1st Death Anniversary of Atal: बटेश्वर में यादें अटल, वादे खोखले Agra News
साल भर बाद भी नहीं भरी जा सकी पैतृक गांव में विकास की नींव। प्रस्ताव ठंडे बस्ते में धनराशि भी नहीं मिल सकी।
आगरा, विनीत मिश्र। यमुना तीरे बसे पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के गांव बटेश्वर में उनकी यादें आज भी अटल हैं, लेकिन अफसरों की लापरवाही से वादे खोखले साबित हो रहे।
बटेश्वर ने विकास की उम्मीदें तब भी पालीं, जब अटल विदेश मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री बने। ग्रामीण कहते हैं कि अटल जी पूरे देश को अपना गांव मानते थे, यही समझाते भी थे। उम्मीद थी कि देश के साथ उनके पैतृक गांव का भी विकास होगा। देश आगे बढ़ा भी, लेकिन गांव उसी हाल में रह गया। बीते वर्ष 16 अगस्त को लंबी बीमारी के बाद बटेश्वर का ये लाल चिरनिद्रा में लीन हो गया। आठ सितंबर को यमुना में अटल की अस्थियां विसर्जित करने मुख्यमंत्री पहुंचे, तो तीर्थराज का भांजा कहे जाने वाले बटेश्वर को लेकर कई घोषणाएं कीं। अटल के परिजनों से लेकर पूरे गांव ने फिर सपने सजाए। तमाम वादे सरकार ने किए, तो तमाम मांगें ग्र्रामीणों के जेहन में रहीं। उम्मीद बंधी, खुद सीएम आए हैं, तो जल्द बटेश्वर में जल्द विकास का नया अध्याय लिखा जाएगा। अटल के जन्मदिन 25 दिसंबर पर विकास योजनाओं के शिलान्यास होने की आस भी बंधी। लेकिन योजनाओं पर ही अमल नहीं हो सका। दस करोड़ रुपये के प्रस्ताव बनाकर शासन-प्रशासन को भेजे गए, लेकिन आज तक धनराशि ही जारी नहीं हो सकी। हां, संवरने के नाम पर कुछ हुआ तो अटल की खंडहर हो चुकी पैतृक हवेली को जाने वाला करीब 50 मीटर रास्ता। अटल के परिवार के भतीजे राकेश वाजपेयी और अश्वनी वाजपेयी कहते हैं कि सपने दिखाए गए, लेकिन साकार करना भूल गए। आज तक विकास की बाट जोह रहे हैं, लेकिन हुआ कुछ नहीं।
दस करोड़ के ये बने थे प्रस्ताव
धनराशि जारी, काम अब तक नहीं
अफसरों की लापरवाही का एक उदाहरण ये भी है। बटेश्वर के घाट, इंटरलॉकिंग और पार्क में झूले लगाने के लिए 3 करोड़ 60 लाख 72 हजार रुपये स्वीकृत हुए। मार्च में 90.18 लाख जारी भी कर दिए गए। आज तक अफसर काम शुरू नहीं करा पाए।
क्या कहते हैं डीएम
घाटों का जीर्णोद्धार और इंटरलॉकिंग के लिए 90 लाख रुपये आवंटित हुए हैं। कार्यदायी संस्था से जल्द काम करने को कहा गया है। अन्य प्रस्ताव के लिए अभी तक कोई धनराशि जारी नहीं हुई है।
एनजी रविकुमार, डीएम।