ग्राउंड रिपोर्ट: संतकबीरनगर में मुद्दों पर भारी सामाजिक समीकरण, यहां 11 प्रत्याशियों की प्रतिष्ठा पर लगा दांव
संतकबीरनगर एक जिला एक उत्पाद के जरिये होजरी व बर्तन उद्योग में अपना भविष्य तलाश रहा है। मंजिल अभी दूर है क्योंकि विकास की ललक कमजोर है। 26 साल पहले बना जनपद अभी भी पूरी तरह जिला बनने की ओर है। इन परिस्थितियों में नया सांसद चुनने को लेकर लोकसभा क्षेत्र संतकबीर नगर के चुनावी माहौल का रुख भांपती डा. राकेश राय की जमीनी रिपोर्ट......
संतकबीर की धरती पर इस समय सियासी सरगर्मी तेज है। विकास और मुद्दे यहां गौड़ हैं। सामाजिक समीकरणों की गणित मुखर। कभी बुनकरों व हथकरघा उद्योग के लिए जाना जाने वाला यह लोकसभा क्षेत्र अब अपनी यह पहचान खो चुका है।
संतकबीर नगर लोकसभा क्षेत्र के पिछले आंकड़े बताते हैं कि इस सीट का चुनावी रण कभी आसान नहीं रहा और इस बार का परिदृश्य भी कुछ ऐसा ही है। प्रमुख दलों के प्रत्याशी एक दूसरे को कांटे की टक्कर देने को लेकर संजीदा हैं और उनके समर्थक आक्रामक। मूलत: निषाद पार्टी के प्रत्याशी प्रवीण निषाद पर भाजपा ने लगातार दूसरी बार भरोसा जताया है और जीत को लेकर पार्टी की हैट्रिक लगाने का जिम्मा सौंपा है।
पिछले दो चुनाव में भाजपा को जोरदार टक्कर देने वाले बसपा प्रत्याशी भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी ने सपा का दामन थाम डुमरियागंज की राह पकड़ ली तो यहां सपा ने पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत उर्फ पप्पू निषाद को मैदान में उतार कर भाजपा के लिए चुनौती पेश कर दी है। प्रवीण निषाद के बाद सपा ने भी निषाद कार्ड खेला है।
इसका मतलब यह नहीं कि बसपा लड़ाई से बाहर है। उसने भी नदीम अशरफ को मैदान में इस सोच के साथ उतारा है कि कैडर वोट के साथ अगर मुस्लिम आबादी भी उसके साथ आई तो पासा पलट सकता है। हालांकि मुस्लिम आबादी केवल मुस्लिम प्रत्याशी के नाम पर बसपा के साथ खड़ी होगी, इसपर क्षेत्र के मुस्लिम मतदाता ही सवाल उठा रहे हैं। वह सीधे तौर पर तो नहीं पर इशारों में खुद को सपा के पाले में खड़ा बता रहे हैं।
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खलीलाबाद से कभी विधायक रहे मोहम्मद अयूब की पीस पार्टी के प्रभाव को भी वह सिरे से खारिज कर रहे। बखिरा चौराहे पर आधा दर्जन साथियों के साथ पानी की दुकान के सामने लगी बेंच पर बैठे मोहम्मद इशरत पहले तो इस बार कोई चुनावी माहौल न होने की बात कर चर्चा में शामिल होने से कन्नी काटते रहे पर पार्टीवार चर्चा छेड़ने पर मुखर हो गए।
बोले, जो हमारे बारे में सोचेगा, हमारा वोट उसी पर गिरेगा। यह दुनिया जानती है कि कौन हमारे बारे में सोच रहा। उन्होंने बखिरा के बर्तन उद्योग की दुर्दशा की ओर भी इशारा किया। तभी आतिफ हसन ने चर्चा का रुख मोड़ा, उसे कल्याणकारी योजनाओं और विकास कार्यों से जोड़ा। कहा- भई! काम तो हुआ है, इसमें शक नहीं पर इसका श्रेय तो मोदी-योगी को है। प्रत्याशी किसी दृश्य में है ही नहीं।चर्चा के दौरान ही किसी प्रत्याशी का काफिला गुजरा तो सबकी बातों को गौर से सुनने वाले एक साहब बोल पड़े- झूठे आप सब परेशान हैं। प्रत्याशी को इससे फर्क नहीं। वह तो सामाजिक समीकरण बैठाने में व्यस्त है। कभी सुचेता कृपलानी को जीत दिलाकर प्रदेश को पहली महिला मुख्यमंत्री देने वाले मेंहदावल विधानसभा क्षेत्र की जनता इस बार के चुनाव को लेकर बेहद गंभीर दिख रही। चूंकि सपा व बसपा के प्रत्याशी इसी क्षेत्र से हैं, इसलिए भी शायद यह लाजिमी है।
