ईश्वर की प्राप्ति ही तो जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है...

यम में सत्य अहिंसा ब्रह्माचर्य अस्तेय और अपरिग्रह आते हैं। सत्य शब्द से तात्पर्य है सत्यता का जीवन में हर समय पालन करना। अहिंसा केवल जीव हिंसा से ही संबंधित नहीं है इसमें दूसरों की भावनाओं को आहत नहीं करना भी आता है।

By Ruhee ParvezEdited By: Publish:Mon, 13 Jun 2022 01:49 PM (IST) Updated:Mon, 13 Jun 2022 01:49 PM (IST)
ईश्वर की प्राप्ति ही तो जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है...
ईश्वर की प्राप्ति ही तो जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है

नई दिल्ली, कर्नल शिवदान सिंह। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने ईश्वर प्राप्ति के तीन -ज्ञान, कर्म तथा भक्ति मार्ग बताए हैं। ज्ञान मार्ग में सांख्य की सहायता से मनुष्य तर्क-वितर्क द्वारा तत्व ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करता है, परंतु अक्सर तर्क-वितर्क में वह अपने मार्ग से भटक जाता है। कर्म मार्ग में भी मनुष्य को निष्काम भाव से कर्म करना होता है। अपने कर्म को ईश्वर को समर्पित करना पड़ता है। इसलिए इसमें भी भटकने की पूरी संभावना होती है। वहीं भक्ति मार्ग में वह अपने आप को पूर्णतया ईश्वर भक्ति में समर्पित कर देता है। वह स्वयं को विचलित नहीं करता है। इसलिए भक्ति मार्ग में ईश्वर प्राप्ति की पूरी संभावना होती है। इन तीनों मार्गों पर चलकर सफल होने के लिए मनुष्य को अष्टांग योग के पहले दो चरणों को जीवन में अपनाना जरूरी है। यह हैं यम और नियम।

यम में सत्य, अहिंसा, ब्रह्माचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह आते हैं। सत्य शब्द से तात्पर्य है सत्यता का जीवन में हर समय पालन करना। अहिंसा केवल जीव हिंसा से ही संबंधित नहीं है, इसमें दूसरों की भावनाओं को आहत नहीं करना भी आता है। अस्तेय का अर्थ है चोरी न करना और अपरिग्रह से तात्पर्य है कि आवश्यकता से ज्यादा किसी वस्तु या धन का संग्रह न करना। वहीं नियम में शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्राणिधान आते हैं। शौच से मतलब मन की सफाई होता है। इसके लिए मनुष्य को स्वाध्याय को अपनाना चाहिए।

यम और नियम को जीवन में अपनाने के लिए सर्वप्रथम ज्ञानेंद्रियों पर नियंत्रण करना जरूरी है। इस प्रकार मन को भटकाने वाली सूचनाएं प्राप्त नहीं होंगी। मन इन सूचनाओं के अभाव में आसानी से स्वयं नियंत्रित हो जाएगा। यदि मन नियंत्रित हो गया तो फिर वह निर्मल हो जाएगा। मन के निर्मल होते ही मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति की पूरी संभावना होती है, क्योंकि ईश्वर स्वयं निगरुण और निर्मल है। इसलिए निर्मल आत्मा ईश्वर प्राप्ति कर लेती है। ईश्वर की प्राप्ति ही तो जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है।

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