एनसीआर की ट्रेनों में ग्रीन टॉयलेट

प्रमोद यादव, इलाहाबाद : ट्रेनों के शौचालय गंदे न दिखें और यात्रा करने वालों को बदबू न सहन करना पड़े।

By Edited By: Publish:Sat, 08 Oct 2016 12:59 AM (IST) Updated:Sat, 08 Oct 2016 12:59 AM (IST)
एनसीआर की ट्रेनों में ग्रीन टॉयलेट

प्रमोद यादव, इलाहाबाद : ट्रेनों के शौचालय गंदे न दिखें और यात्रा करने वालों को बदबू न सहन करना पड़े। इसलिए रेलवे ने अब दर्जनभर से अधिक ट्रेनों में बायो टॉयलेट लगा दिए हैं। बायो टॉयलेट की योजना काफी हद तक कारगर साबित हो रही है। बेहतर रिजल्ट देखते हुए इसे सभी ट्रेनों में लगाया जा रहा है।

रेलवे की तमाम मशक्कत के बाद भी यात्रियों को ट्रेनों और स्टेशनों पर गंदगी का सामना करना पड़ता था। करीब पांच साल पहले शौचालयों की गंदगी दूर करने की पहल की गई। रेलवे के रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड आर्गनाइजेशन (आरडीएसओ) बायो टॉयलेट डिजाइन किया। टॉयलेट के टैंक में एनारोबिक बैक्टीरिया डाले गए। वह गंदगी खत्म करके मल को पानी और हवा में बदल देते हैं। सबसे पहले उत्तर मध्य रेलवे की ट्रेन ग्वालियर-वाराणसी बुंदेलखंड एक्सप्रेस में इसे लगाया गया। बेहतर परिणाम आने पर अब इसे इलाहाबाद जयपुर, ग्वालियर बरौनी, संगम, लिंक, श्रमशक्ति व झांसी लखनऊ एक्सप्रेस और चंबल एक्सप्रेस में ऐसे ही कोच लगाए गए हैं। अन्य ट्रेनों में भी इसे लगाने का काम जारी है। सीपीआरओ बिजय कुमार ने बताया कि अब तक दर्जन भर से अधिक ट्रेनों के 483 कोच में 1545 टॉयलेट लगाए जा चुके हैं। अन्य ट्रेनों में इसे लगाने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। आने वाले कुछ सालों में सभी ट्रेनों में बायो टॉयलेट लगा दिए जाएंगे। इससे चलती ट्रेन में यात्रियों को गंदगी का सामना करना पड़ेगा।

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कैसे काम करता है बायो टॉयलेट

शौचालय के टैंक में डाला गया एनारोबिक बैक्टीरिया तरल और ठोस अवयवों को अलग कर उसे पानी, कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन में बदल देता है। बायो गैस में 50 से 70 फीसदी तक मीथेन गैस होती है। यह गैस हवा में घुल जाती है। वहीं पानी को बाद में निकाल दिया जाता है। इस टॉयलेट में समस्या तब होती है, जब उसमें कपड़े, पॉलीथिन या कचरा आदि कोई डाल देता है।

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