उंगली पर लगी नीली स्‍याही करा रही है 56 वर्ष से फख्र का अहसास

सिल्वर नाइट्रेट नामक केमिकल का होता प्रयोग। नहीं छूटता जल्द।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Thu, 18 Apr 2019 07:16 PM (IST) Updated:Thu, 18 Apr 2019 07:16 PM (IST)
उंगली पर लगी नीली स्‍याही करा रही है 56 वर्ष से फख्र का अहसास
उंगली पर लगी नीली स्‍याही करा रही है 56 वर्ष से फख्र का अहसास

आगरा, गगन राव पाटिल। गुरुवार को जितना गाढ़ा रंग लोकतंत्र का देखने को मिला, उतना ही गहरा उस स्याही का रहा, जो बरसों से मतदाता की उंगली पर चमकती आ रही है। मतदाताओं को उनके अधिकार याद करा फख्र महसूस कराने वाली यह इंक नहीं होती। इसमें एक ऐसा केमिकल डाला जाता है, जो इसे अमिट बनाता है।
घंटों कतार में लगे मतदाताओं की थकान उस समय दूर हो जाती है, जब वह अपने अधिकार का प्रयोग कर बूथ से बाहर आते हैं। गर्व से वह उंगली दिखाते हैं, जिस पर उस अधिकार की मुहर यानि स्याही लगी होती है। बाकायदा सेल्फी लेकर उसे सोशल साइट पर अपलोड भी करते हैं। कई-कई दिन तक यह रंग नहीं छूटने का नाम नहीं लेता। इसका प्रयोग फर्जी मतदान को रोकने के लिए किया जाता है। इतने दिन रंग बना रहने के कारण कई लोगों के लिए यह कौतूहल का विषय भी बना रहता है।
बीएसए कॉलेज के रिटायर्ड प्राचार्य डा.वीरेंद्र मिश्रा बताते हैं कि इसमें सिल्वर नाइट्रेट नामक केमिकल डाला जाता है। यह रंगहीन विलियन है। इसमें डाई मिलाई जाती है। उंगली पर लगने के बाद सिल्वर नाइट्रेट त्वचा से निकलने वाले पसीने में मौजूद सोडियम क्लोराइड यानि नमक से क्रिया करके सिल्वर क्लोराइड बनाता है। धूप में संपर्क में आने पर यह सिल्वर क्लोराइड टूटकर धात्विक सिल्वर में बदल जाता है। बीएसए कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विद्योत्तमा सिंंह ने बताया कि इस स्याही का केमिकल कंपोजीशन खास तरह से होता है। धात्विक सिल्वर पानी या वार्निश में घुलनशील नहीं होता, इसलिए इसे उंगली से आसानी से साफ नहीं किया जा सकता।

ये है इतिहास

इस स्याही को सबसे पहले मैसूर के महाराजा नालवाडी कृष्णराज वाडियार ने 1937 में स्थापित मैसूर लैक एंड पेंट्स लिमिटेड कंपनी में बनवाई थी। हालांकि निर्वाचन प्रक्रिया में इसका प्रयोग 56 वर्ष पूर्व 1962 के चुनाव में हुआ था। 

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