दो सेनापति, दोनों का दामन दागदार फिर भी ओहदा बरकरार Aligarh news

योगी सरकार भले ही भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति अपना रही हो मगर कई सरकारी विभागों में कामकाज के तौर-तरीकों में इसकी झलक कहीं दिखाई नहीं दे रही। एक विभाग की सेहत तो हमेशा नासाज ही इसी वजह से रही है। फिर भी अधिकारियों ने कोई सबक नहीं लिया।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Tue, 02 Mar 2021 10:17 AM (IST) Updated:Tue, 02 Mar 2021 10:21 AM (IST)
दो सेनापति, दोनों का दामन दागदार फिर भी ओहदा बरकरार Aligarh news
तथागत बुद्ध की तपोभूमि पर भ्रष्‍टाचार खेलकर आए एक अधिकारी को शासन ने बतौर सजा विभाग में नियुक्ति दी गई।

अलीगढ़, जेएनएन : योगी सरकार भले ही भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति अपना रही हो, मगर कई सरकारी विभागों में कामकाज के तौर-तरीकों में इसकी झलक कहीं दिखाई नहीं दे रही। एक विभाग की सेहत तो हमेशा नासाज ही इसी वजह से रही है। फिर भी, अधिकारियों ने इससे कोई सबक नहीं लिया। तथागत बुद्ध की तपोभूमि पर भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार खेलकर आए एक अधिकारी को शासन ने बतौर सजा एक विभाग में  नियुक्ति दी गई। हैरत की बात ये है कि कुछ समय बाद ही वे जुगाड़ करके मंडल की दूसरी बड़ी कुर्सी पर काबिज हो गए। फिर मुखिया भी बन गए। पिछले दिनों मंडल के नए मुखिया आ गए। उम्मीद थी कि अब कुछ सुधार होगा। अफसोस, साहब ने आते ही अपने कृत्य की सजा भोग रहे मंडल के एक और दागदार अधिकारी को अपने संरक्षण में ले लिया। साहब ने ऐसी कृपा क्यों बरसाई? कोई भी समझ सकता है।

जनसभा पर ना-नुकर, फिर चढ़ाईं आस्तीन 

कुछ दिनों पहले पंजे वाली पार्टी के नेताओं ने संगठन में जान फूंकने के लिए पूरे सूबे को मथ रहीं दीदी की अलीगढ़ में जनसभा कराने से यह कहते इन्कार कर दिया है कि अभी यहां नुमाइश चल रही है। दिन के समय किसान व ग्रामीण गांव छोड़कर शहर नुमाइश देखने आ जाते हैं। इससे भीड़ जुटाने में समस्या होगी। इस बात पर दूसरे दलों ने भी चुटकी ली। बहरहाल, पिछले दिनों दीदी ने द्वारिकाधीश की नगरी से धरती-पुत्रों के साथ हुंकार भरी। फिर क्या था, नेताओं में उबाल आ गया। किसी ने प्रदेशाध्यक्ष तो किसी ने सीधे दीदी से ही अलीगढ़ में जनसभा की अपील कर दी। बड़बोले नेताओं ने ये तक दावा किया कि जनसभा हुई तो मथुरा से ज्यादा भीड़ जुटेगी। किसान पार्टी के साथ हैं। हालांकि, दीदी ने इसके लिए हामी नहीं भरी है। दरअसल, यहां पार्टी कितने पानी में है, दीदी को भी पता है।

दूर हुआ भ्रम 

गर्मी के मौसम में संक्रामक बीमारियां पैर पसार लेती हैं, लेकिन उससे पहले झोलाछाप सक्रिय हो जाते हैं। हैरानी की बात ये है कि स्वास्थ्य विभाग के पास हजारों झोलाछापों का कोई रिकार्ड नहीं हैं। हकीकत ये है कि विभागीय सांठगांठ से ही झोलाछाप अपनी दुकान चलाते रहे हैं। कार्रवाई के नाम पर केवल खानापूरी होती रही है। पिछले साल भी तमाम स्थानों पर छापेमारी हुई। कई दुकानों से टीम फीलगुड करके लौट आई। दुकानें सील की गईं, मगर कुछ दिनों बाद ही सील हट गई। पिछले दिनों छर्रा में एक छोलाछाप की शिकायत हुई। एक डाक्टर साहब छापेमारी करने पहुंचे। अफसोस, झोलाछाप पर खूब मेहरबानी दिखाकर लौटे। बैठे ही बैठे फीलगुड हो गया। बाहर आए तो चेहरे पर मुस्कराहट खेल रही थी। अब झोलाछाप की शिकायत करने वाला अपना माथा पीट रहा है। हकीकत यही है कि झोलाछापों से निबटने के लिए कोई ठोस पहल नहीं हो रही है। 

सम्मान से विदाई तो कर देते 

सितंबर यानी कोरोना का चरम काल। कोविड केयर सेंटरों में हाउसफुल की स्थिति थी। हर कोई डरा हुआ था। इससे पहले ही कुछ डाक्टर व स्टाफ नौकरी छोड़ गए तो कुछ ने बीमारी का बहाना बनाकर छुट्टी ले ली। इससे मरीजों के इलाज में दिक्कत होने लगी। ऐसे हालात में वाक एंड इंटरव्यू से रखे गए डाक्टर व कर्मचारी मरीजों के लिए भगवान बनकर आए। विभाग ने इन्हें कोविड केयर सेंटरों के लिए अस्थाई रूप से सेवा में लिया। ये लोग भी अपनी जान जोखिम में डालकर ड्यूटी करने के लिए तैयार हो गए हैं। कई माह तक इन लोगों ने कोरोना वारियर के रूप में घरवालों से दूर रहकर अपनी ड्यूटी की। अफसोस, कोरोना संक्रमण कम होते ही इन्हें सेवा से बाहर कर दिया गया। भले ही ये लोग अस्थाई कर्मचारी थे, मगर अपनी जान जोखिम में डाली। विभाग को इनको सम्मान से विदाई तो देनी ही चाहिए थी।

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