ठा. राधारमण के महाभिषेक दर्शन को उमड़े श्रद्धालु, जानिए क्‍या है प्राकट्य का इतिहास

प्राकट्योत्सव पर सेवायतों ने किया महाभिषेक उतारी आरती।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Sat, 18 May 2019 05:44 PM (IST) Updated:Sat, 18 May 2019 05:44 PM (IST)
ठा. राधारमण के महाभिषेक दर्शन को उमड़े श्रद्धालु, जानिए क्‍या है प्राकट्य का इतिहास
ठा. राधारमण के महाभिषेक दर्शन को उमड़े श्रद्धालु, जानिए क्‍या है प्राकट्य का इतिहास

आगरा, जेएनएन। आज से 477 साल पहले चैतन्य महाप्रभु के अनन्य भक्त गोपाल भट्ट गोस्वामी के प्रेम के वशीभूत होकर ठा. राधारमणलाल जू शालिग्राम शिला से प्रकट हुए। ठाकुरजी के प्राकट्योत्सव मंदिर में शनिवार को उत्सव का माहौल रहा। सुबह पंचामृत से महाभिषेक हुआ तो इस विलक्षण पल का साक्षी बनने हजारों भक्त मौके पर मौजूद रहे। 21 किलो दूध और 54 जड़ी बूटियों के साथ अभिषेक किया गया। 

वैशाख शुक्ला पूर्णिमा की प्रभात बेला में शालिग्राम शिला से राधारमणदेव जू का प्राकट्य हुआ। इससे पूर्व चैतन्य महाप्रभु के भक्त गोपाल भट्ट गोस्वामी शालिग्राम शिला का विधिविधान पूर्वक पूजन करते रहे। मंदिर सेवायत और गोपाल भट्ट गोस्वामी के शिष्य दामोदर गोस्वामी के वंशज पद्मनाभ गोस्वामी ने बताया गोपाल भट्ट गोस्वामी में अपने आराध्य शालिग्राम शिला में ही गोविंददेव जी का मुख, गोपीनाथजी का वक्षस्थल और मदनमोहनजी का चरणारविंद के दर्शन की अत्यंत उत्कंठा थी। इसी पूर्णिमा के दिन जब भक्त प्रहृलाद की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान नृसिंहदेव प्रकट हुए तो गोपाल भट्ट गोस्वामी ने अपने आराध्य से कहा क्या मेरा भी ऐसा सौभाग्य होगा, इस शालिग्राम शिला से प्राकट्यरूप् से दर्शन कर सकूंगा। परम भक्त की वेदना प्रभु से छिपी नहीं रही ओर वैशाख शुक्ला पूर्णिमा की भोर में ठा. राधारमणदेव शालिग्राम शिला से प्रकट हुए। प्राकट्यकर्ता गोपाल भट्ट गोस्वामी की प्रेरणा से ही वैशाख शुक्ला पूर्णिमा को उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है।

ठा. राधारमण देवी के प्राकट्योत्सव मंदिर में अनेक धार्मिक अनुष्ठानों के साथ मनाया गया। प्रात:काल वैदिक ऋचाओं की अनुगूंज के मध्य ठाकुरजी के श्रीविग्रह का 2100 किलो दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, पंचगव्य, सर्वाेषधि, गंधाष्टक, बीजाष्टक समेत 54 जड़ी-बूटियों से महाभिषेक कराया।

जब शालिग्राम शिला से प्रकटे ठा. राधारमणलाल

साधकों की भूमि वृंदावन में संतों ने अपनी साधना के बल पर न केवल प्राणीमात्र को प्रभावित किया, बल्कि आराध्य भी साधकों के वशीभूत हो देव रूप में प्रकट हुए हैं। स्वामी हरिदास के लढ़ैते ठा. बांकेबिहारीलाल ही नहीं आचार्य गोपाल भट्ट की साधना से प्रसन्न होकर ठा. राधारमणलाल जू ने भी शालिग्राम शिला से देव स्वरूप लिया। 477 साल पहले वैशाख शुक्ला पूर्णिमा की भोर में चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी के प्रेम के वशीभूत होकर ठा. राधारमणलाल जू शालिग्राम शिला से प्रकट हुए थे। 

मंदिर की रसोई का प्रसाद ही होता अर्पित

राधारमण मंदिर में 400 साल पुरानी परंपरा का निर्वहन आज भी हो रहा है। यहां बाहर का प्रसाद ठाकुरजी को अर्पित नहीं किया जाता। मंदिर रसोई में सेवायत खुद ही ठाकुरजी का प्रसाद तैयार कर अर्पित करते हैं। बाहर के किसी व्यक्ति को रसोई में प्रवेश भी वर्जित है। 

माचिस का नहीं होता उपयोग

मंदिर की परंपरा के अनुसार किसी भी कार्य में माचिस का प्रयोग नहीं होता। 400 साल से प्रज्ज्वलित अग्नि की मदद से ही रसोई समेत अनेक कार्यों का संपादन सेवायतों की ओर से किया जाता है।

 

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