बुद्ध ढाई हजार साल पहले हुए थे लेकिन उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं

पिछले ढाई हजार वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। लेकिन बुद्ध ने जो वचन कहे थे, वे आज भी प्रासंगिक हैं। कारण, हमारी समस्याएं, हमारे दुख तो वही हैं, बस उनका रूप बदल गया है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Sat, 21 May 2016 12:12 PM (IST) Updated:Sat, 21 May 2016 12:20 PM (IST)
बुद्ध ढाई हजार साल पहले हुए थे लेकिन उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं

भले ही महात्मा बुद्ध ढाई हजार साल पहले हुए थे, लेकिन उनकी शिक्षाएं आज के लोगों के जीवन के लिए अधिक मूल्यवान हैं। यही कारण है कि बुद्ध आज भी प्रासंगिक हैं।

पिछले ढाई हजार वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। लेकिन बुद्ध ने जो वचन कहे थे, वे आज भी प्रासंगिक हैं। कारण, हमारी समस्याएं, हमारे दुख तो वही हैं, बस उनका रूप बदल गया है। बुद्ध के समय में शांतिपूर्ण और मैत्रीपूर्ण होने की जितनी जरूरत थी, आज उससे कहीं अधिक जरूरत है। बुद्ध ने दुख से मुक्ति के लिए आठ रास्ते (अष्टांगिक मार्ग) बताए थे, ताकि हमारा जीवन शांतिपूर्ण और आनंदित हो सके :

सम्यक दृष्टि

जीवन की हर घटना को देखने की दृष्टि सकारात्मक है या नकारात्मक, इसी पर निश्चित होता है कि हमारा जीवन कैसा होगा। हम तथ्यों को स्वीकार नहीं करते। हर घटना के साथ एक कथा गढ़ लेते हैं। बुद्ध कहते हैं, सम्यक दृष्टि वही है जो कथाओं से मुक्त हो और घटना को सकारात्मक होकर देखती हो।

सम्यक जागृति

झगड़ते समय बहुधा हम यही सोचते हैं कि हम ठीक हैं और दूसरे गलत। हम अपने को सही सिद्ध करना चाहते हैं। हम बदला लेने में भी विश्वास रखते हैं। जबकि क्षमा एक बेहतर विकल्प है। अतीत से सबक लेकर उसे भूल जाना ही सही है। यही ‘सम्यक जागृति’ है।

सम्यक कर्म

बुद्ध कहते हैं- प्रत्येक व्यक्ति अतुलनीय है। व्यक्ति के असाधारण गुणों में रंगत लाने के लिए किए गए हर काम को उन्होंने ‘सम्यक कर्म’ माना। हमारा जीवन असाधारण इसलिए नहीं बन पाया है कि हम अपनी असफलताओं

को स्वीकार नहीं करते। अगर हम कारण बताने, तर्क देने और भाग्य, परमात्मा अथवा अन्य किसी को दोष

देने की बजाय अपनी असफलताओं को स्वीकार करना सीख लें तो हमारा जीवन स्वयं ही सम्यक कर्म बन

जाएगा।

मधुर संबंध

बुद्ध का संदेश है कि शांति और स्थिरता के बीज बोएं और संबंधों में मिठास का रंग भरें। कुछ भी कहने-करने से पहले यदि आप विचलित अनुभव करते हैं, तो उस समय कुछ न करें। लेकिन यदि आप शांत अनुभव करते हैं,

तब अवश्य ही कुछ करें। साथी कर्मचारियों और मित्रों के साथ पूरे सम्मान, विश्वास व सहयोग के साथ कार्य करें।

सम्यक वाणी व शील

हर किसी के साथ विनम्र व शीलवान रहिए। विनम्रता और संवेदना आधुनिक जीवन को शीलवान बना सकते हैं।

आज सोशल साइट्स के युग में भी वाणी के प्रति बुद्ध का संदेश कहीं अधिक प्रासंगिक है।

सम्यक संकल्प

बुद्ध कहते हैं, जीवन को दिशा देने के लिए संकल्प अनिवार्य है। हर क्षेत्र में विकास के लिए दृढ़ संकल्प चाहिए।

इसके लिए हमें विचार करना होगा कि आखिर हम पाना क्या चाहते हैं? इसके लिए अतीत से मुक्त होकर वर्तमान में जीना और अपनी शक्ति, सामथ्र्य, साहस व परिस्थितियों का अवलोकन जरूरी है। उसके बाद ही कोई

निर्णय लें अथवा लक्ष्य निर्धारित करें। फिर संकल्प की घोषणा करें। सम्यक ध्यान व समाधि बौद्ध उपदेश में ध्यान को लाख दुखों की एक दवा माना गया है। बुद्ध ने कहा है- जागरूक होकर आनंद पाना ‘सम्यक समाधि’ है। ध्यान पूर्ण-जागरूकता की ही अवस्था है। जब हम अपनी आती- जाती सांस, क्रोध, अशांति, क्षोभ, तनाव, विचारों के प्रति जागरूक होते हैं, तब हम पूर्ण-जागरूकता की स्थिति में होते हैं। सारी परेशानियों की जड़ यह है कि हम

हमेशा मूच्र्छा (बेहोशी) में रहते हैं। अगर हम होशपूर्ण रहें, तो सार्वजनिक जीवन में हमारी उपयोगिता बढ़ेगी।

सम्यक स्वीकार

जो हुआ अच्छा हुआ। जो है, अच्छा है और जो होगा अच्छा होगा। यह भाव सम्यक स्वीकार है। पूरी लगन, निष्ठा

और ईमानदारी के साथ कार्य करें, लेकिन परिणाम जो भी हो, उसे स्वीकार करें। श्रीकृष्ण का ‘निष्काम कर्मयोग’ भी कहता है कि कर्म करने का ही हमारा अधिकार है, फलप्राप्ति पर विशेष ध्यान नहीं होना चाहिए। हमें अपने उद्देश्य और संकल्प की पूर्ति के लिए लगातार अपना प्रयास जारी रखने की आवश्यकता है। यही सफलता का सिद्धांत है।

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