तीन दशक से कांग्रेस के साथ केमिस्ट्री ही नहीं रही, अर्थमेटिक भी गड़बड़ाई
इमरजेंसी के बाद कांग्रेस का एक और खराब प्रदर्शन इस बार के लोकसभा पोल में देखने को मिला है। यदि सपा-बसपा गठबंधन के ख्वाब टूटे तो कांग्रेस की रणनीति चकनाचूर हुई।
प्रयागराज, [विजय सक्सेना]। चुनाव में अर्थमेटिक नहीं, केमिस्ट्री का महत्व होता है। केमिस्ट्री का मतलब यहां समाज के विभिन्न वर्गों के समुच्चय से है। जिसके साथ जितना समाज, वह मैदान में सरताज। पिछले तीन दशक से कांग्रेस के साथ केमिस्ट्री ही नहीं रही। अर्थमेटिक तो गड़बड़ा गया है लिहाजा नतीजा इमरजेंसी के बाद वाले दौर जैसा रहा है ज्यादातर, सिर्फ वर्ष 1984 को छोड़कर। पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे दिग्गज की फूलपुर संसदीय सीट और लालबहादुर शास्त्री-हेमवती नंदन बहुगुणा की इलाहाबाद संसदीय सीट का नतीजा अब मंथन का सबब है कांग्रेस में। निचोड़ क्या होगा, यह समय बताएगा।
भाजपा की कामयाबी ने सब कुछ बदल दिया है
इस बार ब्रांड मोदी का असर कह लें अथवा भगवा लहर का असर, भारतीय जनता पार्टी की कामयाबी ने सब कुछ बदल दिया है प्रयागराज में। यदि सपा-बसपा गठबंधन के ख्वाब चूर-चूर हुए हैं तो कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी की रणनीति चकनाचूर हुई है। कांग्रेस की रणनीति वैसे भी कुछ थी ही नहीं। पहले चर्चा थी कि प्रियंका वाड्रा फूलपुर से किस्मत आजमा सकती हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यदि प्रियंका मैदान में होतीं तो शायद तस्वीर बदल सकती थी। वह पूर्वांचल में पार्टी प्रत्याशियों को जिताने में लगी रहीं लेकिन फूलपुर में रोड शो के लिए समय तक नहीं निकाल सकीं। संगम से उनकी गंगा यात्रा हुई जरूर, लेकिन कहीं प्रभाव नहीं छोड़ सकी। मीडिया में भरपूर स्पेस मिलने के बाद भी।
विश्लेषण
वर्ष 1977 में हुए आम चुनावों में गुस्सा मतपेटियों में उतरा था
-इलाहाबाद, फूलपुर और चायल सीट पर जीती थी जनता पार्टी
कांग्रेस पिछले कई चुनावों से दोनों संसदीय क्षेत्र से नहीं बचा सकी है जमानत
उधर इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र में भी पार्टी ने भाजपा के उस चेहरे को उतारा जिसका कांग्र्रेसी संस्कृति से दूर-दूर तक रिश्ता नहीं था। नतीजा यह हुआ कि इलाहाबाद और फूलपुर में कांग्र्रेस जमानत तक नहीं बचा सकी। वैसे कांग्र्रेस पिछले कई चुनावों से दोनों संसदीय क्षेत्र से जमानत बचाने के लिए तरसती रही है। 1984 के बाद से यही दृश्य बनता है संसदीय चुनावों में। नब्बे के दशक के उस चुनाव में रामपूजन पटेल फूलपुर तो अमिताभ बच्चन इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीते थे। उसके बाद से पार्टी प्रयागराज जिले में जीत को तरस रही है।
2019 के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों को मिले वोट
लोकसभा सीट इलाहाबाद
डॉ. रीता बहुगुणा जोशी (भाजपा) योगेश शुक्ला (कांग्र्रेस)
मिले मत 494454 31953
भाजपा को यहां कांग्रेस से 462501 मत अधिक मिले
लोकसभा सीट -फूलपुर
केशरी देवी पटेल (भाजपा) पंकज पटेल (कांग्रेस)
वोट मिले 544701 32761
भाजपा को यहां कांग्रेस से 511940 मत अधिक मिले
इमरजेंसी के बाद कांग्रेस का एक और खराब प्रदर्शन
इस बार जो तस्वीर है वह कुछ-कुछ वर्ष 1977 के संसदीय चुनाव जैसी है। इमरजेंसी खत्म होने के बाद हुए आम चुनाव में जनता पार्टी के सामने कांग्रेस नहीं टिक सकी। हालांकि तब जमानत बच गई थी। उस वक्त जिले में तीन लोकसभा सीटें हुआ करती थीं, इलाहाबाद, फूलपुर और चायल (अब कौशांबी)। तीनों जगह हार हुई थी पार्टी की। दरअसल तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्णयों से जबर्दस्त नाराजगी थी। जबरिया नसबंदी सबसे बड़ा कारण था। इलाहाबाद लोकसभा सीट से छोटे लोहिया के नाम से विख्यात दिग्गज नेता जनेश्वर मिश्र ने वीपी सिंह को हराया था। जनेश्वर ने वीपी सिंह को 89988 मतों से पराजित किया था। जनेश्वर को 190697 और वीपी को 100709 वोट प्राप्त हुए थे।
फूलपुर और चायल सीट का वह नजारा था
फूलपुर में जनता पार्टी के टिकट से कमला बहुगुणा मैदान में थीं, उनका मुकाबला कांग्रेस के रामपूजन पटेल से था। कमला को 205038 और रामपूजन को मात्र 82686 वोट प्राप्त हुए थे। कमला बहुगुणा ने रिकॉर्ड 122352 मतों से जीत दर्ज की थी। चायल सीट पर जनता पार्टी के प्रत्याशी राम निहोर राकेश का मुकाबला कांग्रेस के जगदीश प्रसाद से था। राम निहोर ने जगदीश प्रसाद को 116721 मतों से मात दी थी। रामनिहोर को 174012 और जगदीश प्रसाद को 57291 वोट मिले थे।
बोले कांग्रेस के जिला अध्यक्ष
कांग्रेस के जिला अध्यक्ष अनिल द्विवेदी कहते हैं कि कांग्रेस समाज के हित के लिए है और पार्टी समाज के लिए लड़ रही हैैं। आम आदमी ने सोचा और मोदी को जिताया। इस हार को हम सिर-माथे लेते हैैं। मोदी सरकार के काम देखेंगे, जहां नाकामी होगी लड़ेंगे, जनता के बीच ले जाएंगे।
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