High-tech Farming In India: आपदा में भाइयों ने छोड़ा विदेश, रोपी 'अवसर’ की पौध

High-tech Farming In India साल भर में करते हैं तीन फसल ऋषभ बताते हैं कि वह साल में खीरा की तीन फसलें उगाते हैं। एक बार की फसल पर करीब 12 लाख रुपए की लागत आती है जबकि करीब आठ लाख की आय हो जाती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 21 May 2022 05:51 PM (IST) Updated:Sat, 21 May 2022 06:05 PM (IST)
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अजय परिहार, शमसाबाद (आगरा) : High-tech Farming In India कोरोना संक्रमण के दौरान दुनिया में जब विपदा आई तो आगरा के शमसाबाद निवासी ऋषभ गुप्ता को दुबई में बैंक की नौकरी छोड़ गांव लौटना पड़ा। नोएडा से व्यापार प्रबंधन में डिग्री लेने के बाद लंदन में इंटर्नशिप कर रहा छोटा भाई आयुष भी आ गया। महामारी से निरंतर बिगड़ रहे हालात देख दोनों भाइयों ने अपने खेत में रोजगार के अवसर की 'पौध’ रोपी। हरियाणा के एक संस्थान में खेती-किसानी का प्रशिक्षण लिया। बैंक से 50 लाख का लोन लेकर पालीहाउस बनाया। इसमें जैविक विधि से खीरा की फसल की। ये खीरा दिल्ली सहित कई अन्य शहरों की मंडियों में हाथोंहाथ लिया जा रहा है।

ऋषभ गुप्ता बिरला इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी एंड साइंस (बिट्स), पिलानी के दुबई कैंपस से कंप्यूटर साइंस में बीटेक करने के बाद वहीं एक बैंक में नौकरी करने लगे। इधर, छोटा भाई आयुष नोएडा स्थित एक विश्वविद्यालय से बीबीए की डिग्री लेने के बाद इंटर्नशिप करने लंदन गया। इसी दौरान कोरोना संक्रमण ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। हालात देख दोनों भाई देश लौट आए। इसके बाद यहीं पर खेतीबाड़ी में ध्यान लगाया। कुछ अलग करने की धुन में दोनों भाइयों ने हरियाणा के घरौंडा स्थित सेंटर आफ एक्सीलेंस फार वेजीटेबिल्स इंडो-इजरायल से प्रशिक्षण लिया। इसके बाद एक एकड़ खेत में पालीहाउस के लिए बैंक से 50 लाख रुपये का ऋण लिया। इसमें खीरा, ब्रोकली, करेला की फसल करने लगे।

आगरा के शमसाबाद में अपने पालीहाउस में खीरा के पौधों का अवलोकन करते आयुष गुप्‍ता। जागरण

बाजार में अच्छी मांग : ऋषभ बताते हैं कि बाजार में जैविक उत्पादों की मांग अच्छी है। स्थानीय लोगों में इतनी जागरूकता नहीं है। उन्हें लगता है कि देसी खीरा उन्हें काफी सस्ता मिल जाता है तो उनका महंगा खीरा क्यों खरीदें। जबकि दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में लोग हमारे उत्पाद को हाथोंहाथ ले रहे हैं।

इसलिए बनाया पालीहाउस : ऋषभ ने बताया कि इस क्षेत्र में ज्यादातर किसान आलू या गेहूं की खेती करते हैं। एक एकड़ जमीन में 60 हजार से लेकर एक लाख रुपये तक ही कमा पाते हैं। जैविक खेती के जरिए एक एकड़ जमीन में हम लाखों कमा लेते हैं।

किसानों की पाठशाला बना पालीहाउस: ऋषभ के पालीहाउस पर अक्सर ही आसपास के किसान आते हैं। उनकी उत्कंठा जैविक खेती के साथ ही उपजों की वैरायटी जानने की भी होती है। ऋषभ और आयुष उन्हें हर तरह की जानकारी देते हैं। आयुष ने बताया कि कई किसानों ने परंपरागत खेती छोड़ दी है। वे भी जैविक खेती का तरीका अपनाने लगे हैं। उनकी आय भी बढ़ी है।

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