कहीं सूखा भूसा तो कहीं बिना कुछ खाए ही भूख से बेहाल हो रहे छुट्टा गोवंश Aligarh News

सरकार व प्रशासन भले ही गोशालाओं में बेहतर प्रबंधन का खूब दावा करे लेकिन हकीकत काफी चौंकाने वाली है। जिले की अधिकांश गोशालाओं में गोवंश को भरपेट चारा-पानी तक नहीं मिल पा रहा हैं। कहीं सूखा भूसा दिया जा रहा हैं तो ज्वार के पेड़ खाने को मजबूर हैं।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Sat, 09 Oct 2021 08:00 AM (IST) Updated:Sat, 09 Oct 2021 08:00 AM (IST)
कहीं सूखा भूसा तो कहीं बिना कुछ खाए ही भूख से बेहाल हो रहे छुट्टा गोवंश Aligarh News
कहीं सूखा भूसा दिया जा रहा हैं तो ज्वार के पेड़ खाने को मजबूर हैं।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। सरकार व प्रशासन भले ही गोशालाओं में बेहतर प्रबंधन का खूब दावा करे, लेकिन हकीकत काफी चौंकाने वाली है। जिले की अधिकांश गोशालाओं में गोवंश को भरपेट चारा-पानी तक नहीं मिल पा रहा हैं। कहीं सूखा भूसा दिया जा रहा हैं तो ज्वार के पेड़ खाने को मजबूर हैं। भरपेट चारा न मिलने के कारण गोवंश कमजोर हो रहे हैं। बीमारी से हड्डियां तक निकल रही हैं। शुक्रवार को जिले में दैनिक जागरण की पड़ताल में इसकी पोल खुल गई। हर गोशाला में अव्यवस्थाओं की भरमार है। कई गोशालाओं में तो रिकार्ड के मुकाबले आधे भी छुट्टा गोवंश नहीं है, जबकि हर दिन लाखों रुपये का बजट ठिकाने लग रहा है। वहीं, सब कुछ पता होने पर भी जिम्मेदार अफसर आंखे मूंदे बैठे हैं। अगर अफसर ढंग से जिले की दो चार-गोशालाओं की भी पड़ताल कर लें तो सिस्टम की पोल खुल जाएगी।

लाोधा : खैरेश्वर धाम स्थित गोशाला की 110 गोवंश की क्षमता है, लेकिन यहां पर महज 310 गोवंश ही हैं। तत्कालीन डीएम चंद्रभूषण ङ्क्षसह ने इसका शुभारंभ किया था। शुरुआत में 900 गोवंश थे, लेकिन धीमी-धीमी इनकी संख्या कम होती चली गई। यहां के तमाम पशु बाहर घूमते हैं। इसी तरह ताजपुर रसूलपुर में 30 गोवंश की क्षमता वाली गोशाला में महज दो गया हैं।जबकि, यहां से इससे अधिक बजट पशुपालन विभाग से लिया जाता है।

मडराक : भकरौला गांव स्थित गोशाला में 25 गाय बछड़ा समेत है। गोशाला में गायों को पिछले डेढ़ महीने से एक ही बाजरे का हरा चारा खिलाया जा रहा है। पानी पीने की व्यवस्था है। गोशाला के चारों ओर दीवार तक नहीं हैं। बरसात के दिनों में पानी निकासी की व्यवस्था है। ग्रामीणों ने कई बार ग्राम प्रधान से गोशाला की दीवार बनाने की मांग की है, लेकिन अब तक सुनवाई नहीं हुई।

इगलास : ब्लाक में 16 गोशालाएं हैं। इसमें मोहनपुर गौशाला में 500 की छमता के मुकाबले 606 पशु हैं। उडंबरा में 100 की क्षमता के हिसाब से 87 पशु हैं। बेसवा में 23 पशु हैं। इसके अलावा अन्य चिरौली, नगला चूरा, अगोरना, सिर्कुंरा, सिमरधरी, साथिनी गोशाला का भी यही हाल है। चारा-पानी को लेकर हर गोशाला में कोई न कोई दिक्कत है। अन्य व्यवस्थाएं भी ठीक नहीं हैं। सुरक्षा घेरा टुटा हुआ है। जून से अब तक भुगतान नहीं हुआ है। बारिश में जलभराव रहता है। सूखे चारे से गोवंश पेट भर रहे हैं।

चंडौस : ब्लाक के ऊमरी की गोशाला में इस समय 165 गोवंश हैं। बीते माह भेजे गए रिकासर्ड में इनकी संख्या 185थी। गोशाला में चारे पानी की व्यवस्था तो ठीक है,लेकिन धूप एवं बारिश के बचाव हेतु पर्याप्त टिन शेड नहीं है । जल निकासी का प्रबंध न होने के चलते सामान्य बारिश में भी गाय को कीचड़ में रहना पड़ता है। ग्राम प्रधान ने इसको लेकर एसडीएम को अवगत करा दिया है। यहां की नगला पदम गोशाला में 82 गोवेश हैं। जबकि, यहां रिकार्ड में 113 गोवंश दर्ज हैं। गाय ज्वार के खड़े पेड़ खाने को मजबूर हैं। तमाम गोवंश बीमार हैं।

