कर्म का आधार है विचार

विचारों से ही कर्म का जन्म होता है। वे कर्म की नींव हैं। हमारे विचार जितने अच्छे होंगे, उतने ही श्रेष्ठ हमारे कर्म भी होंगे।आचार्य शिवेंद्र नागर का चिंतन...

By Preeti jhaEdited By: Publish:Wed, 15 Jul 2015 11:02 AM (IST) Updated:Wed, 15 Jul 2015 11:31 AM (IST)
कर्म का आधार  है विचार

विचारों से ही कर्म का जन्म होता है। वे कर्म की नींव हैं। हमारे विचार जितने अच्छे होंगे, उतने ही श्रेष्ठ हमारे कर्म भी होंगे।आचार्य शिवेंद्र नागर का चिंतन...

वेदांत में बताया गया है कि शारीरिक कर्म मात्र परिणाम है, उसका वास्तविक कारण कुछ और है। शारीरिक कर्म होते हुए दिखता तो है, परंतु वह क्यों किया गया, इसके कारण का पता नहीं चलता। अगर मात्र शरीर ही कर्म कर रहा होता तो देहांत के बाद शरीर कर्म क्यों करता? मृत्यु के उपरांत शरीर में कर्म करने की क्षमता कुछ देर तक रहती है। मृत व्यक्ति के अंगों का दान करने से वे जीवित व्यक्ति के लिए काम आ जाते हैं। यानी देह में मृत्यु के बाद भी कर्म करने की क्षमता होती है।

कार्य करने की प्रक्रिया भले ही शरीर से होती है, लेकिन उसके अन्य कारण हैं। कर्म का कारण इच्छा है। इच्छा

का कारण विचार है तथा विचार का कारण वासना है। वासना का अर्थ हमेशा नकारात्मक नहीं होता। वासना का एक अर्थ ‘खुशबू’ भी है। स्वभाव या प्रवृत्ति को भी वासना कहा गया है। वासनाएं पहले विचार रूप में प्रकट होती हैं। विचार पर केंद्रित होने पर विचार इच्छा में बदल जाता है। फिर इच्छा कर्म के रूप में प्रकट हो जाती है। आदि

शंकराचार्य ने वासनाओं को ‘अज्ञान’ कहा है। इसीलिए योगी-महात्माओं ने विचारों की शुद्धता पर बल दिया।

विचार अच्छे होंगे तो कर्म भी श्रेष्ठ होगा। मान लीजिए, अगर आटे में कंकड़ हैं, तो चाहे आप कितना भी अच्छा खाना क्यों न पकाते हों, रोटी खराब ही बनेगी। आटा अच्छा हो, तो रोटी अच्छी भी बन सकती है और खराब भी, परंतु आटा ही खराब हो तो रोटी कैसे अच्छी बनेगी? कर्म का मूल कारण विचार है, इसलिए अगर विचार नकारात्मक होंगे तो कर्म श्रेष्ठ नहीं होगा।

कर्म अगर भवन है, तो विचार उसकी नींव। कर्म की बुनियाद ही खराब होगी तो भवन अच्छा नहीं होगा। अगर विचारों में स्थिरता है तो कार्य को करने में हमें खुशी का अनुभव होगा। आज के जीवन में तो यह और भी जरूरी है कि किसी काम की शुरुआत अच्छे विचारों से हो।

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