इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हॉस्टल बने अपराधियों का मुफीद अड्डा

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हॉस्टल अपराधियों का मुफीद अड्डा है। वारदात के बाद अपराधी प्रवृत्ति के लोगों के वारदात के बाद यहां शरण लेने की बात सामने आती रही है।

By Edited By: Publish:Fri, 19 Apr 2019 07:20 AM (IST) Updated:Fri, 19 Apr 2019 10:44 AM (IST)
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हॉस्टल बने अपराधियों का मुफीद अड्डा
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हॉस्टल बने अपराधियों का मुफीद अड्डा
प्रयागराज : किसी जमाने में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हॉस्टलों का काफी क्रेज था। यहां रहने वाले छात्रों का डंका देश और विदेशों में भी बजा। आइएएस, पीसीसी के साथ अन्‍य प्रमुख उच्‍च पदों पर आसीन हुए तो राजनीति के क्षेत्र में भी मुकाम बनाई। वहीं अब धीरे-धीरे जिम्‍मेदारों की उदासीनता के चलते अपराधियों का अड्डा बन गया है।

हॉस्टलों में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की तूती बोलती है
 इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हॉस्टलों में कभी ऐसे छात्र भी रहते थे जो अलग-अलग क्षेत्रों में शिखर तक पहुंचे हैं। आज विश्वविद्यालय प्रशासन व जिम्मेदार लोगों की उदासीनता के कारण ये हॉस्टल अपराधियों का अड्डा बन गए हैं। सभी हॉस्टलों में बड़ी संख्या में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की तूती बोलती है। यह अपराधियों की शरण स्थली जैसा है। स्थिति यह है इन हास्टलों में पढ़ने वाले छात्र भी उनसे भयभीत रहते हैं।

रोहित की हत्या के बाद सक्रिय हुई पुलिस व इविवि प्रशासन
रोहित शुक्ला की हत्या के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद इन दिनों पुलिस व इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन काफी सक्रिय हो गया। ताराचंद, पीसीबी, पीसीबी एनेक्सी, सर सुंदर लाल, डायमंड जुबली हॉस्टल में छापेमारी के दौरान बम, पिस्टल, बीयर की बोतलें जैसी चीजें पाई गई हैं। स्थिति यह है कि जब हाईकोर्ट का आदेश होता है या कोई बड़ी घटना होती है तभी विश्वविद्यालय के जिम्मेदार लोग हॉस्टलों में जाते हैं बाकी दिनों उनका हॉस्टलों से कोई लेना देना नहीं रहता है। यदि समय-समय पर हॉस्टलों में छानबीन की जाए और अंत:वासियों की हाजिरी ली जाए या औचक निरीक्षण किया जाय तो शायद इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकता है।

छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष विनोद दुबे ने कहा, उन दिनों अनुशासन होता था 
पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष विनोद चंद्र दुबे कहते हैं कि मैंने वर्ष 1960 से लेकर 67 तक पीसीबी में रहकर पढ़ाई की। उन दिनों अनुशासन होता था। कुलपति खुद हॉस्टलों में आते थे और छात्रों की समस्याओं से रूबरू होते थे लेकिन आज ऐसा नहीं है। रात साढ़े नौ बजे सभी हॉस्टलों के गेट बंद हो जाते थे। उसके बाद कोई बाहर नहीं निकल सकता था। देर में हॉस्टल आने वाले अंत:वासियों से कारण पूछा जाता था। इन्हीं हॉस्टलों में रहकर पढ़ाई करने वाले छात्र आइएएस, आइपीएस,पीपीएस,राजनेता और साहित्यकार निकले हैं।
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