...तब बटेश्वर में अटल जी ने निभाया था रामलीला में सीता का किरदार

कुशल नेतृत्वकर्ता, प्रखर वक्ता, राजनीतिक और कवि जैसी खूबियों के साथ अटल बिहारी वाजपेयी में मंचीय कलाकार का भी हुनर था।

By Nawal MishraEdited By: Publish:Sat, 18 Aug 2018 10:16 PM (IST) Updated:Sun, 19 Aug 2018 05:12 PM (IST)
...तब बटेश्वर में अटल जी ने निभाया था रामलीला में सीता का किरदार
...तब बटेश्वर में अटल जी ने निभाया था रामलीला में सीता का किरदार

आगरा (जेएनएन)। कुशल नेतृत्वकर्ता, प्रखर वक्ता, सर्वमान्य राजनीतिक और कवि। ये खूबियां थीं, भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी में। लेकिन इन खूबियों से भी इतर एक और हुनर उनमें था, वह था मंचीय कलाकार का। पैतृक गांव बटेश्वर में उन्होंने एक बार रामलीला का मंचन किया। गांव के बुजुर्ग आज भी रामलीला को याद करते हैं। 

और अटल जी तैयार हो गए

तब अटल जी की उम्र 13 से 14 साल के आसपास रही होगी। बटेश्वर गांव मेें रहने वाले इनके भतीजे राकेश वाजपेयी बताते हैं, उन्होंने सुना है कि एक बार गांव में रामलीला का मंचन चल रहा था। गांव के ही एक लड़के को रामलीला में सीता की भूमिका निभानी थी। अचानक उसकी तबीयत खराब हो गई और आयोजक असमंजस में पड़ गए। रामलीला का मंचन अधर में लटकने की आशंका थी, ऐसे में कुछ युवाओं ने अटल जी से रामलीला के मंचन को कहा और वह इसके लिए तैयार हो गए। अब गांव में रहने वाले सेवानिवृत्त सैनिक रामसनेही कई सालों से गांव की रामलीला की व्यवस्था देख रहे हैं। रामसनेही बताते हैं कि उस वक्त उनके पिता जमुना प्रसाद रामलीला की व्यवस्थाएं देखते थे। रामसनेही बताते हैं कि ये वाकया उनके पिता ने उन्हें बताया था। शनिवार को अटल जी की चर्चा शुरू हुई, तो रामसनेही रामलीला के उस मंचन कला को बताने लगे।

ग्रामीणों की मांग

सांस्कृतिक कला केंद्र का जीर्णोद्धार कराया जाए।  अटल जी के निवास स्थान पर स्मारक बनाया जाए।  अटल जी से संबंधित जानकारी के लिए गांव में म्यूजियम बने।  गांव के प्रवेश द्वार का नाम अटल द्वार के नाम से हो।  खांद चौराहा का नाम अटल चौराहा रखा जाए।  आगरा बटेश्वर मार्ग को अटल मार्ग किया जाए।  आगरा से बटेश्वर के लिए सीधी बस सेवा शुरू की जाए।

बटेश्वर की जमीं पर विकास की उम्मीद

जिस तीर्थनगरी बटेश्वर की गलियों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पले और बढ़े। उस बटेश्वर की जमीं पर अब विकास की उम्मीद ग्र्रामीणों की आंखों में है। ग्र्रामीण अटल जी के निधन की स्याह रात के बाद यहां विकास का सवेरा होने की उम्मीद संजोए हैं। बटेश्वर को तीर्थों का भांजा कहा जाता है। यमुना किनारे बसी ये धार्मिक नगरी अटल जी का पैतृक गांव है। लेकिन,  दुर्भाग्य है कि भारतीय राजनीति का शिखर पुरुष जिस गांव से निकला, उस पर विकास की रोशनी आज तक नहीं पड़ी। अटल जी के निधन के बाद एक बार फिर बटेश्वर की चर्चा देश-दुनिया में होने लगी, लेकिन ये वही बटेश्वर है, जहां तक जाने के लिए कोई साधन नहीं है। डग्गामार वाहन पर लटक कर जाने के बाद भी बटेश्वर तक पहुंचने के लिए दो किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। अटल जी के परिवार के भतीजे राकेश वाजपेयी कहते हैं कि सरकार ने स्मारक बनाने का संकेत दिया है, इसलिए लगता है कम से कम अटल जी की स्मृतियां सहेजने को विकास तो होगा। गांव के राजा शर्मा और रतन कुमार कहते हैं कि अब सरकार को बटेश्वर की सुधि लेनी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी अटल जी के बारे में जान सके और उनका पैतृक गांव देख सके। 

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