जो भी कार्य करें, वह अच्छी भावना के साथ करें

अच्छे लोगों को प्रोत्साहित करें। कुछ ऐसा कार्य करें, जिससे समाज में एक नई प्रेरणा जाग्रत हो, समाज का पथ- प्रदर्शन हो।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Fri, 31 Mar 2017 12:02 PM (IST) Updated:Fri, 31 Mar 2017 12:10 PM (IST)
जो भी कार्य करें, वह अच्छी भावना के साथ करें
जो भी कार्य करें, वह अच्छी भावना के साथ करें

 मनुष्य की अच्छी वृत्ति ही सद्वृत्ति है। यानी जो भी कार्य हम करते हैं, उसके प्रति हमारी मनोभावना सच्ची हो।

सद्वृत्ति का मतलब है-हमारी मन की सभी वृत्तियां सच्ची और अच्छी हों। उसमें किसी भी प्रकार का कोई गलत विचार न आए। हम जो भी कार्य करें, वह अच्छी भावना के साथ करें। अच्छे लोगों को प्रोत्साहित करें। कुछ ऐसा कार्य करें, जिससे समाज में एक नई प्रेरणा जाग्रत हो, समाज का पथ- प्रदर्शन हो।

हम ऐसा कार्य करें कि लोगों का जीवन जागृत हो, नई मनुष्यता और नए जगत का सूत्रपात हो। जब भी किसी

की तारीफ होती है, वह अच्छे कार्र्यों के लिए होती है। गलत कार्र्यों की कोई प्रशंसा नहीं करता। इसलिए हम जो भी सोचें या कार्य करें, वह उत्तम हो। उत्तम यही है कि हमारे प्रत्येक कार्य में हमारे साथ ही सबका हित हो। विचार ही मनुष्य का जीवन और मृत्यु है। विचारवान व्यक्ति हमेशा अच्छा ही कार्य करेगा। अच्छे विचार का मतलब सकारात्मक सोचते हुए और विकारों से दूर रहकर कर्म करना है। अपने कार्य के प्रति हम जितना सकारात्मक और आशावादी होंगे, हमारी सद्वृत्ति उतनी ही अच्छी होगी। नकारात्मक विचार ही मृत्यु है। सफलता और असफलता जीवन की घटनाएं हैं, लेकिन मनुष्य को प्रत्येक परिस्थिति में अपनी वृत्तियों को

अच्छा बनाए रखना चाहिए। यह तभी संभव है, जब व्यक्ति आशावान और सकारात्मक दृष्टिकोण रखेगा। असल में हमारे अंतर्मन की वृत्तियों में सामान्यत: कुछ न कुछ बुरी भावनाएं-विचार हमेशा आते और पनपते रहते हैं।

संकल्प के साथ विकल्प भी आते रहते हैं, लेकिन यदि व्यक्ति अभ्यास करे, तो इनसे दूरी बनाई जा सकती है।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, अभ्यास से तुम अपने अंतर्मन की चंचल वृत्तियों को रोककर अपने मन

को एकाग्र कर सकते हो। जैसा हम जानते हैं कि मनुष्य को काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि विकार घेरे रहते हैं, लेकिन अच्छे विचारों के माध्यम से इनसे छुटकारा पाया जा सकता है। जीव तभी जीव बनता है, जब उसके अंदर कुछ न कुछ कमी रह जाती है। कहीं न कहीं वह कोई गलती कर जाता है, जिससे वह पूर्ण नहीं हो पाता। नर में नारायण बनने की शक्ति है, लेकिन यह तभी संभव है, जब मनुष्य अपनी वृत्तियों और चित्त को निर्मल और स्वच्छ रखे और एक-दूसरे के साथ भाईचारा, प्रेम, सहृदयता रखे। साथ ही वह जो भी कार्य करे, उसके प्रति उसकी सोच सकारात्मक हो।

chat bot
आपका साथी