अर्जुन अवार्ड से सम्मानित अशोक ध्यानचंद बोले, तब आत्मा थी, अब सिर्फ शरीर रह गई है हॉकी

हॉकी की जादूगर मेजर ध्यानचंद के बेटे व अर्जुन अवार्ड विजेता अशोक ध्यान चंद ने देश में हॉकी की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि पहले हॉकी आत्मा की तरह थी।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Publish:Sun, 21 Oct 2018 05:45 PM (IST) Updated:Sun, 21 Oct 2018 07:14 PM (IST)
अर्जुन अवार्ड से सम्मानित अशोक ध्यानचंद बोले, तब आत्मा थी, अब सिर्फ शरीर रह गई है हॉकी
अर्जुन अवार्ड से सम्मानित अशोक ध्यानचंद बोले, तब आत्मा थी, अब सिर्फ शरीर रह गई है हॉकी

अलीगढ़ (जेएनएन)। हॉकी की ' जादूगर ' मेजर ध्यानचंद के बेटे व अर्जुन अवार्ड विजेता अशोक ध्यान चंद ने देश में हॉकी की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि पहले हॉकी आत्मा की तरह थी। घास के मैदान पर खेली जाने वाली हॉकी को तब देश के सम्मान से जोड़कर देख जाता था। वहीं से मेजर ध्यानचंद जैसे खिलाड़ी पैदा हुए। मगर, अब यह महज शरीर बनकर रह गई है। इसमें गरीबों और संसाधन विहीन खिलाडिय़ों के लिए बहुत जगह नहीं है। एस्ट्रोटर्फ पर खेलने के लिए हजारों रुपये के जूते चाहिए, जो तमाम खिलाड़ी नहीं जुटा सकते।

तब हमारी नकल करते थे विदेशी
डीएस कॉलेज में अखिल भारतीय आमंत्रण महिला हॉकी प्रतियोगिता की ट्रॉफी के अनावरण समारोह में पत्रकारों से रूबरू अशोक ध्यानचंद ने खेल की तकनीक व अन्य बदलाव के सवाल पर तल्ख टिप्पणी की। कहा, तब विदेशी हमारी तकनीक की नकल करते थे, आज हम उनकी कर रहे हैैं। कहा, आज एस्ट्रोटर्फ पर हॉकी हो रही है, लेकिन देश में 30-40 ही ऐसे कोर्ट हैैं। यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैैं। सरकार इन्हें बढ़ाए। महिलाओं को भी हॉकी में पूरा प्रतिनिधित्व मिले। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को खेलों में भेदभाव खत्म करना चाहिए। प्रदेश से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर के लिए ऐसी नीति बननी चाहिए, ताकि उपलब्धि हासिल करने वाले खिलाडिय़ों को समान लाभ व सुविधाएं मिल सकें।

केडी सिंह हॉस्टल के सिस्टम में आई गिरावट
भारतीय हॉकी टीम में उप्र के खिलाडिय़ों की संख्या घटने के सवाल पर ध्यानचंद ने कहा कि बाबू केडी सिंह के बनाए हॉस्टल सिस्टम में खिलाडिय़ों की प्रतिभा निखरती थी। तब, खूब खिलाड़ी पनपे थे। अब गिरावट आई है। हरियाणा ने उसी सिस्टम को बनाए रखा तो वहां के खूब खिलाड़ी आ रहे हैैं।

चंडीगढ़ में प्लॉट देने की घोषणा की, मिला अब तक नहीं
अशोक ध्यानचंद ने कहा कि सरकारें खिलाडिय़ों के लिए घोषणाएं कर देती हैैं, लेकिन पूरी नहीं करतीं। इससे खिलाडिय़ों का मनोबल गिरता है। खुद का उदाहरण भी दिया कि अस्सी के दशक में हॉकी खेलते वक्त तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें भी चंडीगढ़ में प्लॉट देने की घोषणा की थी, पर मिला अभी तक नहीं। इसे किससे मांगने जाएं?

पीढिय़ां पूछेंगी, मेजर ध्यानचंद को क्यों नहीं दिया भारत रत्न?
अशोक ध्यानचंद ने कहा कि पिताजी मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिलाने की मंाग वर्षों से चल रही है। पूरी अब तक नहीं हुई। यह सरकार बताए कि इतने महान खिलाड़ी को यह सम्मान क्यों नहीं दे पा रही। क्या उनका प्रदर्शन खराब था? क्या वो देश के लिए नहीं खेले? क्या उन्होंने हॉकी को विश्व में पहचान नहीं दिलाई? क्या देश का मान नहीं बढ़ाया? ये सवाल आने वाली पीढिय़ां भी सरकारों से पूछती रहेंगी।

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