Birth Anniversary of Dudhanath Singh : 'छपने के लिए नहीं' में उजागर होगा लेखकों का 'चाल, चरित्र व चेहरा'

Birth Anniversary of Dudhanath Singh बलिया में 17 अक्टूबर 1936 को जन्में कथाकार दूधनाथ सिंह 1956 में प्रयागराज आए और यहीं के होकर रह गए। इविवि से 1958 में एमए करने के बाद नौकरी के लिए भटकने लगे। उनके मित्र वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. राजेंद्र कुमार उन्हें अद्वितीय रचनाकार बताते हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 17 Oct 2020 12:00 AM (IST) Updated:Sat, 17 Oct 2020 09:03 AM (IST)
Birth Anniversary of Dudhanath Singh : 'छपने के लिए नहीं' में उजागर होगा लेखकों का 'चाल, चरित्र व चेहरा'
हिंदुस्तानी एकेडमी में दूधनाथ सिंह के साथ समालोचक रविनंदन सिंह। फाइल फोटो

प्रयागराज, [शरद द्विवेदी]। Birth anniversary of Dudhanath Singh कहते हैं शब्दों की धार तलवार की धार से भी तेज होती है। छोटी और सलीकेदार सफेद दाढ़ी, अक्खड़पन, बेपरवाह और अपनी बेबाक शैली के लिए प्रसिद्ध कथाकार मंच या बैठक में गलत बात पर किसी को भी फटकार लगा देते थे। ऐसे थे सपाट चेहरे वाला आदमी के लेखक दूधनाथ सिंह।

पुस्‍तक के रूप में प्रकाशित होने वाली है डायरी

डायरी के कुछ पन्ने सामने आने के बाद साहित्य जगत में हलचल मची थी और अब तो पूरी डायरी प्रकाशित होने जा रही है। दूधनाथ सिंह ने 15 साल में सात डायरियां लिखी थीं। डायरियों में साहित्यकारों के कृतित्व, व्यक्तित्व, व्यवहार व उनके लेखन को लेकर टिप्पणी है। उन्होंने लेखकों के असली 'चाल, चरित्र व चेहरा' को उजागर किया है। दूधनाथ ने अपने बारे में भी टिप्पणी की है। वो डायरी 'छपने के लिए नहीं' नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित होने वाली है। उनके शिष्य सुधीर सिंह चार-पांच माह में पुस्तक का प्रकाशन कराने को प्रयासरत हैं।

दूधनाथ ने किसके बारे में क्या लिखा होगा? उसे लेकर रचनाकार सशंकित हैं। सुधीर सिंह बताते हैं कि डायरी में कई रचनाकारों पर महत्वपूर्ण टिप्पणी है। 'छपने के लिए नहीं' नाम गुरु दूधनाथ ने ही सुझाया था। मुझे निर्देश दिया था कि डायरी में ज्यादा कुछ काटना-छांटना नहीं। मैं उसी के अनुरूप काम कर रहा हूं। 

बलिया में जन्‍में दूधनाथ प्रयागराज आए तो यहीं के होकर रह गए

बलिया जिला में 17 अक्टूबर 1936 को जन्में कथाकार दूधनाथ सिंह 1956 में प्रयागराज आए और यहीं के होकर रह गए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1958 में एमए करने के बाद दूधनाथ सिंह नौकरी के लिए भटकने लगे। दूधनाथ के मित्र वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. राजेंद्र कुमार उन्हें अद्वितीय रचनाकार बताते हैं। कहते हैं कि दूधनाथ कथाकार के साथ कविता, नाटक, उपन्यास व आलोचना में शानदार लेखन किया था। समालोचक रविनंदन सिंह कहते हैं कि दूधनाथ को लिखने-पढऩे का नशा था। गोष्ठियां, साहित्यिक उठापटकें, गप्पे, काफी हाउसिंग उनकी आजीविका के रास्ते के रोड़े थे।

नहीं प्रकाशित करा सके गुरु की ग्रंथावली

दूधनाथ सिंह अपने गुरु डॉ. धीरेंद्र वर्मा की समग्र पुस्तकों की ग्रंथावली राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित कराना चाहते थे। उन्होंने ब्योरा एकत्र कर लिया था। लेकिन, 12 जनवरी 2018 को उनकी मृत्यु होने से काम रुक गया। राजकमल के निदेशक आमोद महेश्वरी बताते हैं कि प्रकाशन की सामग्री दूधनाथ के बेटे अनिमेष के पास है, उनसे बातचीत चल रही है।

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