RTI: आठ साल बाद भी खाली हाथ, तीन दर्जन नौनिहालों का नहीं कोई सुराग Agra News
वर्ष 2011 से वर्ष 2019 के दौरान अगवा एवं लापता हुए तीन दर्जन से अधिक बच्चे। जिगर के टुकड़ों की तलाश में जमा पूंजी खर्च करके भी हैं खाली हाथ।
आगरा, जागरण संवाददाता। केस एक: ट्रांस यमुना कॉलोनी फेज एक निवासी नितिन और उनकी पत्नी रिया 18 नवंबर 2015 का काला दिन कभी नहीं भूल सकते। घर के अंदर से कमरे में सोती दो महीने की अबोध बेटी खुशी कोई शख्स अगवा करके ले गया। चिकित्सकीय उपकरणों का काम करने वाले नितिन बेटी की तलाश में मथुरा, दिल्ली, गुडग़ांव और ग्वालियर समेत एक दर्जन की जिलों की खाक चुके हैं। हरीपर्वत और राजामंडी में बच्चों को लेकर भीख मांगने वाली महिलाओं के बीच में जाकर उसे खोजा। आज भी इंटरनेट और सोशल मीडिया की मदद से अबोध को खोजने की मुहिम जारी है।
केस दो: शाहगंज के सोरों कटरा निवासी रेखा पत्नी संजय भारद्वाज ने लेडी लॉयल में आठ मार्च 2015 को बेटी को जन्म दिया। दस मार्च की सुबह वार्ड में शिफ्ट होने के कुछ घंटे बाद ही अबोध को युवक गोद से छीनकर भाग गया। बेटी को जी भरकर गोद में लेकर दुलार भी नहीं कर सके रेखा और संजय ने उसकी तलाश में अपनी काफी जमा पूंजी खर्च कर दी। अधिकारियों से लेकर विभिन्न आयोग तक गुहार लगाईं। जहां किसी नवजात के लावारिस मिलने की सूचना मिली तो वहां दौड़ लगाई। मगर, चार साल की भागदौड़ के बावजूद अबोध बेटी का सुराग नहीं मिल सका। पुलिस ने मुकदमे में एफआर लगाई तो आर्थिक रूप से टूट चुके माता-पिता ने दिल पर पत्थर रख लिया। पुलिस की एफआर का विरोध नहीं किया क्योंकि कोर्ट में तारीख पर जाने से बाकी दोनों बच्चों का भविष्य दांव पर लग रहा था।
मलपुरा के आजाद खान, कागारौल के पप्पू, शाहगंज के शंकर, सदर के शहीद खां समेत तीन दर्जन से अधिक लोगों की लंबी फेहरिस्त है। जिनके बच्चों का अगवा होने के बाद आज तक सुराग नहीं लग सका है। मलपुरा के आजाद खान की पांच वर्षीय बेटी करीब दस साल पहले दरगाह कमाल खां पर लगे मेले से अगवा हो गयी थी। जिसे खोजने में आजाद का कारखाना बिक गया, वह मालिक से मजदूर बन गए। तीन साल पहले कागारौल में लावारिस मिली बच्ची के बारे में जानकारी होने पर आजाद और उनकी पत्नी ने अपनी बेटी होने का दावा किया। मगर, बाद में यह दावा गलत निकला। इसने दंपती को मायूस किया।
सूचना के अधिकार से मिली जानकारी के अनुसार जनवरी 2011 से दिसंबर 2018 के दौरान तीन दर्जन से अधिक नाबालिग अभी तक बेसुराग हैं। पुलिस ने भी इन बच्चों को तलाशने की खानापूर्ति की। अगवा और लापता बच्चों को बरामद करने की जगह अधिकांश मामलों में एफआर लगा दी। मगर, परिजनों ने अभी भी उम्मीद नहीं छोड़ी है। वह अभी तक अपने स्तर से जिगर के टुकड़ों की तलाशने की कोशिश में जुटे है।
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