गरुणध्वज के आपातकाल के समय के संघर्ष की कहानी, जानिए उन्हीं की जुबानी... Aligarh news

अलीगढ़ जिले से करीब 117 लोगों को आपातकाल में जेल जाना पड़ गया था। पला रोड स्थित निवासी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे गरुणध्वज के आपातकाल के समय के संघर्ष की कहानी

By Parul RawatEdited By: Publish:Thu, 25 Jun 2020 09:15 PM (IST) Updated:Thu, 25 Jun 2020 09:15 PM (IST)
गरुणध्वज के आपातकाल के समय के संघर्ष की कहानी, जानिए उन्हीं की जुबानी... Aligarh news
गरुणध्वज के आपातकाल के समय के संघर्ष की कहानी, जानिए उन्हीं की जुबानी... Aligarh news

अलीगढ़, [जेएनएन]। आपातकाल का अध्याय काली स्याही से लिखा गया था। जुर्म और अत्याचार की वो ऐसी काली रात थी, जिसकी सुबह की उम्मीद जरा भी न थी। इसलिए जो भी एक बार जेल जाता था, उसे यह लगता था कि अब शायद ही जीवन में कभी रिहाई होगी। पूरी उम्र जेल में ही काटनी पड़ेगी। मगर, लोकतंत्र सेनानियों के हौसलों ने जुर्म की खड़ी लोहे की दीवार को भी पिघला दिया था। अंत में एक सुनहरी धूप आई, जिसने कांग्रेस के काले अध्याय को मिटाते हुए भारतीय राजनीति में एक नया इतिहास रच दिया। अलीगढ़ जिले से करीब 117 लोगों को आपातकाल में जेल जाना पड़ गया था। पला रोड स्थित गोपालपुरी निवासी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे गरुणध्वज के आपातकाल के समय के संघर्ष की कहानी, जानिए उन्हीं की जुबानी...।

मैं 1970 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रचारक बन गया था। वर्ष 1974 में मेरी शादी हुई और एक वर्ष बाद इमरजेंसी लग गई। उस समय मैं बुलंदशहर जिले के खुर्जा तहसील में तहसील प्रचारक था। परिवार वालों का दबाव पडऩे लगा कि नई-नई शादी हुई है वापस लौट आओ, वरना पूरी उम्र जेल में बीतेगी। उस समय जवानी का जोश था। डर और भय कैसा? सरकार की सबसे अधिक आरएसएस के लोगों पर नजर थी। यह माना जाता था कि इमरजेंसी में यदि इनपर दवाब नहीं बनाया गया तो पूरी रणनीति ये फेल कर देंगे? इसलिए मेरे खिलाफ बुलंदशहर और अलीगढ़ दोनों जगहों से वारंट जारी कर दिया गया। पुलिस तलाश रही थी, मैं भूमिगत होकर संघ का काम करता रहा। लोक संघर्ष नामक समाचार पत्र लोगों तक पहुंचाया करता था। जुलाई 1975 में मैं रघुवीरपुरी निवासी अपने दोस्त सतेंद्र कुमार की सगाई में आया हुआ था। यहां मुझे देख लोग हैरान हो गए। सवाल किया, तुम यहां कैसे? मैंने कहा कि चिंता मत करो, कुछ नहीं होगा। मगर, ज्यों ही मैं बाहर निकलने लगा 10-15 पुलिस वाले खड़े थे। किसी ने पुलिस की तरफ इशारा कर दिया कि गरुणध्वज यही हैं, संघ के प्रचारक हैं। मुझे रणनीतिकार मानते हुए पुलिस सुनसान इलाके में ले गई। मुझपर लाठियां बरसाने लगी। पूछा, बताओ कौन-कौन है तुम्हारे साथ? कहां-कहां बैठकें होती हैं? मगर, मैंने एक शब्द नहीं बोला। फिर, मुझे अलीगढ़ जेल में डाल दिया गया। मैं साढ़े चार महीने वहां रहा। परिवार के लोगों ने पत्नी को मायके भेज दिया था। हालांकि, जेल से रिहा होने के बाद फिर मैं उन्हीं कामों में लग गया था। पर, उस समय भय का माहौल ऐसा था कि लोग इमरजेंसी को काला पानी की सजा से कम नहीं समझते थे।

थाने से भाग गया था

आगरा रोड, खिरनीगेट निवासी देवेंद्र कुमार सक्सेना (68) इमरजेंसी के समय खिरनीगेट स्थित आरएसएस के कार्यालय प्रमुख थे। पुलिस ने देवेंद्र के छोटे भाई योगेश सक्सेना को गिरफ्तार लिया था। देवेंद्र बताते हैं कि छोटे भाई को धमकी देकर पुलिस ने मेरे बारे में सारी जानकारी कर ली। मेरी कद-काठी और हुलिया के बारे में जानकारी कर पुलिस वाष्र्णेय कॉलेज पहुंच गई। उस समय देवेंद्र बीए कर रहे थे। गेट से बाहर आते ही पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। देवेंद्र कहते हैं कि उन्हें गिरफ्तार करते ही अन्य छात्र डर के मारे भाग गए। मुझे पांच महीने अलीगढ़ जेल में रखा। आठ घंटे तक संघ के तमाम प्रचारकों के बारे में पूछते रहे, मगर मैंने कुछ नहीं कबूला। चार महीने बाद मैं फिर रिहा हुआ। तीन दिन बाद पुलिस ने फिर मुझे गिरफ्तार कर लिया। सासनीगेट थाने में रखा गया। फिर तो मुझे गुस्सा आ गया। मैं थाने से भाग गया। वहां से सीधे मैं अतरौली पहुंचा। फिर आगरा शिफ्ट हो गया। मुजफ्फरनगर में मैं जिला प्रचारक रहा। करीब दो-तीन साल बाहर रहने के बाद फिर घर वापस आ गया।

भाषण देते वक्त हुई थी गिरफ्तारी

गभाना तहसील क्षेत्र के थानपुर गांव निवासी मनवीर सिंह तोमर (68) इमरजेंसी के समय पढ़ाई कर रहे थे। वह खुर्जा स्थित इंजीनियरिंग कॉलेज ऑफ डिप्लोमा, दतिया से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। उस समय मनवीर सिंह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में छात्रों के बीच काम कर रहे थे। 26 जनवरी 1976 में वह खुर्जा के अनाज मंडी में भाषण दे रहे थे। छात्र जीवन था, सो खून गरम था। इंदिरा तेरी तानाशाही नहीं चलेगी, नहीं चलेगी आदि नारे लगा रहे थे। सैकड़ों लोग उपस्थित थे। मनवीर सिंह बताते हैं कि उनके एक-एक शब्द पर तालियां बज रही थीं। पब्लिक बोलने लगी कि इस लड़के को तो देखो कितना जोशीला भाषण दे रहा है। इससे मेरा जोश बढ़ता चला गया। तभी दो लड़के मेरे पास आए, उन्होंने कान में बोला कि पुलिस आ गई है, यहां से भागों नहीं तो गिरफ्तारी हो जाएगी। मगर, मैं कहां डरने वाला था, पुलिस को ही ललकार दिया। इसपर मेरी गिरफ्तारी हो गई। पुलिस ने जमकर लाठी बरसाईं। कहा, देखें कितना जोर है तेरे में। मुझसे पूछताछ करती रही, मगर मैंने कुछ नहीं बताया। 14 जून 1976 को मेरी रिहाई हुई और मैं आरएसएस का प्रचारक निकल गया।

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