बाबू बैजनाथ सहाय ने दो साथियों संग मिलकर रखी थी प्रयाग संगीत समिति की नींव, बेच दिए थे पत्‍नी के गहने

संगम नगरी में प्रयाग संगीत समिति की स्थापना देश में भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रचार व प्रसार के साथ ही उसे लोकप्रिय बनाने के लिए किया गया था। आज समिति को संगीत की साधना करते 95 साल हो गए हैं। इस अवधि में संगीत समिति ने नए आयाम बनाए हैं।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Mon, 01 Feb 2021 03:30 PM (IST) Updated:Mon, 01 Feb 2021 03:30 PM (IST)
बाबू बैजनाथ सहाय ने दो साथियों संग मिलकर रखी थी प्रयाग संगीत समिति की नींव, बेच दिए थे पत्‍नी के गहने
वर्तमान में चंद्रशेखर आजाद पार्क में संचालित मुख्य शाखा के भवन का निर्माण 1948 में शुरू हुआ था।

प्रयागराज, जेएनएन। संगम नगरी में प्रयाग संगीत समिति की स्थापना देश में भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रचार व प्रसार के साथ ही उसे लोकप्रिय बनाने के लिए किया गया था। आज समिति को संगीत की साधना करते 95 साल हो गए हैं। इस अवधि में संगीत समिति ने कई नए आयाम बनाए हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत को न सिर्फ देश में मान-सम्मान दिलाया है बल्कि विदेशों में भी भारतीय संगीत की पताका लहराई है।

महाशिवरात्रि के दिन 1926 में हुई थी समिति की स्थापना

भारतीय शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के प्रति कृत संकल्प प्रयाग संगीत समिति की स्थापना आज से 95 वर्ष पहले सन् 1926 को 11 फरवरी को वर्तमान साउथ मलाका मुहल्ले में हुई थी। मौजूदा समय में शहर में समिति के चार संचालन केंद्र हैं जिमसें साउथ मलाका के अलावा चंद्रशेखर आजाद पार्क, झूंसी और जगत तारन कालेज में भी संगीत की कक्षाएं संचालित होती हैं। वर्तमान में चंद्रशेखर आजाद पार्क में संचालित मुख्य शाखा के भवन का निर्माण 1948 में शुरू हुआ था।

विदेशों में भी हैं संगीत समिति की शाखाएं

साउथ मलाका परिसर से शुरू होकर संगीत समिति का विस्तार आज देश ही नहीं विदेशों में भी हो चुका है। वर्तमान में देश-विदेश में तकरीबन दो हजार से अधिक शाखाएं हैं। समिति के सचिव अरुण कुमार बताते हैं कि संगीत रूपी यह पौधा रोपने और सींचने का काम बाबू बैजनाथ सहाय, मेजर रंजीत सिंह व सत्यानंद जोशी ने किया था। बाबू बैजनाथ सहाय ने तो संगीत समिति की नींव रखने के लिए वकालत के पेशे से होने वाली कमाई का एक बड़ा हिस्सा लगा दिया था। संगीत के प्रति उनमें इतनी दीवानगी थी कि धन की कमी पड़ने पर उन्होंने अपनी पत्नी के गहने तक बेचकर लगा दिए थे।

देश के नामचीन कलाकारों ने यहां दी हैं अपनी प्रस्तुतियां

प्रयाग संगीत समिति की प्रसिद्धि न केवल भारत बल्कि देश की सीमाओं से बाहर तक पहुंच चुकी है। समिति की शिक्षिका उमा दीक्षित बताती हैं कि संस्थान की शाखाएं नेपाल, इंग्लैंड, कनाडा, अमेरिका, सिंगापुर, मारीशस, स्पेन, जर्मनी, रूस, इंडोनेशिया सहित कई अन्य देशों में भी हैं। बताया कि प्रसिद्ध सितार वादक पं. रविशंकर, अली अकबर खां, गजल सम्राट जगजीत सिंह, शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खां, सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खां, तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन, शास्त्रीय गायिका गिरिजादेवी, कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज, तबला सम्राट पं. गुदई महाराज, पं. किशन महाराज, पं.राजन-साजन मिश्र, उस्ताद बड़े गुलाम अली खां सहित अन्य प्रख्यात कलाकार संगीत समिति में प्रस्तुतियां दे चुके हैं।

प्रतिवर्ष आयोजित होता है राष्ट्रीय स्तर का संगीत सम्मेलन

प्रयाग संगीत समिति में प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्तर की शास्त्रीय, उपशास्त्रीय और सुगम संगीत, वाद्य संगीत व नृत्य प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं जिसमें पूरे देश से चार से लेकर 30 वर्ष तक के पांच सौ से ज्यादा प्रतियोगी भाग लेते हैं, विजेताओं को पुरस्कृत भी किया जाता है। इसके अलावा चार-पांच दिनों का राष्ट्रीय संगीत सम्मेलन भी होता है जिसमें प्रख्यात कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है।

संगीत के आठ पाठ्यक्रमों की शिक्षा व परीक्षा का होता है आयोजन

प्रयाग संगीत समिति द्वारा संगीत के आठ पाठ्यक्रमों की शिक्षा दी जाती है व उनकी परीक्षा कराने के बाद प्रमाण पत्र दिए जाते हैं जिसमें दो वर्षीय जूनियर डिप्लोमा, चार साल का सीनियर डिप्लोमा, छह वर्ष का संगीत प्रभाकर, आठ वर्ष का संगीत प्रवीण और संगीत में शोध कार्य पूरा करने के बाद संगीताचार्य की उपाधि दी जाती है। समिति के सचिव अरुण कुमार के अनुसार संगीत समिति की प्रभाकर और प्रवीण की डिग्री क्रमश: बीए म्यूजिक और एमए म्यूजिक के समकक्ष मानी जाती है।

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