गांव की 'चाकरी' को छोड़ी 'दुनिया' की नौकरी, मिसाल ऐसी पढ़कर रह जाएंगे दंग

शिक्षा, स्‍वच्‍छता की अलख जगाने के लिए मथुरा के गांव की बेटी ने विप्रो जैसी कपंनी की नौकरी तक छोड़ी। पहले निभाया परिवार में बेटे का फर्ज और अब पूरा कर रही माटी का कर्ज।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Mon, 24 Sep 2018 02:34 PM (IST) Updated:Mon, 24 Sep 2018 06:22 PM (IST)
गांव की 'चाकरी' को छोड़ी 'दुनिया' की नौकरी, मिसाल ऐसी पढ़कर रह जाएंगे दंग
गांव की 'चाकरी' को छोड़ी 'दुनिया' की नौकरी, मिसाल ऐसी पढ़कर रह जाएंगे दंग

आगरा: गांव की माटी से लगाव और गांव वालों की बेहतरी करने का जुनून। लिहाजा, बहुराष्ट्रीय कंपनी में लाखों के पैकेज वाला कंप्यूटर एक्सपर्ट का जॉब छोड़ दिया। गांव की गली-गली में अब वो शिक्षा और स्वास्थ्य योजनाओं की संवाहक बन घूम रही हैं। रोजगार सृजन के लिए युवाओं का मार्गदर्शन कर रही हैं। जैविक खेतीबाड़ी के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही हैं।

मथुरा जिले में बरसाना के गांव करहला निवासी सुरेश चंद्र के निधन के बाद मां की देखभाल और तीन बहनों की पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा ओढ़े-ओढ़े हेमा ने बीटेक के बाद दिल्ली में नौकरी की। इसी दौरान एमसीए किया और बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पैकेज पर जॉब मिल गई। लेकिन, हेमा का सपना कंपनी की नौकरी नहीं, अपने गांव की सेवा का था। सो, तीन साल नौकरी करने के बाद ही गांव लौट आईं।

एक कमरे में खोल दिया स्कूल

हेमा कहती हैं कि प्राथमिक शिक्षा ही बच्चे के भविष्य का आधार होती है। घर के चबूतरे पर कक्षाएं लगाने लगीं। कोई बच्चा स्कूल नहीं आता तो उसे घर से बुला लातीं। जो बच्चे को पढऩे नहीं भेजतीं, उन्हें समझाकर पढ़ाने को राजी कर लेतीं।

चाची बीमार हो गईं तो घर कैसे संभालोगी

हेमा गांव की महिलाओं को समझाती हैं कि खुद स्वस्थ रहोगी तभी तो घर संभाल पाओगी। वे स्वास्थ्य योजनाओं की संवाहक बन गई हैं। खुले में शौच से मुक्ति मिशन में उनके प्रयास से गांव में सौ शौचालय बन चुके हैं।

हमारे लिए तो बेटा है

विधवा गंगा देवी कहती हैं कि हेमा तो उनके लिए बेटा है। हेमा अविवाहित हैं। एक बहन की शादी कर चुकी है। दो अन्य बहनें उच्च शिक्षा ले रही हैं। एक भाई है, मगर वो अलग रहता है।

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