, हरियाणा और मध्य प्रदेश से आती है स्प्रिट की खेप
हंडिया और फूलपुर में घटनाएं हुई उससे साफ है कि 'मौतों की यह फैक्ट्री इसी क्षेत्र में कहीं हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। जनपद में गंगापार का हंडिया और फूलपुर इलाका। पांच माह के भीतर जहरीली शराब ने इस एरिया में कई लोगों की जान ले ली है। इस जहरीली शराब को ग्रामीण खुफिया दारू भी कहते हैं। 'मौत के इस सामान को दूसरे राज्यों से मंगवाया जाता है, लेकिन इसे तैयार यहीं किया जाता है। बाकायदा इसके लिए कारखाना भी होता लेकिन कहां यह किसी को नहीं पता। लेकिन यह भी तय है कि जिस प्रकार से हंडिया और फूलपुर में घटनाएं हुई हैं, उससे साफ है कि 'मौतों की यह फैक्ट्री इसी क्षेत्र में कहीं हैं।

झारखंड से आर्डर देकर मंगवाया जाता है रैपरखुफिया दारू तैयार करने के लिए सबसे पहले जरूरत रेक्टीफाइड केमिकल (स्प्रिट) की होती है। इसलिए इसकी खेप को हरियाणा और मध्य प्रदेश से मंगवाया जाता है। चोरी-छिपे स्प्रिट को ट्रक या अन्य किसी वाहन से लाया जाता है। स्प्रिट आने के बाद इसे पानी में घोल लिया जाता है। इसमें कैरोमल केमिकल (लाल रंग) मिलाया जाता है। यूरिया और अन्य केमिकल की मदद से इसे तैयार किया जाता है। शीशी में भरने के बाद इस पर रैपर भी लगाया जाता है, लेकिन यह रैपर नकली होता है। इसे भी दूसरे राज्य यानि झारखंड से आर्डर देकर मंगवाया जाता है। यही नहीं सब कुछ तैयार होने के बाद इसमें सील भी लगती है। इसके लिए मशीन भी होती है। यानि एक तौर पर खुफिया दारू की पूरी फैक्ट्री संचालित होती है। इस खुफिया दारू को सरकारी ठेकों पर भी सेटिंग कर बेचा जाता है। इसमें स्प्रिट या यूरिया की अधिकता होने के कारण यह शराब जहरीली हो जाती है, जिससे इसका सेवन करने वालों की मौत तक हो जाती है।

मजदूर तबके के लोग करते हैं इस्तेमाल

खुफिया दारू का इस्तेमाल अधिकांश मजदूर तबके के लोग करते हैं। ब्रांडेड कंपनी की शराब से दस रुपये कम में ये मिलती है। दस रुपये बचाने की कोशिश में यह लोग जहरीली दारू पीकर अपनी जान गंवा देते हैं। ठेकों से शराब खरीदते हुए यह भी नहीं देखते है कि यह कौन सी ब्रांड की है। एडीजी प्रेम प्रकाश ने सभी सरकारी शराब के ठेकों के बाहर शराब के ब्रांड की सूची लगवाने के निर्देश दिए हैं। 

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