ज्ञान से ही मन जाग्रत होता है

फसल पकने के बाद काट ली जाती है और खेत इस तरह साफ कर दिया जाता है कि कोई उपज छूटने न पाए। फिर भी खेत में कुछ घास-फूस, तिनके आदि रह जाते हैं, किंतु इनके छूट जाने की कोई परवाह नहीं की जाती। ये खेत में फिर उगते और

By Preeti jhaEdited By: Publish:Sat, 04 Jul 2015 11:04 AM (IST) Updated:Sat, 04 Jul 2015 11:07 AM (IST)
ज्ञान से ही मन जाग्रत होता है
ज्ञान से ही मन जाग्रत होता है

फसल पकने के बाद काट ली जाती है और खेत इस तरह साफ कर दिया जाता है कि कोई उपज छूटने न पाए। फिर भी खेत में कुछ घास-फूस, तिनके आदि रह जाते हैं, किंतु इनके छूट जाने की कोई परवाह नहीं की जाती। ये खेत में फिर उगते और छूटते रहते हैं। ये भले ही उगकर बड़े होते रहते हैं, पर इनकी कोई उपयोगिता नहीं होती। जिस मनुष्य में आत्मिक चेतना नहीं होती उसकी दशा भी ऐसी ही होती है। वे न तो अपने हित साध पाने में सक्षम होते हैं और न ही समाज का कोई भला कर पाते हैं।
आत्मिक या अंतरचेतना शून्य मनुष्य जीवन में धन, संपत्ति, पद, अधिकार आदि सब कुछ प्राप्त कर लेते हैं, किंतु समाज उन्हें स्वीकार नहीं करता। भय या परिस्थितियां समाज को उनके निर्देश मानने पर विवश कर सकती हैं, पर सम्मान का भाव नहीं पैदा हो पाता। वस्तुत: भौतिक पदार्थ और सांसारिक स्थिति मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने में सदा ही अक्षम है। इसके लिए मन का सचेत होना आवश्यक है। ज्ञान से ही मन जाग्रत होता है। जब तक मनुष्य को जीवन और मृत्यु का सच, जीवन का लक्ष्य, सृष्टि की रचना का उद्देश्य और सृष्टि के सृजनकर्ता की महानता का ज्ञान नहीं होगा उसका तन खेत में छोड़ दिए गए घास-फूस की तरह ही प्रयोजनहीन ही रहेगा।
यह ज्ञान अंतस को प्रदीप्त करने वाला ज्ञान है, जो मनुष्य की दृष्टि को बदल देता है, जब उसे ज्ञात हो जाता है कि ईश्वर अनंत गुणों और अथाह शक्ति का स्वामी और संपूर्ण सृष्टि का एकमात्र सर्जक व नियामक है तो उसे अपनी शक्ति, अपने गुण तुच्छ लगने लगते हैं। जब उसे पता चलता है कि सारे सांसारिक संबंध और पदार्थ नश्वर हैं, यहां तक कि उसका अपना तन भी क्षण भर में नाश हो जाने वाला है, तो संसार से उसका मोहभंग हो जाता है, किंतु यह ज्ञान उसे हताशा की ओर नहीं ले जाता। नश्वर संसार और जीवन के प्रति ज्ञान दृष्टि रखने वाला शख्स ही अपने विचारों और कर्मो में सतर्क हो पाता है और श्रेष्ठता की ओर अग्रसर होता है। यह श्रेष्ठता ही जीवन के खेत में उपयोगी फसल के रूप में उसका विकास है। आंतरिक चैतन्यता मनुष्य को प्रेरित करती है कि मनुष्य अपने जीवन के एक-एक पल का उपयोग ऐसे कर्र्मो के लिए करे जो ईश्वर की दृष्टि में स्थान पाने योग्य हो।

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