UP News: यूपी के 21 जिलों में एक्सपायर हुई ढाई करोड़ की जेनेरिक दवाएं, अकेले आगरा में ही 10 लाख का नुकसान

आगरा बांदा झांसी कानपुर और बरेली मंडल के 100 जन औषधि केंद्र हैं शामिल। कोरोना काल का लाकडाउन और चिकित्सकों की मनमानी बनी कारण। इनकी निगरानी की जिम्मेदारी लखनऊ की स्टेट एजेंसी फार काम्प्रीहेंसिव हेल्थ एंड इंटीग्रेटेड सर्विसेज (साचीज) दी गई है।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Wed, 11 May 2022 10:16 AM (IST) Updated:Wed, 11 May 2022 10:16 AM (IST)
UP News: यूपी के 21 जिलों में एक्सपायर हुई ढाई करोड़ की जेनेरिक दवाएं, अकेले आगरा में ही 10 लाख का नुकसान
डॉक्टरों के दवाएं न लिखने पर यूपी में ढाई करोड़ की जेनेरिक दवाएं एक्सपायर हो गईं।

आगरा, प्रभजोत कौर। पिछले दो सालों में कोरोना के कारण लगे लाकडाउन, 10 महीने बंद रही ओपीडी और जेनेरिक दवाएं न लिखने की चिकित्सकों की मनमानी के कारण शहर के चार प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों पर लगभग 10 लाख की और 21 जिलों के 100 जन औषधि केंद्रों पर लगभग ढाई करोड़ की दवाएं एक्सपायर हो गईं। इन केंद्रों की निगरानी करने वाली एजेंसी ने चिकित्सकों की मनमानी की शिकायत पिछले दो सालों में कई बार शासन से की है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला है।

शहर में सरकारी प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र लेडी लायल अस्पताल, जिला अस्पताल, मानसिक आरोग्यशाला और एसएन मेडिकल कालेज में हैं। इनकी निगरानी की जिम्मेदारी लखनऊ की स्टेट एजेंसी फार काम्प्रीहेंसिव हेल्थ एंड इंटीग्रेटेड सर्विसेज (साचीज) दी गई है। साचीज ने इसके लिए मंडल बांटे। मंडलों में एजेंसियों को केंद्र खोलने और संचालित करने की जिम्मेदारी दी गई। यही एजेंसियां इन केंद्रों की निगरानी भी करती है। आगरा, बांदा, कानपुर, बरेली और झांसी मंडल के 21 जिलों में 100 केंद्र आगरा की एजेंसी द्वारा खोले गए हैं।

40 प्रतिशत मिलती हैं दवाएं

हर केंद्र पर हर महीने लगभग दो लाख की दवाओं की मांग फार्मास्यूटिकल्स एंड मेडिकल डिवाइसेज ब्यूरो आफ इंडिया (पीएमबीआइ) के पास भेजी जाती है। पीएमबीआइ पहले ब्यूरो आफ फार्मा पीसीयूज आफ इंडिया( बीपीपीआइ) के नाम से जाना जाता था। पीएमबीआइ केंद्रों को दवाएं उपलब्ध कराता है, जिसका हैड आफिस दिल्ली में है। दो लाख की दवाओं में से 40 प्रतिशत तक ही दवाओं की आपूर्ति की जाती है, जिसमें एक से डेढ़ महीने का समय लगता है। यहां तक की डायबिटीज और ब्लड प्रेशर तक की दवाओं की भी कमी केंद्रों पर रहती है।

सबसे ज्यादा बिक्री मानसिक आरोग्यशाला केंद्र पर

शहर के चार केंद्रों में सबसे ज्यादा बिक्री मानसिक आरोग्यशाला के बाहर खुले केंद्र पर होती है। यहां हर रोज लगभग 20 हजार रुपये की बिक्री होती है। इस केंद्र पर मानसिक रोगों से दवाएं ज्यादा बिकती हैं।

ढाई गुना महंगी है ब्रांडेड दवाएं

जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं की कीमतों में ढाई गुना तक का अंतर है। पैरासिटामोल का 15 गोली का जो पत्ता औषधि केंद्रों पर 10 रुपये का है, वही पत्ता ब्रांड के साथ मेडिकल स्टोरों पर 25 रुपये का मिलता है।

शिकायत भी हुई, सख्ती भी

चिकित्सकों द्वारा जेनेरिक दवाएं न लिखने की शिकायत कई बार शासन की गई है। शासन से चिकित्सकों को स्पष्ट दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं कि वे मरीजों को जेनेरिक दवाएं ही लिखकर दें। शासन द्वारा की जाने वाली सख्ती के कुछ दिन बाद चिकित्सक फिर से ब्रांडेड दवाएं ही लिखना शुरू कर देते हैं।

कोरोना काल में 10 महीने ओपीडी बंद रही। ओपीडी बंद रहने के कारण मरीज अस्पतालों में पहुंचे नहीं, दवाएं खरीदी नहीं। एेसे में हर स्टोर पर रखी दवाएं एक्सपायर हो गईं। यही नहीं, 10 महीने तक केंद्रों के फार्मासिस्टों और कर्मचारियों को लगभग 80 लाख वेतन दिया। केंद्रों पर अब क्रेडिट पर दवाएं मिलना बंद हो गई हैं। समय से दवाओं की आपूर्ति नहीं हो पाती है। चिकित्सक लाख निर्देशों के बाद भी जेनेरिक दवाएं नहीं लिखते हैं। दवाएं केंद्रों पर रखी रह जाती हैं। हर महीने बहुत नुकसान हो रहा है।

- रविंद्र सिंह, मुख्य प्रबंध निदेशक, ब्रेन पावर एजेंसी

शासन के स्पष्ट निर्देश हैं कि जेनेरिक दवाएं ही लिखी जानी है। अगर कोई चिकित्सक ब्रांडेड दवाएं लिखता है और इसकी शिकायत किसी मरीज द्वारा की जाती है तो उस पर सख्त कार्यवाही की जाती है।

- डा. अरुण श्रीवास्तव, सीएमओ 

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