व्यापारियों के गले की हड्डी बना नेट पेमेंट

जासं, इलाहाबाद : मासिक और त्रैमासिक रिटर्न भरने वाले व्यापारियों को वाणिज्य कर विभाग के चक्कर न काटन

By Edited By: Publish:Mon, 25 Apr 2016 01:00 AM (IST) Updated:Mon, 25 Apr 2016 01:00 AM (IST)
व्यापारियों के गले की हड्डी बना नेट पेमेंट

जासं, इलाहाबाद : मासिक और त्रैमासिक रिटर्न भरने वाले व्यापारियों को वाणिज्य कर विभाग के चक्कर न काटने पड़े इसके लिए नेट पेमेंट की व्यवस्था की गई। मगर यह व्यवस्था व्यापारियों के गले की हड्डी बन गई है। विभाग की साइट पर विवरण नहीं दिखाई देने से व्यापारियों को बैंकों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।

पंजीकृत व्यापारियों को प्रत्येक माह की 20 तारीख तक मासिक और त्रैमासिक रिटर्न दाखिल करना होता है। व्यापारियों को ऑनलाइन सुविधा के लिए नेट पेमेंट से रिटर्न भरने की व्यवस्था है। हालांकि अब व्यापारी इससे परेशान हैं। व्यापारी नेट पेमेंट से रिटर्न दाखिल कर रहे हैं, उनके बैंक खाते से पैसे भी ट्रांसफर हो रहे हैं मगर वाणिज्यकर विभाग की साइट पर इसका रिकार्ड नहीं दिखाई दे रहा है जबकि व्यापारी रिटर्न में बैंक चालान का पूरा विवरण दे रहे हैं, इस पर भी अधिकारी उनकी बात को मानने को तैयार नहीं हैं। वह व्यापारियों से बैंक खाते का रिकार्ड मंगवा रहे हैं। ऐसे में व्यापारी बैंक के चक्कर काटते परेशान हैं। लाखों रिर्टन दाखिल करने वाले व्यापारियों को भी इस समस्या से दो चार होना पड़ रहा है। कर अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष विनोद केसरवानी का कहना है कि संबंधित खंड के अधिकारी कहते हैं कि समस्या का निदान मुख्यालय स्तर से निकाला जाएगा। तकनीकी पहलू पर वह कुछ नहीं कर सकते। मामला उच्चाधिकारियों के संज्ञान में है। वाणिज्यकर विभाग के एडिशनल कमिश्नर ग्रेड-1 अंबेश श्रीवास्तव का कहना है कि किसी भी व्यापारी को इस प्रकार की परेशानी है तो उसका जल्द निदान निकाला जाएगा।

20 फीसद लगता है जुर्माना : यदि व्यापारी निर्धारित समय के भीतर अपना रिटर्न दाखिल नहीं कर पाते तो उन्हें 20 फीसद जुर्माना भरना पड़ता है।

हर माह सर्वर की समस्या

जो व्यापारी प्रत्येक माह वाणिज्यकर कार्यालय के व्यापारी सुविधा केंद्र में आकर काउंटर पर रिटर्न दाखिल करते हैं उन्हें सर्वर की समस्या से दो-चार होना पड़ता है। विभाग का सर्वर अधिकांश रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तिथि के पास धोखा दे जाता है। इसके कारण व्यापारी समय पर रिटर्न भर नहीं पाते और उन्हें जुर्माना देना पड़ता है।

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