मातृवेदी के बलिदानी: जब पेड़ों पर लटका कर किसानों को दे दी थी फांसी Agra News

देशभक्तों को आतंकित करने को दिया गया खौफनाक हत्याकांड को अंजाम। सिहर गए थे जनपदवासी।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Wed, 14 Aug 2019 12:12 PM (IST) Updated:Wed, 14 Aug 2019 12:12 PM (IST)
मातृवेदी के बलिदानी: जब पेड़ों पर लटका कर किसानों को दे दी थी फांसी Agra News
मातृवेदी के बलिदानी: जब पेड़ों पर लटका कर किसानों को दे दी थी फांसी Agra News

आगरा, आदर्श नंदन गुप्त। आगरा- खंदौली मार्ग पर एक ही कतार में दूर-दूर तक पेड़ों पर दर्जनों किसानों के शव लटके थे। सुबह उठते ही जब किसानों ने यह सब देखा तो चीख- पुकार मच गई। दशहत इतनी कि इन किसानों के परिजन भी उन शवों को लेने नहीं पहुंचे। कई हफ्ते तक दर्जनों पार्थिव शरीर ऐसे ही पेड़ों पर लटके रहे थे।

भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की पहली क्रांति 1857 में हुई थी। देशवासी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह पर उतर आए थे। जिसकी शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ से हुई। यह चिंगारी आगरा आते- आते कहीं शोला न बन जाए, इसलिए अंग्रेज जनरल मीर ने आगरा- खंदौली मार्ग पर दर्जनों किसानों को रात में अचानक ले जाकर सड़क पर थोड़ी- थोड़ी दूरी पर पेड़ों से लटकाकर फांसी दे दी। इस लोमहर्षक कांड से लोग हिल गए। ग्रामीणों को पता चलाए तो वे वहां जाने की हिम्मत तक नहीं कर पाए, इसलिए कई हफ्ते तक ये शव पेड़ों पर ही टंगे रहे। इस वीभत्स घटना के पीछे अंग्रेज सरकार की मंशा कुरसंडा के क्रांतिकारी नेता गोकुल जाट को डराने की थी। उन्हें और उनके समर्थकों को आतंकित करने के उद्देश्य से ही गोरों ने यह घृणित हथकंडा अपनाया। अंग्रेज सरकार गोकुल जाट से बुरी तरह डरी हुई थी।

जनरल मीर ने इस घटना को अंजाम देने के बाद एलान कर दिया था कि जो भी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेगा उसका यही हश्र होगा। इस घटना के बाद आंदोलनकारी भयभीत होने के बजाए और अधिक आक्रामक हो गए थे, जिससे शहर भर में उपद्रव हुए। क्रांतिकारियों और अंग्रेजी सेना में जगह-जगह भिडंत हुई।

जिला कारागार में विद्रोह

अमर शहीद भगत सिंह व अन्य क्रांतिकारियों के बलिदान की अद्र्ध शताब्दी पर प्रकाशित स्मारिका के अनुसार मेरठ में 10 मई को गदर की शुरुआत हुई। जिसकी सूचना आगरा के सैनिकों तक देरी से आई। इसका पहला असर जिला कारागार में दिखाई दिया। यहां के प्रहरियों ने 23 जून को विद्रोह कर दिया था। जिस पर यूरोपियन रेजीमेंट के सैनिकों को जेल की सुरक्षा व्यवस्था संभालनी पड़ी थी।

विदेशियों पर हमले

खंदौली की घटना के बाद शहर में बगावत तेजी से फैली। पांच जुलाई को देशभक्तों ने विदेशियों पर हमले शुरू कर दिए। सरकारी ऑफिसों को आग के हवाले किया गया। अंग्रेज सैनिक भयभीत हो गए। उन्हें आगरा किला में छिपकर जान बचानी पड़ी। आंदोलन के दौरान घायलों के लिए मोती मस्जिद में अस्पताल बनाया गया था। दीवान-ए-आम में बड़े-बड़े अधिकारियों को सुरक्षित किया गया था। इनमें 3500 यूरोपियन और 2200 भारतीय प्रमुख थे।

किले में छिपे थे प्रिंसिपल

आगरा कॉलेज में अंग्रेजी मानसिकता को बढ़ावा दिया जा रहा था। प्रिंसिपल अंग्रेज ही हुआ करते थे। आक्रोशित आंदोलनकारियों ने कॉलेज में आग लगा दी। तत्कालीन प्रिंसिपल टीवी केन को अपने शिक्षकों के साथ किले में छिपना पड़ा।

गोकुलपुरा में तोपों से किए धमाके

देशभक्तों के विद्रोह से बौखलाए अंग्रेजों ने कहर बरपाना शुरू कर दिया। उन्हें पता लगा कि गोकुलपुरा में ज्यादा देशभक्त रहते हैं, तो उन्होंने वहां तोपों से हमला कर दिया, जिससे कई गेट ध्वस्त हो गए। केवल कंस गेट बच सका, जो आज भी मौजूद है। इसके बाद अंग्रेज सेना ने नाई की मंडी और धाकरान पर अपनी बौखलाहट निकाली। यहां भी तोपें चलाई थीं।  

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