इसे भी पढ़ें- रघुराज प्रताप उर्फ राजा भइया के रुख से मुश्किल में भाजपा, इन सीटों पर फंस सकता है पेंचयहां के लोग इस बार के चुनाव में खुद को निर्णायक मान रहे। खानपान की एक दुकान पर चाय की चुस्की के साथ लोग अपनी-अपनी गणित समझा रहे। चौराहे की एक दुकान पर ऐसी ही बहस छिड़ी दिखी। निषाद, यादव और मुस्लिम आबादी का आंकड़ा बताकर सपा प्रत्याशी को इस बार काफी मजबूत बता रहे तो बृजनारायण पांडेय चमचमाती सड़कों, अनाज और आवास की योजनाओं को गिनाकर भाजपा को वोट न देने वाले को कृतघ्न बता रहे। पास बैठे एक व्यक्ति ने जब उनको टोका तो वह तमतमा गए।
बोले- जब फायदा लेना तो आगे थे और वोट देने की बारी आई तो पीछे हो गए। तभी एक व्यक्ति भाजपा प्रत्याशी की कमियां गिनाने लगे तो बृजनारायण उन्हें मोदी-योगी की उपलब्धियां सुनाने लगे। क्षेत्र की बस्ती लोकसभा क्षेत्र की सीमा के करीब भुजैनी की मिठाई की दुकान पर राजेंद्र चौधरी लोकसभा क्षेत्र के कुर्मी वोट की गणित समझ रहे थे और उनकी महत्वपूर्ण भूमिका बता रहे है तो गलेलगंज के लालचंद यादव सपा के पक्ष को मजबूत बता रहे हैं।
हालांकि दोनों इस बात से सहमत नजर आ रहे है कि एक बार फिर मोदी-योगी का जादू सिर चढ़ कर बोलेगा और सरकार की योजनाओं का लाभार्थी उन्हीं के नाम पर वोट देने के लिए घर से निकलेंगे। धनघटा क्षेत्र में चुनावी माहौल तो फिलहाल फीका है पर छेड़ते ही लोग अपने पक्ष को रखने से नहीं चूक रहे। खेत के किनारे खड़े आसमान निहारते बुद्धिराम से जब यह सवाल हुआ कि वह इस बार किसको वोट देंगे तो तपाक से बोले, जिसने हमारी चिंता की, उसको।
वर्तमान सरकार को पूरे नंबर देते हुए उन्होंने कहा- हम्मन के भोजन क चिंता दूर भइल। जौने सड़क पर चलल मुश्किल रहल, ओहपर येह समय सब फर्राटा भरत बा। उनकी बात सुन पास खड़े रामाधार और करीब आए बोले, ‘घर-शौचालय काहे भुलात हवा चाचा। बिजुलियो दिन-रात मिलत बा। जब एतना कुछ मिलल बा त के होई, जे येहू बेर भाजपा के वोट ना देई।’हालांकि पास ही में चाय की दुकान चलाने वाले केदार पांडेय का इत्तेफाक इस बात से नहीं था। वह सरकार की योजनाओं को गैर जरूरी बता रहे थे और बदलाव की बयार बहा रहे थे। शाम ढलते ही खजनी बाजार चमक रहा और यहां की राजनीति भी। चाय से लेकर पान की दुकान तक में केवल चुनावी बयार की चर्चा है। मुंह में पान भरा है पर सुभाष चंद्र सियासी बहस में शामिल हैं।
एक साहब जैसे ही बोले की इस बार के चुनाव में मोदी का जादू नहीं चल रहा, सुभाष पान थूकने के साथ उनपर बरस पड़े। कहा- कौन कहता है जादू नहीं चल रहा। चहुंओर उन्हीं का नाम गूंज रहा। 10 साल खुद को झोंक दिया है उन्होंने, तब भी आपको नहीं दिखा तो अपनी राजनीतिक समझ पर विचार करिए। इससे पहले कि दूसरा पक्ष भी उखड़े लोगों ने आगे बढ़कर शांत किया यह कहते हुए कि ‘नाऊ भाई! कै बार समनवे आई।’होजरी व बर्तन उद्योग पर गौर करने की दरकार
होजरी व बर्तन उद्योग को एक जिला एक उत्पाद घोषित करने से संतकबीर नगर के व्यवसायी उत्साहित तो हैं पर इसके विकास को लेकर अभी सरकार से उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं। होजरी के व्यवसायी अनिल प्रजापति का कहना है कि उनके उत्पाद को बेचने के लिए ले-देकर परंपरागत दो दिनी बरदहिया बाजार ही है। यदि सरकार होजरी उत्पाद को बाजार उपलब्ध कराने में मदद कर दे तो व्यवसायियों की दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी।वह सब्सिडी और आसानी से लोन न मिलने की समस्या भी उठा रहे हैं। इसी तरह की मांग बखिरा के बर्तन व्यवसायी महादेव कसेरा की है हालांकि वह इस बात से ही उत्साहित हैं कि स्थानीय स्तर के उद्योग का संज्ञान सरकार ने लिया और उसे एक जिला एक उत्पाद में शामिल किया।
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