टैक्स में मिले रिलेक्स तो चमके आगरा का जूता उद्योग
-निर्यात को गति देने के लिए जीएसटी दर में कटौती की जाए -आगरा से करीब 5000 करोड़ रुपये का होता है जूते का निर्यात
आगरा, जागरण संवाददाता। आगरा की तंग गलियों से निकलकर दुनिया के बाजार में दौड़ रहे जूते को घर में ही ठोकर लगी है। पिछले वर्ष की तुलना में निर्यात में बढ़ोत्तरी के बावजूद जूता उद्योग कराह रहा है। सरकार ने सहारा न दिया तो लड़खड़ाता जूता उद्योग कहीं घुटने न टेक दे। हां, माद्दा भी इतना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यदि दिल्ली में दखल देकर केंद्रीय वित्त मंत्रालय से जूते-चप्पलों पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दर में कमी का आग्रह करें तो फिर आगरा के जूते की चाल देख लें। 60 फीसद हिंदुस्तानी आगरा का जूता पहनते हैं और यहां से करीब 5000 करोड़ रुपये का निर्यात होता है। इस उपलब्धि पर अब तक जिन उद्यमियों के चेहरे चमकते थे, अब उन्हीं के चेहरों पर शिकन नजर आ रही है। इसकी वजह चमड़े की अनुपलब्धता और कीमतों में लगातार उतार-चढ़ाव होना है। जीएसटी ने दुश्वारियां बढ़ा दी हैं। दबे पांव उद्योग की ओर बढ़ रही इस समस्या पर लगातार चीख रहे जूता उद्योग की बात पर जिम्मेदारों ने अब तक गौर नहीं किया है, जिसका परिणाम सामने है।
शनिवार को दैनिक जागरण विचार मंथन में यह बात उभरकर सामने आई। आगरा फुटवियर मैन्यूफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्ट चैंबर (एफमेक) के अध्यक्ष पूरन डाबर, काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट के रीजनल चेयरमैन नजीर अहमद, प्रदीप वासन, आगरा दस्तकार फेडरेशन के अध्यक्ष भरत सिंह पिप्पल, राजेश खुराना का मानना था कि आगरा के जूता निर्यात में कुछ समय पूर्व तक प्रतिवर्ष 15 फीसद तक का इजाफा हो रहा था, लेकिन इस वर्ष यह बढ़ोतरी स्थिर है। 172 के फेर में फंसा जूता
उद्यमियों ने बताया कि भारत से हर वर्ष करीब 20 हजार करोड़ रुपये के जूते का निर्यात होता है। इसमें पांच हजार करोड़ रुपये का जूता आगरा से जाता है। आगरा के जूते के सबसे बड़े खरीददार इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रास, इटली, हॉलैंड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया सहित अन्य देश हैं। वर्ष 2013 तक 73 तरीके के केमिकल पर प्रतिबंध था, जिसे वर्ष 2014 में बढ़ाकर 138 कर दिया गया है। वर्तमान में 172 केमिकल की जाच करके ही जूता निर्यात किया जाता है। एक जाच में एक उद्यमी को अपने टर्नओवर का एक फीसद खर्च करना होता है। यह जाच अन्य शहरों की लैब में कराई जाती है। आठ वर्ष पूर्व आगरा के सींगना स्थित ट्रेड सेंटर में बनी टेस्टिंग लैब में जाच प्रोजेक्ट लांच हुआ पर अभी तक यह प्रोजेक्ट शुरूनहीं हुआ है। व्यापारियों को उम्मीद थी कि इंपोर्ट ड्यूटी से छूट मिल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस बीच जीएसटी लागू होने से लागत बढ़ गई। इस मुद्दे पर 14 सितंबर को लखनऊ में बैठक होगी। जीएसटी की दरों में हो कटौती
उद्यमियों ने कहा कि घरेलू जूता-चप्पल क्षेत्र में रोजगार सृजन तथा विदेशी मुद्रा अर्जित करने की काफी संभावना है। जूते-चप्पल पर जीएसटी में कटौती से घरेलू उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने जूते पर जीएसटी 12 फीसद से अधिक नहीं रखने की मांग की। वर्तमान में एक हजार रुपये तक के जूते पर पांच फीसद और उससे अधिक के जूते पर 18 फीसद जीएसटी है। वहीं, कंपोनेंट्स पर 28 फीसद तक जीएसटी लागू है। इसे घटाकर अधिकतम 12 फीसद तक किया जाए। यदि प्रदेश सरकार केंद्र सरकार से वार्ता कर ऐसी नीति बनवाए कि देश से चमड़े के निर्यात पर रोक लगाकर यहां से सिर्फ तैयार जूता ही निर्यात किया जाए तो यहां के जूता उद्योग का निर्यात कुछ ही समय में कई गुना बढ़ जाएगा।
उद्योग को बढ़ावा देने को उठाए जाएं यह कदम
-जूते को ग्रीन कैटेगरी से हटाकर व्हाइट कैटेगरी में किया जाए।
-सरकार बिजनेस पार्क बनाए। उद्यमियों को सस्ती जमीन उपलब्ध कराए।
-लेबर पॉलिसी को राजनीति से दूर रखा जाए।
-चीन और अमेरिका के बीच छिड़े ट्रेड वार में देश के कारोबारियों के लिए काफी अवसर हैं। सरकार करों पर विचार कर सुधार करे।
-उद्योगों को प्रतिबंधित नहीं किया जाए। कड़ाई से मानकों का पालन कराया जाए।
-ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की केवल बातें हो रही हैं। उसे हकीकत में तब्दील किया जाए।
-सरकार उद्यमियों को शक की निगाह से नहीं देखे। वे पैसा लगाएं तो सरकार सहयोग करे, जिससे वे कारोबार की बेहतरी को बेहतर काम कर सकें।
-नई डिजाइन व प्रयोगों को बढ़ावा मिले।
-नए बाजार की खोज की जाए।
-कैपिटल कॉस्ट को कम किया जाए। आठ से 10 फीसद की ब्याज दर पर उद्योग विकसित नहीं हो सकते हैं।
-नकदी रखने की आजादी हो, उसका उत्तरदायित्व तय किया जाए।
आगरा जूतानामा
- 28 फीसद है देश के कुल निर्यात में हिस्सेदारी
- 23 फीसद है देश के घरेलू कारोबार में हिस्सेदारी
- करीब 15 हजार करोड़ रुपये का घरेलू कारोबार है जबकि पांच हजार करोड़ रुपये का निर्यात होता है।
- 20 है शहर में फुटवियर मार्केट की कुल संख्या
- 03 लाख से अधिक हैं आगरा में जूता बनाने वाले कुशल कारीगर।
- मुगलकाल में सुबह-सुबह चमड़े की मशक में पानी भरकर सड़क की धुलाई करने वाले भिश्तियों ने आगरा में जूते गाठने के साथ इस उद्योग की आधारशिला रखी।
- आगरा में करीब 7.5 हजार छोटे-बड़े जूता उद्यमी हैं। इनमें से 200 निर्यातक हैं। करीब पाच लाख की आबादी इस पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर करती है।