अलीगढ़ में निर्मित झूमर की अब फिर से लौट रही चमक, चीन को भी देंगे टक्‍कर

कच्चे माल की महंगाई होने के बाद भी अलीगढ़ झूमर चीन को टक्कर देने के लिए तैयार है। भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में खरीद-फरोख्त पर शर्तों का कड़ा पहरा लगा दिया है खासतौर पर चीन के बाजार पर।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Sat, 09 Oct 2021 07:12 AM (IST) Updated:Sat, 09 Oct 2021 07:12 AM (IST)
अलीगढ़ में निर्मित झूमर की अब फिर से लौट रही चमक, चीन को भी देंगे टक्‍कर
मुंबई-दिल्ली के होटल, फिल्मी स्टूडियो व फिल्मों में अलीगढ़ के झूमर दिखते थे।

अलीगढ़,मनोज जादौन। किसी जमाने में अलीगढ़ के झूमर पर देश झूमता था। मुंबई-दिल्ली के होटल, फिल्मी स्टूडियो व फिल्मों में अलीगढ़ के झूमर दिखते थे। 15 साल पहले चीन ने अलीगढ़ के इस व्यापार पर ग्रहण लगा दिया था। मगर, एक बार फिर पीतल के ब्रेकिट में तैयार होने वाले इन कांच के झूमरों की बहार आने लगी है। कोरोना से पस्त बाजार को रफ्तार मिल रही है। कच्चे माल की महंगाई होने के बाद भी अलीगढ़ झूमर चीन को टक्कर देने के लिए तैयार है। भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में खरीद-फरोख्त पर शर्तों का कड़ा पहरा लगा दिया है, खासतौर पर चीन के बाजार पर।

ऐसे किया कारोबार शुरू

कोल तहसील के गांव कमालपुर निवासी मोहम्मद यासीन खान किसान थे। रोजगार को लेकर वे अलीगढ़ आए थे। वर्ष 1970 के फिल्मी दौर में घरों की सजावट के साथ दीवार पर लगने वाले लाइट के ब्रेकिट, झूमर का प्रचलन शुरू हुआ। इसी से प्रभावित यासीन ने सराय सुल्तानी से सजावट से जुड़े इस कारोबार में वर्ष 1972 में प्रवेश किया। शुरुआत दीवार पर लगने वाली लाइट व झूमर में लगने वाले पीतल के ब्रेकिट बनाने के काम से की। यह ढलाई से तैयार किए जाने लगे। कांच के नग व ग्लास के लिए फिरोजाबाद से संपर्क किया। बल्ब के होल्डर का निर्माण अलीगढ़ में ही किया जाने लगा। थोड़े समय में ही इस कारोबार को 'परÓ लग गए। यासीन ने इस कारोबार से अपने गांव के लोगों को जोड़ा। उन्हें जाब वर्क देकर स्वावलंबी बनाने का काम किया। उन्होंने अपने भतीजे जमील अहमद को भी कारोबार से जोड़ लिया। वर्ष 1986 में जमील ने इस कारोबार को आगे बढ़ाया।15 साल पहले इस झूमर व दीवार की सजावटी लाइट के निर्माण पर संकट गहरा गया। मगर अलीगढ़ के मैन्युफैक्चर्स ने हिम्मत नहीं हारी। गुणवत्ता के दम पर यह बाजार में डटे रहे। साथ ही इस कारोबार को आधुनिकता से भी जोड़ा। हाथ से की जाने वाली रिताई, चिताई व अन्य नक्कासी का काम इलेक्ट्रिक मशीनों से होने लगा।

विदेशी नीति में किया बदलाव

कोविड के बाद चीन की दुनियाभर में छवि खराब होने लगी। वहीं, भारत सरकार ने विदेशी नीति में बदलाव करते हुए पाबंदियों को सख्त कर दिया। डंङ्क्षपग शुल्क 40 की जगह 70 फीसद कर दिया। अन्य खर्चे भी बढ़ गए। इसका लाभ अलीगढ़ के दो दर्जन निर्माताओं को हुआ। आयातित चीनी उत्पादन की लागत बढऩे से उत्पाद पर पैसा बढ़ गया। वहीं, उद्यमियों ने इसी पैसे को कम कर बाजार में आर्डर ले लिए। 10 करोड़ रुपये के सालाना कारोबार को नई संजीवनी मिल गई है। दो हजार लोगों की रोजी-रोटी पर आया संकट छंट गया है। अलीगढ़ के निर्माताओं को 30 फीसद तक आर्डर में उछाल आया है।

फिल्मी हस्तियों को पसंद आ रहा अलीगढ़ का झूमर

अलीगढ़ के झूमर की दुनियाभर में चमक है। देशी-विदेशी सेवन व फाइव स्टार होटल, गुरुद्वारा, मंदिर व प्राचीन दरगाहों में फैंसी लाइट व झूमर लग रहे हैं। फिल्मी हस्तियों की यह पसंद रहा है। आज भी यह झूमर स्टूडियों में अलीगढ़ की शान बने हुए हैं। फिल्म शोले, जुगनू, नूर जहां, आलम आला जैसी तमाम फिल्मों में दिखाए जाने वाले झूमरों का अलीगढ़ में ही निर्माण हुआ है। फिरोजाबाद की नामचीन कांच के उत्पादन तैयार करने वाली कंपनियों के हुनर भी साझा है। अलीगढ़ में यह झूमर चार लाख रुपये तक का तैयार हुआ है। 10 मीटर के झूमर में नौ घेरे (चक्र) तक बनाए गए हैं।

बढ़ रहीं उत्पादन लागत

झूमर, फैंसी लाइट के निर्माता बाजार में मंदी के साथ महंगे कच्चे माल से भी लगातार प्रभावित हो रहे हैं। एक साल में पीतल पर 180 रुपये प्रति किलो के दाम बढ़ गए हैं। बाजार में पीतल 510 रुपये प्रतिकिलो तक बिक रही है। 15 से 20 फीसद मजदूरी, ट्रांसपोर्ट खर्चा भी बढ़ गया है। कांच के दामों में भी 20 से 25 फीसद तक वृद्धि हुई है। भारत सरकार ने चीन से आने वाले माल पर शर्तें लगा दी हैं। इससे झूमर व फैंसी लाइट के असेंबल उत्पाद महंगे पड़ रहे हैं। हम गुणवत्ता के साथ उत्पादन को और भी आकर्षित बना रहे हैं।

जमील अहमद, झूमर व फैंसी लाइट निर्माता

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