August Movement: संघर्ष की राह पर सफलता का शंखनाद, विभाजन की त्रासदी से उबरे अवतार सिंह ने अलीगढ़ में जमाया कारोबार

भारत विभाजन की त्रासदी से हजारों परिवार प्रभावित हुए थे। कई बिखर गए तो कुछ उबर गए। त्रासदी से उबरे परिवारों में एक परिवार जत्थेदार अवतार सिंह का भी है। सरगोधा (पाकिस्तान) के बड़े कारोबारी अवतार सिंह गदर के बीच परिवार को लेकर पाकिस्तान से निकले थे।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Sat, 13 Aug 2022 09:41 AM (IST) Updated:Sat, 13 Aug 2022 09:41 AM (IST)
August Movement: संघर्ष की राह पर सफलता का शंखनाद, विभाजन की त्रासदी से उबरे अवतार सिंह ने अलीगढ़ में जमाया कारोबार
त्रासदी से उबरे परिवारों में एक परिवार जत्थेदार अवतार सिंह का भी है।

अलीगढ़, लोकेश शर्मा। भारत विभाजन की त्रासदी से हजारों परिवार प्रभावित हुए थे। कई बिखर गए तो कुछ उबर गए। त्रासदी से उबरे परिवारों में एक परिवार जत्थेदार अवतार सिंह का भी है। सरगोधा (पाकिस्तान) के बड़े कारोबारी अवतार सिंह गदर के बीच परिवार को लेकर पाकिस्तान से निकले थे। पैरों में चप्पलें नहीं थीं, कपड़े फटे हुए थे। जमीन-जायदाद, पुश्तैनी हवेली वहीं छोड़कर कई दिन जंगलों में भटके। छिपते-छिपाते सीमा पार कर भारत में दाखिल हुए। फुटपाथ पर कपड़ों की फड़ लगाकर जीवन की नई शुरुआत की। लंबा संघर्ष कर कारोबार स्थापित किया।

बंटवारे की घोषणा होते ही बिगड़े हालात

सरगोधा में अवतार सिंह कपड़े के थोक व्यापारी थे। कई शहरों में कपड़ों की सप्लाई थी। उनके छोटे बेटे भूपेंद्र सिंह बताते हैं कि तब इतनी सीमाएं नहीं थीं। कारोबार के सिलसिले बाहर आना-जाना रहता था। रिश्तेदार भी इसी कारोबार से जुड़े थे। सरगोधा में उनकी पुश्तैनी हवेली है। ये इतनी बड़ी है कि 500 व्यक्ति रुक जाएं। हवेली में पूरा परिवार रहता था। विभाजन से तीन माह पहले दंगे शुरू हो गए थे। हालात बिगड़ने लगे तो कई सिख परिवारों ने ननकाना साहब में शरण ली। उनका परिवार भी वहीं चला गया। पिता ने सोचा कि हालात सामान्य होने पर हवेली चले जाएंगे। अगस्त में बंटवारे की घोषणा होते ही स्थिति और बिगड़ गई। मार-काट होने लगी। ननकाना साहब से निकलने की कोई हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। इतना मौका भी नहीं मिला कि हवेली जाकर नगदी-जेवर, सामान ले आएं। हाथों में तलवारें लेकर उन्मादियों की भीड़ गली-मोहल्लों में कभी भी निकल आती।

बैलगाड़ी से की यात्रा

भूपेंद्र सिंह बताते हैं कि ऐसे हालातों में उनके पिता ने पाकिस्तान से निकलने का फैसला किया। मां जोगेंद्र कौर, बड़े भाई गुरदर्शन सिंह, दादी व अन्य स्वजन के साथ ननकाना साहब से निकले। एक बैलगाड़ी की व्यवस्था कर जंगलों से होकर भारत की ओर रवाना हुए। कई शहरों से होकर निकले। एक स्थान पर पाकिस्तान के कुछ लोग विस्थापित परिवारों को खाना बांट रहे थे। पता चला कि खाने में जहर मिलाया गया है। खाना छोड़कर भूखे-प्यासे आगे बढ़ गए। किसी तरह भारत में दाखिल हुए। कानपुर, लुधियाना व अन्य शहरों में भटकते हुए अलीगढ़ पहुंचे। सरकार ने यहां सीमा टाकिज के पास शरणार्थियों के रहने की व्यवस्था की। यहीं क्वार्टर में रुककर जीवन की नई शुरुआत की।

फुटवियर का शुरू किया व्यापार

गुरदर्शन सिंह तब छह साल के थे, जब परिवार के साथ भारत आए। 85 साल से हो चुके गुरदर्शन सिंह बताते हैं कि दादा हरनाम सिंह ने पड़ाव दुबे पर फुटपाथ से कपड़ों का काम शुरू किया था। पिता भी वहीं कपड़े बेचते थे। फिर मदारगेट पर दुकान जमा ली। पिता ने फुटवियर का काम शुरू किया। आगरा से जूते-चप्पल लाकर यहां दुकानों पर बेचते थे। बड़ा बाजार में दुकान ले ली। कुछ समय यहां दुकान चलाकर फिर कनवरीगंज में दुकान खोली। परिवार में सभी के अलग-अलग कारोबार हैं। पिता हवेली देखने दो-तीन बार पाकिस्तान गए, लेकिन उन्हें हवेली तक जाने नहीं दिया गया।

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