डीएम के दर पर फफकते रहे शहीद देवेंद्र के पिता,नहीं मिला कोई आंसू पोंछने वाला

तीन माह बाद भी नहीं लग सकी पार्क में प्रतिमा

By JagranEdited By: Publish:Wed, 15 Aug 2018 05:06 PM (IST) Updated:Wed, 15 Aug 2018 05:06 PM (IST)
डीएम के दर पर फफकते रहे शहीद देवेंद्र के पिता,नहीं मिला कोई आंसू पोंछने वाला
डीएम के दर पर फफकते रहे शहीद देवेंद्र के पिता,नहीं मिला कोई आंसू पोंछने वाला

आगरा(जेएनएन): 'शहीदों की मजारों पर न खुशियां हैं, न मेले हैं।

वतन पर मिटने वालों का नहीं बाकी निशां कोई'। 15 मई 2018। वो दिन, जब 75 साल के नारायण सिंह की आंखों में दर्द का समंदर था, तो बेटे की शहादत सेछाती भी फक्र से चौड़ी थी। समंदर की गहराई बराबर दुख उन्होंने पी लिया। ये सोचकर कि बेटे ने उस देश के लिए जान दी है, जिसकी माटी में वह पला-बढ़ा। लेकिन अब दिल का दर्द आंखों के रास्ते फूट रहा है। डीएम की ड्योढ़ी पर पहुंचे नारायण सिंह फूट-फूटकर रोए। तकलीफ इस बात की थी कि जिस बेटे की प्रतिमा के सामने आजादी का जश्न मनाना चाहते थे, प्रशासन वह प्रतिमा तक नहीं लगवा सका। दुखद स्थिति यह रही, जहां सीएम अफसरों को परेशान लोगों का दर्द बांटने की नसीहत देते हैं, वहां डीएम कार्यालय में उनके आंसू पोंछने वाला तक कोई न मिला।

लखनपुर के नारायण सिंह उन बीएसएफ जवान देवेंद्र सिंह बघेल के पिता हैं, जिन्होंने आतंकियों से मोर्चा लिया और शहीद हो गए। देवेंद्र के अंतिम दर्शन को हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी। परिजनों ने शहीद स्मारक बनाने की मांग की, तो लखनपुर में ही आगरा विकास प्राधिकरण के एक पार्क में अंत्येष्टि कराकर प्रतिमा लगवाने की हामी भरी गई। पार्क का नाम भी शहीद के नाम पर करने का ऐलान हुआ। वादे तो हो गए, लेकिन तीन माह बाद भी पूरे नहीं हुए। पूरे परिवार को ये आस थी कि आजादी का जश्न वह शहीद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर मनाएंगे। अफसोस जिम्मेदारों ने शहीद की सुध तक नहीं ली।

मंगलवार को पूर्वाह्न 11 बजे ही पिता नारायण सिंह, पत्नी रामवती, बहू पिंकी और दूसरे बेटे देवी सिंह के साथ डीएम के दफ्तर पहुंच गए। यहां डीएम नहीं मिले। उनकी फरियाद सुनने वाला कोई नहीं था। देवेंद्र सिंह के बड़े भाई देवी सिंह सीआरपीएफ में तैनात हैं। पिता नारायण सिंह के पास एक इंच भी जमीन नहीं है। मजदूरी कर बेटों को पैरामिलिट्री फोर्स में भर्ती कराया। शहादत पर गांव पहुंचे एससी आयोग के अध्यक्ष व सांसद प्रोफेसर रामशंकर कठेरिया ने गांव में स्थित एडीए के पार्क में शहीद की मूर्ति लगाने का आश्वासन दिया था। कहा था कि एडीए की बैठक में इस पर सहमति बन जाएगी। लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। देवी सिंह को साढ़े तीन साल पहले पैरालिसिस का अटैक पड़ा था, चलने में असमर्थ हैं। बेटे की शहादत की बात चली, तो पिता फफक कर रो पड़े। बोले, हमारे पास जमीन होती तो हम वहां प्रतिमा लगा लेते। एक शहीद के लिए जिम्मेदारों का ये रवैया होगा, सपने में नहीं सोचा था। पत्नी पिंकी और मां रामवती की आंखों के आंसू भी सूख नहीं रहे थे। साढ़े तीन घंटे तक डीएम का इंतजार किया और फिर उनसे बिना मिले परिजन निराश होकर घर लौट गए। इस बारे में जिलाधिकारी का पक्ष जानने के लिए उनसे कई बार संपर्क करने का प्रयास किया गया, हर बार उनका फोन पीआरओ ने ही रिसीव किया और डीएम के व्यस्त होने की जानकारी दी। कमिश्नर के राममोहन राव का इस बारे में कहना था कि यह मामला डीएम की जानकारी में है। वह ही इसके बारे में बेहतर बता सकते हैं। बैनर लगा किया ध्वजारोहण:

देवेंद्र के भाई देवी सिंह ने बताया कि कहते हैं कि जिस स्थान पर भाई की अंत्येष्टि की थी, स्वतंत्रता दिवस पर गांव के सारे लोगों ने वहां ध्वजारोहण किया। प्रतिमा न होने पर वहां बैनर लगाया गया।

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