जो आज है कल नहीं रहेगा जो कल आएगा वह आगे नहीं रहेगा

इस संसार में आकर किसी भी वस्तु को अपना नहीं समझना चाहिए। यहां की कोई भी वस्तु मानव द्वारा निर्मित नहीं। मानव ने न चांद बनाया, न सूरज, न आकाश।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Mon, 06 Feb 2017 11:40 AM (IST) Updated:Mon, 06 Feb 2017 11:46 AM (IST)
जो आज है कल नहीं रहेगा जो कल आएगा वह आगे नहीं रहेगा
जो आज है कल नहीं रहेगा जो कल आएगा वह आगे नहीं रहेगा

इस संसार में आकर किसी भी वस्तु को अपना नहीं समझना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां की कोई भी

वस्तु मानव द्वारा निर्मित नहीं है। मानव ने न चांद बनाया, न सूरज, न तारे और न ही आकाश। इसके अलावा न वायु बनाई, न अग्नि, न पृथ्वी, न नदियां, न पहाड़ बनाए और ही न समुद्र। इस जगत के चर प्राणी भी मानव ने नहीं बनाए।

यहां तक कि सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ मानव भी उसके द्वारा निर्मित नहीं है। हम प्रकृति से प्राप्त संसाधनों से तमाम सामग्री लेकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कुछ बनाकर सारा श्रेय लूट लेने का दंभ भरते रहते हैं। फिर उन वस्तुओं का अपना मानकर उससे लगाव लगाना सीख लेते हैं, जबकि वस्तुएं हमसे कोई लगाव नहीं रखतीं। वे तो जिसके पास होती हैं उसी की हो जाती हैं। इस संसार का रचयिता इस जगत को बनाने वाला चुपचाप अदृश्य रूप से इस जगत के कार्यों को देखता रहता है। वह सबको देखता है, सबको जानता है, लेकिन उसको कोई नहीं जान पाता। जगत का स्वामी ईश्वर सारे संसार में व्याप्त है। यही नहीं प्रत्येक शरीर के भीतर भी वही ईश्वरीय सत्ता विद्यमान रहती है।

जब मानव संसार को ही ठीक-ठीक नहीं जान पाता है तो संसार की रचना करने वाले को जानना तो अत्यंत

कठिन है, क्योंकि सबके अंदर वह अदृश्य रूप से सत्ता रूप में विद्यमान रहता है। इस दृश्यमान जगत को ईश्वर

ने अपनी माया से रच डाला है। उसने अपनी प्रकृति में एक से एक सुंदरता बिखेर दी। ऊंचे-ऊंचे पहाड़, कल-कल

करती नदियां, हवा में झूमते पेड़, खेतों में लहलहाते अनेक प्रकार के अनाज, सब्जियां व वृक्षों से लदे फल, आकाश में मंडराते काले-काले मेघ आदि को देखकर क्या हम यह जानने का प्रयत्न करते हैं कि इनका रचियता कौन है? इसके पीछे किसकी सत्ता है? इस प्राकृतिक जगत को ईश्वर ने परिवर्तनशील बनाया है। जो आज है, कल नहीं रहेगा। जो कल आएगा वह आगे नहीं रहेगा। संसार गतिमान होने के कारण प्रतिक्षण बदलता रहता है तो फिर इस बदलते हुए संसार और बदलते हुए शरीर के पीछे जिस सत्ता का हाथ है, उसकी खोज आवश्यक है। इस सबके पीछे जो स्थापित सत्य है, उसकी खोज करके अपने निज चैतन्य स्वरूप को प्राप्त कर लेना चाहिए जिससे सदैव के लिए आनंद की प्राप्ति हो सके।

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