प्रकृति में प्राण ऊर्जा अनंत मात्र में उपलब्ध है

प्रकृति में प्राण ऊर्जा अनंत मात्र में उपलब्ध है। जब कभी इस फैले हुए विशाल ब्रह्मंाड से ऊर्जा का संग्रह किया जाता है और किसी एक स्थान पर उसे केंद्रित कर दिया जाता है तो वह स्थान दिव्य बन जाता है। इन्हीं दिव्य स्थानों पर दिव्य आत्माओं का अवतरण होता है। इसलिए ऐसे स्थानों को दिव्यभूमि या तीर्थस्थान कहा जाता है। संसार में जहां कहीं भी पवित्र स्था

By Edited By: Publish:Tue, 15 Apr 2014 09:47 AM (IST) Updated:Tue, 15 Apr 2014 09:51 AM (IST)
प्रकृति में प्राण ऊर्जा अनंत मात्र में उपलब्ध है
प्रकृति में प्राण ऊर्जा अनंत मात्र में उपलब्ध है

प्रकृति में प्राण ऊर्जा अनंत मात्र में उपलब्ध है। जब कभी इस फैले हुए विशाल ब्रह्मंाड से ऊर्जा का संग्रह किया जाता है और किसी एक स्थान पर उसे केंद्रित कर दिया जाता है तो वह स्थान दिव्य बन जाता है। इन्हीं दिव्य स्थानों पर दिव्य आत्माओं का अवतरण होता है। इसलिए ऐसे स्थानों को दिव्यभूमि या तीर्थस्थान कहा जाता है।
संसार में जहां कहीं भी पवित्र स्थान माने गए हैं उन स्थानों पर दिव्य आत्माओं का आविर्भाव वहां होता है। संसार के प्रत्येक धर्म में ऐसे अनेक अवतारी पुरुष हुए हैं, जिसके कारण उनके स्थान को तीर्थस्थान, पवित्र स्थान आदि कहा गया है। यह बात सभी धर्मो पर लागू होती है। जब कोई दिव्य महापुरुष किसी स्थान पर अवतरित होता है तो उसकी आभा से जो ऊर्जा निकलती है, उस ऊर्जा से वहां की जमीन, जंगल, पेड़-पौधे, नदी-झरना, तालाब, कुएं, वृक्ष आदि पवित्र हो जाते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि इन सामान्य स्थानों, पेड़-पौधों आदि में उस दिव्य आत्मा की ऊर्जा प्रवेश कर जाती है। प्राण प्रकृति द्वारा प्रदत्त जीवनी शक्ति है।
कोई भी महापुरुष अपनी साधना से अनंत परमात्म शक्ति प्राप्त कर लेता है। वह संसार में व्याप्त दिव्य शक्तियों को संचित कर अपने शरीर में केंद्रित कर लेता है और फिर वह अपनी शक्ति को निकटवर्ती वातावरण में छोड़ने लगता है। इसीलिए हमारे देश में जहां कहीं भी तीर्थस्थान हैं, वहां का वातावरण वृक्ष आदि सब कुछ ऊर्जावान बन जाता है और उसमें दिव्यता का बोध होने लगता है, जैसे भगवान बुद्ध की साधना से गया का बोधि वृक्ष आदि। देश में कई महत्वपूर्ण स्थान हैं जो किसी दिव्य पुरुष की दिव्यता से आज भी अनुप्राणित हो रहे हैं। जिस स्थान पर भगवान बुद्ध, महावीर, साईंबाबा सरीखी महान विभूतियों ने कभी साधना की थी, आज भी वे स्थान 'अहिंसा क्षेत्र' के रूप में जाने जाते हैं। कहा जाता है कि उस स्थान के कारण वहां के हिंसक जीव भी अहिंसक बन गए थे।
उसी प्रकार संत पुरुषों और गुरुजनों के संपर्क में जाते ही विकार ग्रस्त मन भी पवित्र हो जाता है। मन के अंदर के विकार ही हमारे व्यक्तित्व को कमजोर बनाते हैं और इनके कारण व्यक्ति समाज में अपना स्थान नहीं बना पाता। इन विकारों को दूर करने का एक तरीका अच्छे लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा रहना है।

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