जवां : क्षेत्र के छेरत गोशाला में इस समय 280 गोवंश हैं, जबकि पिछले साल यहां करीब सवा तीन सौ गोवंश थे। अन्य गोवंश कहां हैं इसकी किसी को जानकारी नहीं हैं। गोशाला में खाने-पीने की व्यवस्था ठीक नहीं हैं। यहां अन्य भी कई अव्यवस्थाएं हैं। इसी तरह छेरत सुडिय़ाल रेडियो स्टेशन की अस्थाई गोशाला में एक गोवंश हैं। इसमें महज 550 ही पंजीकृत हैं। 400 गोवंश को टैग ही नहीं लगे। संचालक डा. नजमुद्दीन अंसारी का कहना है कि सरकार गोवंश के लिए 30 रुपये प्रति रोज दे रही है, यह काफी कम है। वह जैसे-तैसे व्यवस्था कर गोवंश का पेट भर रहे हैं।

दादों: क्षेत्र के गांव नवीपुर स्थित बृहद गौशाला में 300, कसेर में 110, दादों में 139, रामनगर में 11, $िखरीरी मस्तीपुर में 15, ङ्क्षसधौली खुर्द में 11 गोवंश हैं। इनमें अधिकांश में चारे-पानी की व्यवस्था ठीक नहीं हैं। कीचड़ व जलभराव की दिक्कत भी है। इससे पशु परेशान रहते हैं।

अकराबाद : ब्लाक की राजीपुर में 20 गोवंश की क्षमता की गोशाला है। इन दिनों यहां 21 गोवंश है। भूसा से इन गोवंश का पेट भरा जा रहा है। पानी पीने के लिए एक छोटा तालाब बना हुआ है। इसी परिसर में गोवंश के लिए हरा चारा बोया जाता है। जून से इस गोशाला का भुगतान नहीं हुआ है। इसके चलते व्यवस्था में परेशानी हो रही है। वहीं, नगला सरताज में संचालित गोशाला में 83 गोवंश हैं। यहां भी गोवंश के लिए जैसे-तैसे चारा-पानी की व्यवस्था हो रही है। गोवंश को यहां पर खेतों में चरने के लिए भेजा जाता है। भपरेट चारा न मिलने से यहां पर अब तक दो दर्जन से अधिक गोवंश की मौत हो चुकी है।

खैर : क्षेत्र में बड़ी संख्या में गोवंश भूखे-प्यासे घूम रहे हैं। कई बार यह गोवंश लोगों पर हमला कर देते हैं। गोशालाओं की स्थिति भी ठीक नहीं हैं। चारा-पानी तक गोवंश को मिलना मुश्किल हो गया है। अफसर केवल फोटो ङ्क्षखचवाने गोशाला में आते हैं। बरसात में पूरे गोशाला परिसर में भारी कीचड़ हो जाती है। डिफेंस कारिडोर के लिए चिन्हित अंडला गांव में दर्जनों गोवंश घूम रहे हैं।

गभाना : क्षेत्र की गोशालाओं में भारी अव्यवस्थाएं हैं। गोवंश को भरपेट खाना तक नहीं मिल पा रहा है। जखौता में 32 गोवंश हैं। वीरपुरा की गोशाला का भी यही हाल है। यहां पूरे परिसर में जलभराव है। पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं हैं। भूसा व धान की पराली से गोवंश का पेट भरा जा रहा है। बारिश में भूसा सढ़ चुका है। वीरपुर की गोशाला में 15 दिन में 20 गोवंश कम हो गए हैं, लेकिन किसी के पास संतोषजनक जवाब नहीं हैं।

गोशाला की स्थित बेहद दयनीय है। देख-रेख व चारा पानी के अभाव में सैकड़ों गोवंश दम तोड़ चुके हैं। कई बार शिकायत भी की जा चुकी है, लेकिन गोशाला में अभी तक कोई सुधार नहीं हो सका है।

महेंद्र शर्मा, वीरपुरा

गांव की गोशाला की करीब चार वर्षों से देख-भाल कर रहे हैं। परिसर की नियमित साफ-सफाई व गोवंशों के चारा पानी का ध्यान रखा जाता है, लेकिन चार माह से कोई पैसा नहीं मिला। इससे परिवार का भरण-पोषण भी मुश्किल हो रहा है।

नीरज कुमार, जखौता

गोशाला में कई दिनों से गाय भूखी रह रही थी, कल ही इनके लिए भूसा आया है। पिछले पांच माह में कई गाय की भूख से मौत हो चुकी है। तमाम गोवंश निराश्रित घूम रहे हैं।

-पवन सक्सेना, बेसवां

गोशाला में व्यवस्था ठीक नहीं हैं। चारा-पानी तक पर्याप्त नहीं मिल पाता है। अगर गोशाला संचालक खाली पड़ी जमीन पर चारा बो ले तों भी चारे की पर्याप्त व्यवस्था हो सकती है।

चंद्रपाल सिंह, लोधा

गोशालाओं में बेहतर प्रबंधन के लिए पशु चिकित्सकों की जिम्मेदारी तय कर रखी है। जिला स्तरीय अफसर भी समय से निरीक्षण करते हैं। अगर कहीं कोई खामी है तो उसकी जांच कराई जाएगी।

चंद्रवीर, मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी

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