नागपंचमी: शिव के आभूषण हैं नाग

शिव के गले का हार हैं नाग। हमारी संस्कृति में नागों की पूजा का उद्देश्य उनका संरक्षण करना है। नाग हमारी कृषि-संपदा की रक्षा करते हैं। नागपंचमी का पर्व नागों के संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन पर भी ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है। नागपंचमी (11 अगस्त) पर विश

By Edited By: Publish:Sat, 10 Aug 2013 12:35 PM (IST) Updated:Sat, 10 Aug 2013 04:59 PM (IST)
नागपंचमी: शिव के आभूषण हैं नाग

शिव के गले का हार हैं नाग। हमारी संस्कृति में नागों की पूजा का उद्देश्य उनका संरक्षण करना है। नाग हमारी कृषि-संपदा की रक्षा करते हैं। नागपंचमी का पर्व नागों के संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन पर भी ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है। नागपंचमी (11 अगस्त) पर विशेष

सावन में शुक्लपक्ष की पंचमी नाग-पूजन की विशिष्ट तिथि होने के कारण नागपंचमी के नाम से जानी जाती है। नाग-पूजा का विधान भारतीय संस्कृति में सदा से प्रचलित रहा है। वेदों में 'नमोस्तु सर्पेभ्य:' ऋचा द्वारा सर्पो को नमन करते हुए इनके पूजन को मान्यता दी गई है। इससे यह तथ्य भी विदित होता है कि भारतवर्ष में नाग-पूजा की परंपरा अति प्राचीनकाल से है। नाग (सर्प) को विषधर होने के कारण भारतीय इन्हें शत्रुता या घृणा की दृष्टि से नहीं देखते, बल्कि इनमें देवत्व की भावना रखते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारतीय संस्कृति का सर्वोपरि सिद्धांत है- प्रत्येक प्राणी ईश्वर का अंश है। भारतीय चिंतन प्राणिमात्र में परमात्मा का दर्शन करता है।

पुराणों में नागों की उत्पत्ति महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से मानी गई है। उनके अनुसार, नाग अदिति देवी के सौतेले पुत्र और द्वादश आदित्यों के भाई हैं। अतएव ये देवताओं में परिगणित हैं। नागों का निवास-स्थान पाताल बताया गया है, जिसे 'नागलोक' कहा जाता है। नागलोक की राजधानी का नाम 'भोगवतीपुरी' बताया जाता है। संस्कृत साहित्य के 'कथासरित्सागर' में नागलोक की कथाएं हैं। गरुड़ पुराण, भविष्य पुराण आदि में भी कई कथानक मिलते हैं। आयुर्वेद के प्रमुख ग्रंथों-चरक संहिता, सुश्रुत संहिता तथा भावप्रकाश में भी नागों से संबंधित विविध विषयों का उल्लेख मिलता है। कश्मीर के जाने-माने संस्कृति कवि कल्हण ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'राजतरंगिणी' में कश्मीर की संपूर्ण भूमि को नागों का अवदान माना है। यहां के एक नगर 'अनंतनाग' का नामकरण इसका ऐतिहासिक प्रमाण है। देश के अधिकांश पर्वतीय क्षेत्रों में नाग-पूजा बड़ी श्रद्धा के साथ होती है। इसके अतिरिक्त राष्ट्र के अनेक अंचलों में भी नाग देवता के रूप में पूजे जाते हैं। बहुत से गांवों में नागों को ग्रामदेवता माना जाता है।

धर्मग्रंथों में नागपंचमी से संबंधित जो कथा वर्णित हैं, उसका सार-संक्षेप यह है कि देवताओं और दैत्यों ने जब समुद्र-मंथन किया, तब चौदह महारत्नों में उच्चै:श्रवा नामक एक दुर्लभ अश्व (घोड़ा) उपलब्ध हुआ। इस श्वेतवर्णी अश्व को देखकर महर्षि कश्यप की पत्नियों विनता और कद्रू में विवाद उत्पन्न हो गया कि अश्व के केश किस वर्ण के हैं? विनता ने अश्व के केश श्वेतवर्ण के बताए, परंतु कद्रू ने कुटिलतावश कहा कि अश्व के केश श्याम वर्ण के हैं। कद्रू ने विनता के समक्ष यह शर्त रखी कि जिसका कथन असत्य सिद्ध होगा, उसे दूसरे की दासी बनना होगा। अपने दावे को सही साबित करने के लिए नागमाता कद्रू ने अपने पुत्रों (नागों) को बाल के समान सूक्ष्म बनकर उच्चै:श्रवा अश्व के शरीर पर लिपटने का निर्देश दिया, किंतु नागों ने बात नहीं मानी। क्रुद्ध होकर कद्रू ने नागों को शाप दे दिया कि पांडववंशीय राजा जनमेजय के नागयज्ञ में वे सब भस्म हो जाएंगे। नागमाता के शाप से भयभीत नागों ने वासुकि के नेतृत्व में सृष्टिकर्ता ब्रहमाजी के पास जाकर शाप से मुक्ति का उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि यायावर वंश में जन्मे तपस्वी जरत्कारु तुम्हारे बहनोई होंगे। उनका पुत्र आस्तीक ही तुम्हारी (नागों की) रक्षा करेगा। ग्रंथों के अनुसार, श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन ब्रšाजी ने नागों को यह वरदान दिया था तथा इसी तिथि पर आस्तीक मुनि ने नागों की रक्षा की थी। अत: नागपंचमी का पर्व नागवंश के रक्षा के लिए संकल्पित होने के कारण महत्वपूर्ण है।

नागों की महत्ता दर्शाने के लिए ही भगवान शंकर उन्हें आभूषण की तरह धारण करते हैं। शिवपुत्र गणेश नाग को यज्ञोपवीत की भांति पहनते हैं। भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते हैं। जब श्रीहरि ने श्रीरामचंद्र के रूप में अवतार लिया, तब शेषनाग उनके अनुज (छोटे भाई) लक्ष्मणजी बने। श्रीकृष्णावतार के समय शेषनाग उनके अग्रज (बड़े भाई) बलरामजी के रूप में अवतरित हुए। सर्पो की अधिष्ठात्री 'मनसा' की देवी के रूप में उपासना बड़ी श्रद्धा के साथ आज भी भारत में सर्वत्र होती है। नागों में बारह नाग मुख्यत: पूजित हैं। ये हैं- अनंत, वासुकि, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक, अश्वतर, कर्कोटक, कालिय और पिंगल। पुराणों में भगवान सूर्य के रथ में द्वादश नागों की उपस्थिति का उल्लेख मिलता है, जो क्रमश: प्रत्येक मास में उनके रथ के वाहन बनते हैं।

वस्तुत: हमारी संस्कृति में नाग-पूजा का विधि-विधान नागों के संरक्षण के उद्देश्य से बनाया गया है। क्योंकि ये नाग हमारी कृषि-संपदा की कृषिनाशक जीवों व कीटों से रक्षा करते हैं। पर्यावरण के संतुलन में नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है। नागपंचमी का पर्व नागों के साथ-साथ अन्य वन्य-जीवों के संवर्धन और संरक्षण की भी प्रेरणा देता है। भगवान शंकर के प्रिय मास श्रावण में उनके आभूषण नागों का पर्व होना स्वाभाविक ही है। इन्हें सुरक्षित रखना अपनी कृषि संपदा और समृद्धि को सुरक्षित करना है।

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